चिराग ने बिहार में दावेदारी के लिए कमर कसी
punjabkesari.in Saturday, Jun 07, 2025 - 05:49 AM (IST)

बिहार में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है क्योंकि केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री चिराग पासवान की अगुवाई वाली लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) अपनी ताकत दिखाने के लिए तैयार है और इस साल अक्तूबर-नवंबर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों में कम से कम 35-40 सीटों पर दावा ठोक सकती है। चिराग का लक्ष्य पार्टी के पिछले गौरव को बहाल करना और राज्य में मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी पेश करना है।
भाजपा अभी भी एक अखिल राज्य स्तरीय नेता बनाने के लिए संघर्ष कर रही है, ऐसे में चिराग का सीधा मुकाबला तेजस्वी यादव से होगा। पार्टी ने सीट बंटवारे की बातचीत से पहले अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए 8 जून से राज्य के विभिन्न हिस्सों में संकल्प सभाओं की योजना बनाई है जबकि चिराग ने सोमवार को विधानसभा चुनाव लडऩे की मंशा जताते हुए कहा, ‘‘मैं खुद को लंबे समय तक केंद्रीय राजनीति में नहीं देखता। राजनीति में आने का मेरा कारण बिहार और बिहार के लोग थे। मैं ‘बिहार पहले, बिहारी पहले’ के अपने विजन को आगे बढ़ाना चाहता हूं।’’ लोजपा (आर.वी.) ने जद (यू) के नीतीश कुमार के साथ मतभेदों के चलते राजग के बाहर 2020 का विधानसभा चुनाव लड़ा था। 135 सीटों पर चुनाव लडऩे के बावजूद लोजपा जद (यू) के चुनावी प्रदर्शन को काफी नुकसान पहुंचाने में सफल रही थी। 2024 के लोकसभा चुनावों से कुछ महीने पहले, 2023 में लोजपा (आर.वी.) राजग के पाले में लौट आई।
चिराग के लिए सांझेदारी का फायदा यह हुआ कि उनकी पार्टी ने जिन पांच लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा, उन सभी पर जीत हासिल की और उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली राजग सरकार 3.0 में मंत्री के रूप में शामिल किया गया। लोजपा (आर.वी.) की किस्मत बदलने के बाद, चिराग से अब सीट बंटवारे की बातचीत में आक्रामक कदम उठाने की उम्मीद है।
चंद्रशेखर की नजर सपा के मूल वोट बैंक पर: नगीना से मौजूदा सांसद और आजाद समाज पार्टी (ए.एस.पी.) के नेता चंद्रशेखर आजाद एक प्रमुख दलित नेता के रूप में उभर रहे हैं, जिनका महत्वपूर्ण प्रभाव अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (सपा) और मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) दोनों के लिए एक शक्तिशाली चुनौती साबित हो रहा है। चंद्रशेखर को लंबे समय से दलित अधिकार कार्यकत्र्ता के रूप में देखा जाता रहा है लेकिन उनके हालिया राजनीतिक कदम, खास तौर पर मुस्लिम समुदाय तक उनकी पहुंच, संकेत देते हैं कि अब उनकी नजर सपा के मूल वोट बैंक पर है और ऐसा करके वह राज्य में दलित-मुस्लिम राजनीतिक समीकरण को नए सिरे से परिभाषित कर रहे हैं।
दूसरी ओर सपा और बसपा दलित वोटों का भरोसा जीतने की पूरी कोशिश कर रही हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने दावा किया कि पिछड़े, दलित, आदिवासी, महिलाएं और हमारे सभी अल्पसंख्यक भाइयों ने तय कर लिया है कि वे पी.डी.ए. की ताकत को आगे ले जाएंगे। बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी का मुख्य राष्ट्रीय समन्वयक नियुक्त किया है। हालांकि आनंद एक युवा चेहरा हैं, जो दलित युवाओं को आकर्षित करने और बसपा कार्यकत्र्ताओं का मनोबल बढ़ाने और उन्हें दिशा देने में मदद कर सकते हैं लेकिन असली चुनौती बसपा की संगठनात्मक ताकत को फिर से खड़ा करने और अपने मूल आधार से फिर से जुडऩे की है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या बसपा या ए.एस.पी. भाजपा और इंडिया ब्लॉक के वोटों को छीनने में सफल होगी?
