चीन के कर्ज का फैलता ‘मक्कडज़ाल’

punjabkesari.in Tuesday, Sep 22, 2020 - 03:54 AM (IST)

जहां तक कर्ज लेने और देने का सवाल है तो ये कर्ज हमेशा हम लोग या फिर कोई देश मुसीबत के समय लेता है या फिर अपनी तरक्की को रफ्तार देने के लिए। दुनिया में ऐसे कई विकसित देश हैं जो विकासशील और गैर-विकसित देशों को तरक्की की रफ्तार में मदद के लिए कर्ज देते हैं जिससे उस अमुक देश में तरक्की की राह साफ हो। 

वहीं कुछ देश बाकी देशों को इसलिए भी कर्ज देते हैं जिससे वे अपने व्यापारिक रिश्तों को कर्ज पाने वाले देश के साथ नया आयाम दे सकें और जिसमें दोनों देशों का लाभ निहित हो। लेकिन वहीं कुछ देश ऐसे भी हैं जो गरीब और जरूरतमंद देशों को कर्ज सिर्फ इसलिए देते हैं जिससे वे उस देश की प्राकृतिक संपदा पर अपना अधिकार जमा सकें, उस देश के पड़ोसी को घेरने के लिए अपना सैन्य अड्डा कर्ज पाने वाले देश में बना सकें, उस देश के रास्ते अपनी औद्योगिक वस्तुओं को दूसरे देशों में भेजने के लिए एक पड़ाव के तौर पर इस्तेमाल कर सकें और अपनी बादशाहत उस देश पर साबित कर सकें। 

अब आप सोचेंगे कि ऐसा कौन-सा देश है जो सिर्फ और सिर्फ अपने फायदे के लिए दुनिया भर के देशों को कर्ज देता है, तो वह है चीन। चीन ने भारत के पड़ोसियों को ढेर सारा कर्जा दिया है, इसके पीछे उसकी मंशा साफ है। एक तरफ वह अपने प्रतिद्वंद्वी भारत को चारों तरफ से घेरना चाहता है, वहीं दूसरी तरफ अपने औद्योगिक उत्पादों के लिए इन देशों में एक बड़ा बाजार भी देख रहा है, इसके अलावा इन देशों में अपना सैन्य अड्डा बनाने की जुगत में जुटा हुआ है। 

कर्ज देने के बाद चीन कर्जदार देशों के साथ भविष्य की अपनी योजना निर्धारित करता है, जैसे कर्ज वसूली के तरीके और उन देशों के आधारभूत निर्माण का इस्तेमाल। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार चीन ने वर्ष 2013-16 तक गरीब देशों को 6 अरब 20 करोड़ डॉलर से 11 अरब 60 करोड़ डॉलर तक का कर्ज दिया। अमरीका ने भी कर्जदार देशों को कई बार चीन से कर्ज लेने पर चेतावनी दी है, अमरीका ने बताया कि अफ्रीकी देशों ने अब तक चीन से 6 खरब अमरीकी डॉलर का कर्ज लिया है जो इन देशों के भविष्य के लिए खतरनाक संकेत है। 

इसी तरह पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह में भी चीन ने ऐसे ही पैसा लगाया हुआ है। 46 बिलियन डॉलर की परियोजना से वह ग्वादर बंदरगाह और कश्मीर से ग्वादर तक सड़क भी बना रहा है। चीन कर्ज देने के लिए उन देशों को चुनता है जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा-कोष आई.एम.एफ., वल्र्ड बैंक और  दूसरे अंतर्राष्ट्रीय बड़े बैंक कर्ज नहीं देते क्योंकि कर्ज देने की उनकी कुछ शर्तें होती हैं जिन पर ये देश खरे नहीं उतरते।पिछले कुछ वर्षों में चीन ने भारत के पड़ोसी देशों मसलन बंगलादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, मालदीव और हाल ही में नेपाल में अपनी अकूत सम्पत्ति लगाई है ताकि वह दक्षिण एशिया में भारत को उसके पड़ोसियों से अलग-थलग कर सके। चीन से पाकिस्तान की दोस्ती जगजाहिर है। दुनिया भर में चीन ने अपने कर्ज का मक्कडज़ाल फैला रखा है, फिर क्या किर्गिस्तान, क्या सूडान, क्या पापुआ न्यू गिनी और क्या अफ्रीकी महाद्वीप और लातिन अमरीकी देश। 

