बिहार में सत्ता के लिए कांग्रेस ने किया भ्रष्टाचार से समझौता

punjabkesari.in Tuesday, Oct 28, 2025 - 05:42 AM (IST)

सत्ता की खातिर कांग्रेस ने हर बार समझौता किया है। बेशक सत्ता उसके हाथ लगे या नहीं। कांग्रेस ने इस बार बिहार के चुनाव में इसी की पुनरावृत्ति की है। बिहार में सत्ता पाने के लिए कांग्रेस ने भ्रष्टाचार और आपराधिक इतिहास के लिए बदनाम लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से हाथ मिला लिया। दोनों दलों में पहले सीटों के बंटवारे को लेकर मारामारी चलती रही। अंतत: कुल 243 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस को 61, राजद को 143, वी.आई.पी. (विकासशील इंसान पार्टी) को 9 और वाम दलों को 30 सीटें मिली हैं। शेष सीटें अन्य क्षेत्रीय दलों को मिली हैं।

राजद के दबाव में आकर कांग्रेस को मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर लालू यादव के पुत्र तेजस्वी यादव का नाम घोषित करना पड़ा। यह जानते हुए भी कि लालू यादव और उसके परिवार के सदस्यों का घोटालों में हाथ रहा है, कांग्रेस सत्ता की खातिर इसकी अनदेखी कर गई। अब इसी मुद्दे पर इस महागठबंधन को भाजपा और नीतीश ने घेर लिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक चुनावी सभा में कहा कि बिहार में ‘जंगलराज’ को लोग अगले 100 साल तक नहीं भूलेंगे, चाहे विपक्ष अपने कुकर्मों को छिपाने की कितनी भी कोशिश कर ले। यह चुनाव बिहार के इतिहास में एक नया अध्याय लिखने वाला है, युवा महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने भाजपा कार्यकत्र्ताओं से कहा कि वे सुनिश्चित करें कि बुजुर्ग लोग बिहार में ‘जंगलराज’ के दौरान हुए अत्याचारों के बारे में युवाओं को बताएं। मोदी ने कहा कि जनता के वोट की ताकत को बिहार के भाइयों और बहनों से बेहतर कोई नहीं समझता।

लालू यादव के बिहार के कार्यकाल के दौरान अदालत ने मौखिक टिप्पणी की थी। अदालत ने कहा था कि बिहार में राज्य सरकार नाम की कोई चीज नहीं है और जंगलराज कायम है, यहां मु_ी भर भ्रष्ट नौकरशाह प्रशासन चला रहे हैं। लालू यादव और उनके परिवार के भ्रष्टाचार के मामले अभी तक नहीं थम रहे हैं। दिल्ली की राऊज एवेन्यू कोर्ट ने राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव, उनकी पत्नी राबड़ी देवी और बेटे तेजस्वी यादव के खिलाफ आई.आर.सी.टी.सी. होटल घोटाला मामले में आरोप तय कर दिए। लालू-राबड़ी अपने 15 साल के राज में बिहार में जिस अंधे दौर की कहानी लिख गए, उसकी निशानियां आज भी जिंदा हैं। उस काले दौर में लालू प्रसाद यादव और बाद में उनकी पत्नी राबड़ी देवी की सरकार ऐसी राजनीति का गढ़ बन गई, जिसमें सामाजिक न्याय के नाम पर प्रशासनिक अराजकता, आर्थिक ठहराव और संस्थागत पतन ने स्थायी रूप से अपनी जड़ें जमा लीं। इस दौरान बिहार विकास की दौड़ में मीलों पीछे छूट गया। लालू प्रसाद यादव के शासनकाल में बिहार की लोकसेवा भर्ती प्रणाली को लेकर कई विवाद और अनियमितताएं सामने आई थीं। बी.पी.एस.सी. के 2-2 चेयरमैनों को जेल जाना पड़ा था। मुख्यमंत्री रहते जनवरी, 1997 में लालू प्रसाद ने जिस डा. लक्ष्मी राय को बिहार लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष बनाया था, उन्हें पद पर रहते हुए भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाना पड़ा था।

