कांग्रेस थके, पराजित और अयोग्य पुराने नेताओं का एक समूह

punjabkesari.in Thursday, Feb 29, 2024 - 04:29 AM (IST)

राष्ट्रीय स्तर की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस एक बार फिर झपकी लेते हुए पकड़ी गई है, जिसके परिणामस्वरूप पार्टी को राज्य विधानसभा में पर्याप्त बहुमत होने के बावजूद हिमाचल प्रदेश में राज्यसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। यह अपमानजनक हार पार्टी के भीतर एकजुटता की कमी और अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी, भारतीय जनता पार्टी से निपटने के मामले में रणनीति की पूर्ण अनुपस्थिति को उजागर करती है। 

इस तथ्य के बावजूद कि विधानसभा में कांग्रेस पार्टी के 40 विधायकों के मुकाबले उसके पास सिर्फ 25 विधायक थे, कांग्रेस को हराने की रणनीति बनाने के लिए भाजपा को श्रेय दिया जाना चाहिए। सीट जीतने के लिए बस 6 कांग्रेस विधायकों और 3 निर्दलीय विधायकों के समर्थन की जरूरत थी। उसने उम्मीदवार मनु सिंघवी सहित कांग्रेस नेताओं को भाजपा द्वारा बनाई गई रणनीति की भनक लगे बिना ऐसा किया।
हिमाचल में उसके उम्मीदवार की चौंकाने वाली हार पूरे देश में कांग्रेस की मरणासन्न स्थिति को दर्शाती है। देश की सबसे बड़ी राष्ट्रीय विपक्षी पार्टी के रूप में यह पार्टी का कत्र्तव्य है कि वह एक मजबूत विपक्षी दल के रूप में कार्य करे जो सरकार को अपने नियंत्रण में रखे। हालांकि पार्टी बार-बार उन लोगों को निराश कर रही है जो मानते हैं कि यदि व्यवहार्य विपक्ष हो तो लोकतंत्र अधिक प्रभावी ढंग से फल-फूल सकता है। 

लोकसभा चुनावों में लगातार 2 हार और हैट्रिक की ओर बढऩे के बावजूद पार्टी ने सबक लेने से इंकार कर दिया है। इसलिए, यह चौंकाने वाली बात नहीं है कि इसके नेताओं का पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल होने का सिलसिला जारी है। पिछले कुछ सालों में करीब एक दर्जन पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने पार्टी छोड़ दी है। कुछ लोग राज्यों में सरकारों का नेतृत्व कर रहे हैं। 

कांग्रेस थके,पराजित और अयोग्य पुराने नेताओं के एक समूह द्वारा ‘निर्देशित’ हो रही है, जिन्होंने पार्टी को बार-बार विफल किया है। फिर भी ऐसा प्रतीत होता है कि पार्टी नेतृत्व का उनसे छुटकारा पाने और नए सिरे से जोश भरने का कोई इरादा नहीं है। शायद गांधी परिवार, जिसका पार्टी पर दबदबा बना हुआ है, युवा और अधिक बुद्धिमान नेताओं से बहुत डरती है जो ‘राजकुमार’ पर भारी पड़ सकते हैं। यह अब एक अच्छी तरह से स्थापित तथ्य है कि अपने सभी प्रयासों के बावजूद, राहुल गांधी एक विश्वसनीय नेता के रूप में सीखने और विकसित होने से इंकार कर रहे हैं। वास्तव में वह मोदी और उनकी पार्टी के लिए सबसे बड़ा दायित्व और छुपे हुए वरदान साबित हो रहे हैं। 

भारत जोड़ो यात्रा आयोजित करने की उनकी नवीनतम रणनीति पर गौर करें। जहां तक चुनाव का सवाल है तो यह युद्ध का समय है। युद्ध के समय शीर्ष नेतृत्व युद्ध के मोर्चे पर नहीं बल्कि अपने मुख्यालय में रणनीति बनाता है। यह गठबंधन बनाने, उम्मीदवारों का चयन करने, प्रचार के लिए अच्छी तरह से सोची-समझी रणनीति बनाने और मतदाताओं को आकॢषत करने के लिए एक एजैंडा या घोषणा पत्र तैयार करने का समय है। इसके बजाय वह सड़क पर हैं और पत्रकारों से उनके संपादकों की जाति पूछ रहे हैं!और खुद को छुट्टी देते हुए, जब उन्हें आगामी लोकसभा चुनावों के लिए पार्टी नेताओं के साथ रणनीति बनानी चाहिए, वह व्याख्यान देने के लिए संभवत: एक सप्ताह के लिए ऑक्सफोर्ड जा रहे हैं। किसी को अपने सलाहकारों की ‘कार्यकुशलता’ के लिए और क्या सबूत चाहिए। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि वह नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी के लिए सर्वश्रेष्ठ दांव हैं। 

मोदी इस बात को अच्छी तरह से समझते हैं कि कांग्रेस तब तक खतरा नहीं हो सकती जब तक वह गांधी परिवार और खासकर राहुल गांधी पर अपना भरोसा बरकरार रखती है। इसलिए मोदी क्षेत्रीय दलों के खिलाफ टिप्पणी करने से बचते रहे हैं और केवल राहुल गांधी को निशाना बनाते रहे हैं और उन्हें ‘बेनकाब’ करते रहे हैं, जो जाहिर तौर पर उनके लिए कोई मुकाबला नहीं है। कांग्रेस में विरोध की सुगबुगाहट शुरू हो गई है।  23 के समूह का गठन इसी का हिस्सा था। हालांकि इसके कुछ सदस्यों के पार्टी छोडऩे के बाद यह खत्म हो गया। दूसरों ने चुप रहना चुना है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस पार्टी को राष्ट्रीय कत्र्तव्य निभाना है, वह अनभिज्ञ बनी हुई है और खुद में बदलाव के लिए तैयार नहीं है। पार्टी अपनी दयनीय स्थिति के लिए केवल खुद को दोषी ठहरा सकती है। इसके बूढ़े, थके और हारे हुए युद्ध घोड़ों को जाना ही होगा। -विपिन पब्बी


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