अपने निवेश की सुरक्षा के लिए पाकिस्तान में सैन्य चौकियां चाहता है चीन

punjabkesari.in Friday, Aug 19, 2022 - 06:38 AM (IST)

अपने बेहद महत्वाकांक्षी बैल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के हिस्से के रूप में संघर्ष-प्रवृत्त पाकिस्तान-अफगानिस्तान क्षेत्र में महत्वपूर्ण निवेश करने के बाद, चीन दोनों देशों में अपने हितों की रक्षा करने की योजना बना रहा है, शीर्ष राजनयिक सूत्रों के अनुसार, विशेष रूप से बनाई गई चौकियों में अपने बल तैनात करके। पाकिस्तान-अफगानिस्तान मार्ग के माध्यम से चीन मध्य एशिया में अपने प्रभाव का विस्तार करने का इच्छुक है और उसने दोनों देशों में रणनीतिक निवेश किया है। पाकिस्तान, जहां कुछ अनुमानों के अनुसार चीनी निवेश 60 अरब अमरीकी डॉलर से अधिक हो गया है, न केवल वित्तीय बल्कि सैन्य और राजनयिक समर्थन के लिए भी चीन पर निर्भर है। 

अपने पक्ष में सत्ता के भारी असंतुलन को देखते हुए, चीन ने पाकिस्तान पर उन चौकियों के निर्माण की अनुमति देने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया है, जहां वह अपने सशस्त्र सैनिक  तैनात करेगा। अफगानिस्तान, जहां तालिबान शासन कर रहा है, अभी भी कई मामलों में चीन और पाकिस्तान दोनों की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाया है। इस्लामाबाद में शीर्ष राजनयिक और सुरक्षा स्रोतों का मानना है कि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी अफगानिस्तान और पाकिस्तान में सैन्य चौकियां स्थापित करने के लिए युद्ध पैमाने पर काम कर रही हैं। एक राजनयिक सूत्र के अनुसार, चीनी राजदूत नोंग रोंग ने इस संबंध में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो और सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के साथ बैठकें की हैं। 

चीन पहले ही गवादर में सुरक्षा चौकियों की मांग कर चुका है और अपने लड़ाकू विमानों के लिए गवादर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा इस्तेमाल करने के लिए भी। हालांकि, इस मुद्दे के अपने संवेदनशील आयाम हैं, क्योंकि पाकिस्तानी लोग देश में भारी चीनी सैन्य उपस्थिति के साथ सहज नहीं हैं। ऐसी आशंकाएं हैं कि देश पहले से ही कर्ज के जाल जैसी स्थिति में है और चीनी रणनीति इसे एक उपनिवेश से बेहतर नहीं छोड़ेगी। अफगानिस्तान को लेकर चीनियों की अपनी चिंताएं हैं। तालिबान और हक्कानी उइगर विद्रोहियों को चीनी अधिकारियों को सौंपने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे। चीन भी उन्हें अफगानिस्तान में अपने बी.आर.आई. नैटवर्क के विकास के प्रति गंभीर नहीं मानता।

पेइचिंग में चिंताएं हैं कि उईगर चरमपंथियों ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सी.पी.ई.सी.) को कमजोर करने के लिए बलूची समूहों और टी.टी.पी. के साथ सहयोग करना शुरू किया है। पाकिस्तान के अंदर कई हमले हुए हैं जिनमें चीनी नागरिकों को निशाना बनाया गया है। इन घटनाओं के कारण पाकिस्तान में अपनी सुरक्षा तैनात करने पर चीनी दबाव फिर से शुरू हो गया है, एक ऐसी मांग, जिसे पाकिस्तान बार-बार मना करता रहा है। 

सूत्रों के मुताबिक चीन अपनी परियोजनाओं और वहां के नागरिकों की सुरक्षा के लिए अपने सुरक्षाकर्मी तैनात कर पाकिस्तान में अपनी रणनीतिक भूमिका का विस्तार करना चाहता है। सूत्र ने यह भी कहा कि चीन अफगानिस्तान में निवेश करने का इच्छुक है और अपनी बी.आर.आई. परियोजना का विस्तार करना चाहता है। इसलिए पेइचिंग को अपनी सैन्य चौकियों के साथ पाकिस्तान और अफगानिस्तान को सुरक्षित बनाने की जरूरत है। चीन ने पाकिस्तान को शीत युद्ध के दौरान अमरीका और अन्य देशों को चौकी देने के उसके इतिहास की याद दिलाई है। चीन ने पाकिस्तान में भारी निवेश किया है और समय के साथ चौकी और सुरक्षा व्यवस्था की मांग गंभीर होती जा रही है। 

सूत्रों के मुताबिक, पाकिस्तान को चीनी फर्मों को 300 अरब पाकिस्तानी रुपए का भुगतान करना है और अगर बकाया राशि का भुगतान नहीं किया जाएगा, तो इन कंपनियों ने पाकिस्तान को पहले ही बिजली संयंत्रों को बंद करने की धमकी दी है। एक तरफ पाकिस्तान चीन की कर्ज-जाल कूटनीति में फंसा हुआ है, वहीं दूसरी तरफ चीनी प्रशासन उन्हें लगातार याद दिला रहा है कि उन्हें पाकिस्तानी सुरक्षा तंत्र पर भरोसा नहीं है। पाकिस्तान चीन को नाराज नहीं करना चाहता, जिससे वह बार-बार आर्थिक मदद लेता है। हालांकि मांग स्वीकार कर लेने से न केवल इसकी वैश्विक छवि को नुक्सान होगा, बल्कि इससे घरेलू जटिलताएं भी हो सकती हैं। चीनी दबाव के नवीनतम प्रयास ने पाकिस्तान को एक दुविधापूर्ण स्थिति में डाल दिया है, कि वह मांग को मानता है या नहीं, उसे परिणाम भुगतने होंगे।


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