श्रीलंका
उदाहरण के लिए श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह को ही लीजिए, पहले चीन ने हम्बनटोटा बंदरगाह बनाने के लिए बहुत आसान शर्तों पर श्रीलंका को कर्ज और तकनीक दोनों दीं, इसके बाद कर्ज न लौटा पाने की स्थिति में चीन ने वर्ष 2017 में हम्बनटोटा बंदरगाह को 99 वर्षों के लिए पट्टे पर ले लिया। इसका कार्यभार चाइना मर्चैंट्स पोर्ट होल्डिंग्स ने 1.12 अरब डॉलर के एवज में लिया है। 

किर्गिस्तान 
किर्गिस्तान मध्य एशिया का 62 लाख की आबादी वाला देश है, वन बैल्ट वन रोड के नाम पर चीन ने किॢगस्तान को डेढ़ अरब डॉलर का कर्ज दिया है जो विदेशों से मिलने वाले कर्ज का चालीस फीसदी हिस्सा है, इसके अलावा किॢगस्तान को मध्य और दक्षिण एशिया का विद्युत ऊर्जा केन्द्र बनाने के नाम पर एक अरब डॉलर का कर्ज दिया है और यह सारा कर्ज एक्सपोर्ट-इंपोर्ट बैंक ऑफ चाइना ने दिया है। 

ताजिकिस्तान
ताजिकिस्तान एशिया का एक बहुत गरीब देश है। वल्र्ड बैंक और आई.एम.एफ. के अनुसार यह देश भी आधारभूत ढांचे और विद्युत घर बनाने के नाम पर चीन के कर्ज तले दब चुका है, ताजिकिस्तान के कुल कर्ज का अस्सी फीसदी है जिसे चुकाने के लिए ताजिकिस्तान अब अन्य संस्थानों से कर्ज लेकर चीन का कर्ज चुकाने की राह देख रहा है। 

मंगोलिया
एक्जिम बैंक ऑफ चाइना ने अपने पड़ोसी देश मंगोलिया को भी 1 अरब डॉलर का ऋण आधारभूत ढांचा बनाने के नाम पर आसान शर्तों पर दिया है। इसके साथ ही अगले 10 वर्षों तक चीन मंगोलिया को तीस अरब डॉलर का कर्ज और देगा, अगर मंगोलिया यह कर्ज नहीं चुका पाता है तो निश्चित तौर पर चीन मंगोलिया की प्राकृतिक संपदा और खनिज पदार्थों का दोहन अपने तरीके से करेगा क्योंकि मंगोलिया भी उन 10 देशों में शामिल है, जो चीन के कर्ज तले दबे हुए हैं। 

अगर समय रहते वैश्विक शक्तियों ने चीन की चालबाजियों पर लगाम न लगाई तो आने वाले दिनों में कई देश बदहाली की कगार पर पहुंच जाएंगे और चीन निर्ममता से उनके आॢथक संस्थानों पर अपना कब्जा जमा लेगा, साथ ही उनके प्राकृतिक संसाधनों का दोहन अपने लाभ के लिए करेगा, इसका परिणाम यह होगा कि इससे दिनों-दिन चीन की अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचेगा लेकिन इसकी कीमत चीन के कर्जदार देशों को चुकानी होगी और ये मत्स्य न्याय व्यवस्था की एक नई परिभाषा लिखेगा।


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