लालू-राबड़ी के शासनकाल में स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई का स्तर काफी गिर गया। विश्वविद्यालयों में छात्र राजनीति पर बाहुबलियों का कब्जा हो गया। हालात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि स्कूलों में ‘भूतिया शिक्षक’ थे, जिनका काम सिर्फ  सैलरी लेना था। 1995 में अढ़ाई-अढ़ाई लाख रुपए में बी.एड. की डिग्रियां बांटने के आरोप लगे थे। वर्ष 1996 में इंजीनियरिंग एंट्रैंस टैस्ट हुआ था। इसमें 245 छात्रों की कॉपी की कोडिंग ही बदल दी गई थी। विधानसभा चुनावों को देखते हुए लालू एंड पार्टी अब क्रैडिट लूटने में जुटी है। लेकिन लालू राज का एक वह दौर भी था जब स्वास्थ्य व्यवस्था जैसी जनकल्याण से जुड़ी जिम्मेदारियों को कोई देखने वाला नहीं था। लोग इलाज के लिए भटक रहे थे। बिहार के 60 प्रतिशत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र या तो बंद थे या उनमें डॉक्टर नहीं थे। लालू शासन में बिहार की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से जड़ हो गई। पहले यहां जो छोटे-मोटे कारखाने थे वो भी बंद हो गए। बिजली व्यवस्था चरमरा गई।  सड़कें गड्ढों में तबदील हो चुकी थीं।

1990 के दशक में जब बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर लालू यादव का शासन शुरू हुआ  तो इसके बाद से ही अपराधियों का राजनीतिक संरक्षण बढऩे लगा। जैसे शहाबुद्दीन, मुन्ना शुक्ला, आनंद मोहन  और तस्लीमुद्दीन। लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी राज के दौरान बिहार में हुए कुल 118 नरसंहारों को आज तक राज्य के लोग भूले नहीं हैं। लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के शासनकाल के दौरान 5243 लोगों के फिरौती के लिए अपहरण हुए जबकि 12,000 से अधिक दुष्कर्म की घटनाएं हुईं। 130 दंगे हुए और इन दंगों में 26,000 लोगों की मौत हुई। जंगल राज के दौर में बिहार में सैंकड़ों डॉक्टरों और व्यापारियों के अपहरण हुए। आम लोग दहशत में जीते रहे जबकि लालू यादव की सरकार और प्रशासन आंखेें मूंदे बैठे रहे। यह वह दौर था जब बिहार में अपहरण एक उद्योग बन गया था।

लालू यादव का दौर दरअसल काले राज का समय था  जब फिरौती, गुंडागर्दी और बदमाशी चरम पर थी। लालू यादव और उनके परिवार के काले कारनामों की लंबी फेहरिस्त है। आश्चर्य यह है कि कांग्रेस ने कभी भी इन पर अफसोस तक जाहिर नहीं किया बल्कि सत्ता के लिए गठबंधन तक कर लिया। कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि राजद का प्रभाव बिहार-झारखंड तक सीमित है जबकि कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है। कांग्रेस की हर हरकत पर पूरे देश की निगाहें रहती हैं। कांग्रेस खुद भ्रष्टाचारों के आरोपों से घिरी है और दूसरी तरफ  राजद के भ्रष्ट कारनामों के बावजूद उससे गठबंधन कर लिया। इससे भाजपा को फिर से कांग्रेस पर हमलावर होने का मौका मिल गया। लगता यही है कि कांग्रेस अभी तक देश के मतदाताओं की नब्ज नहीं पहचानती है। यदि ऐसा होता तो सत्ता के लिए राजद से कभी हाथ नहीं मिलाती।-योगेन्द्र योगी
 


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