ऑप्रेशन सिंदूर पर विशेष सत्र बुलाने की मांग : कांग्रेस के नेतृत्व में 16 विपक्षी दलों के नेताओं ने ऑप्रेशन सिंदूर पर संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा, जबकि इंडिया ब्लॉक की पार्टियों ने इस मुद्दे पर दिल्ली में बैठक की। उधर आम आदमी पार्टी (आप) और शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एन.सी.पी.-एस.पी.) ने बैठक का बहिष्कार करने का फैसला किया। हालांकि, ‘आप’ के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अनुराग ढांडा ने कहा कि ‘आप’ ने विपक्ष को 240 सीटों तक पहुंचाने में अपनी भूमिका निभाई है और अब स्वतंत्र रूप से काम करने का इरादा रखती है।
इंडिया ब्लॉक की पार्टनर होने के बावजूद ‘आप’ और कांग्रेस के बीच अशांत समीकरण रहे हैं। सीट बंटवारे की बातचीत पर काफी उतार-चढ़ाव और कांग्रेस की दिल्ली इकाई की ओर से गठबंधन के काफी विरोध के बाद दोनों पार्टियों ने आखिरकार दिल्ली, गुजरात और हरियाणा में लोकसभा चुनावों में सहयोगी के रूप में चुनाव लड़ा, लेकिन पंजाब में एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हो गए। दूसरी ओर एन.सी.पी. (एस.पी.) प्रमुख शरद पवार ने पहले ही संसद का विशेष सत्र बुलाने पर अपनी आपत्ति जताते हुए कहा था कि यह एक संवेदनशील और गंभीर मुद्दा है और इस पर संसद में चर्चा संभव नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भेजे गए संयुक्त पत्र पर कांग्रेस, सपा, टी.एम.सी., डी.एम.के., शिवसेना (यू.बी.टी,), राजद, जम्मू-कश्मीर नैशनल कॉन्फ्रैंस, सी.पी.आई. (एम), आई.यू.एम.एल., सी.पी.आई., आर.एस.पी., जे.एम.एम., वी.सी.के., केरल कांग्रेस, एम.डी.एम.के. और सी.पी.आई. (एम.एल.) ने हस्ताक्षर किए हैं।
तेजस्वी भी चुनावी मोड में : उधर राजद नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लिखे 2 पन्नों के पत्र में मांग की है कि सभी वंचित वर्गों के लिए 85 प्रतिशत आरक्षण देने वाले विधेयक को पारित करने के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया जाए। उन्होंने कहा कि इसे संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव 3 सप्ताह के भीतर केंद्र सरकार को भेजा जाना चाहिए। राज्य में राजद का जनाधार मुख्य रूप से ओ.बी.सी. यादव और अल्पसंख्यक मुस्लिम हैं और तेजस्वी बेहद पिछड़े और दलितों के बीच अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। आरक्षण के स्तर को बढ़ाने के लिए नए कानून की मांग करना गैर-यादव पिछड़ों को लुभाने का प्रयास प्रतीत होता है, जिसे नीतीश का वोट आधार माना जाता है।
राहुल गांधी के घोड़े : मध्य प्रदेश कांग्रेस में बड़े बदलाव का संकेत देते हुए वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने बुधवार को अपनी पुनरुद्धार योजना की रूपरेखा व्यक्त करने के लिए एक रूपक का इस्तेमाल किया। पार्टी के पुराने नेताओं पर कटाक्ष करते हुए, जो दशकों से पार्टी पर हावी हैं, राहुल गांधी ने कहा, ‘‘घोड़े तीन तरह के होते हैं- रेस का घोड़ा, शादी का घोड़ा और लंगड़ा घोड़ा। रेस के घोड़े को रेस में उतारा जाएगा, शादी के घोड़े को शादी में और लंगड़े घोड़े को रिटायर होने के लिए कहा जाएगा।’’ मध्य प्रदेश में कांग्रेस को लगातार चुनावी झटके लगे हैं, जिसके कारण गहन संगठनात्मक सुधार की मांग उठ रही है। गांधी ने कहा कि जिला अध्यक्षों को सशक्त बनाने और उन्हें प्रदर्शन के लिए जवाबदेह बनाने का समय आ गया है, जिससे पार्टी की नई अपेक्षाओं की एक पारदर्शी तस्वीर सामने आए। भोपाल पहुंचने के तुरंत बाद, लोकसभा में विपक्ष के नेता ने राज्य की राजनीतिक मामलों की समिति की बैठक की अध्यक्षता भी की।-राहिल नोरा चोपड़ा