बच्चे वैसा बनेंगे जैसा आप चाहेंगे

punjabkesari.in Saturday, Jan 06, 2024 - 06:21 AM (IST)

अपने आसपास के बच्चों पर नजर डालें। पार्क में खेलते बच्चों को देखें। या स्कूल बस में चढ़ते बच्चों पर ध्यान दें। इनमें से बहुत से बच्चे ऐसे मिलेंगे जो किसी से मिलना-जुलना, बातें करना, साथ खेलना पसंद नहीं करते हैं। वे किसी की मदद करना भी नहीं चाहते। जबकि बहुत से बच्चे ऐसे होते हैं जिनका रवैया दोस्ताना होता है। वे हमेशा दूसरों की मदद करने को आतुर रहते हैं। 

अक्सर हम सोचते हैं कि ऐसा क्यों है। हाल ही में इंटरनैशनल जर्नल ऑफ बिहेवियर में ऐसी बातें छपी हैं जिनसे इन बच्चों के मन को समझा जा सकता है। इसमें बताया गया है कि जिन बच्चों को माता-पिता का प्यार और देखभाल मिलती है, जिनके रिश्ते अपने माता-पिता से बहुत लगाव के होते हैं, वे हमेशा दूसरों की मदद करने में आगे रहते हैं। इनके मुकाबले जिनका बचपन कठिनाइयों, अभाव, मुश्किलों और तनाव से गुजरता है, उनमें दया, उदारता, सहानुभूति जैसे मानवीय गुण कम मिलते हैं। तीन साल तक के जो बच्चे अपने माता-पिता के बहुत निकट होते हैं, उन्हें किशोरावस्था में भी मानसिक समस्याएं कम होती हैं। 

इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि किसी व्यक्ति की समाज के प्रति राय उसके बचपन से तय होती है। इसलिए जरूरी है कि माता-पिता, घर के बड़े लोग बच्चों के सामने अच्छा व्यवहार करें। बच्चे हैं तो गलतियां करेंगे ही, लेकिन छोटी-छोटी गलतियों को नजरअंदाज करना चाहिए। बच्चों के सामने गाली-गलौच न करें। ऐसी भाषा बोलें जो आप उनसे सुनना चाहते हैं। बच्चे अपनी किसी भी उपलब्धि पर तारीफ सुनना चाहते हैं। आखिर घर वाले तारीफ नहीं करेंगे तो कौन करेगा। इसलिए उनकी तारीफ करें और हौसला भी बढ़ाएं। किसी अच्छे काम पर खूब शाबाशी दें। यही नहीं अक्सर माता-पिता भूल जाते हैं कि बच्चे अपमान को बहुत जल्दी महसूस करते हैं, इसलिए उनका अपमान न करें। न ही एक-दूसरे का अपमान करें। 

बच्चों को जैसा बनाना चाहते हैं उनके सामने वैसा ही आचरण करें। शोध के ये निष्कर्ष बहुत महत्वपूर्ण हैं। न केवल माता-पिता बल्कि सभी बड़ों को इनसे सीखना चाहिए। यहां तक कि अध्यापक भी इस रिपोर्ट से बहुत कुछ सीख सकते हैं। जैसा आप चाहेंगे बच्चे वैसे ही बनते हैं, इस संदर्भ में बहुत पहले पढ़ी हुई एक कहानी याद आ रही है। एक राज्य में बहुत नामी चोर रहता था। वह हर रोज चोरी की घटनाओं को अंजाम देता। राज्य की पुलिस उसके पीछे पड़ी रहती लेकिन पकड़ा न जाता। एक दिन चोर ने चोरी की और छत से छलांग लगाई और गिर पड़ा। भाग न सका। पुलिस आ गई और उसे पकड़ कर ले गई। चोर को राजा के सामने पेश किया गया। 

राजा ने सारी बातें सुनकर कहा-इस अपराधी ने हमारे राज्य के लोगों को बहुत तंग किया है। इसलिए इसे ऐसी सजा दी जाएगी कि आगे कोई भी ऐसा न करे जो इसने किया। हम इसे फांसी की सजा देते हैं। कुछ दूर पर चोर की मां भी खड़ी यह सब सुन रही थी। बेटे को फांसी की सजा मिलने की बात सुनकर वह रोने लगी। यह देखकर चोर बोला कि महाराज मुझे अपनी मां के कान में कुछ कहना है। कृपया इजाजत दीजिए। राजा ने इजाजत दे दी। चोर मां के पास पहुंचा और उसने उसका कान काट लिया। यह देखकर राजा चिल्लाया कि अरे ये क्या करते हो। चोर ने कहा-महाराज आज मुझे फांसी की सजा हुई है तो यह रो रही है। 

जरा पूछिए कि जिस दिन मैंने पहली बार चोरी की थी, इसे कान में आकर बताया था और इसने मुझसे बात छिपाने के लिए कहा था। उस दिन ही यह मुझे मना करती तो मैं ऐसा क्यों करता। इसीलिए मैंने इसका कान काटा है। चोर को पछताते देख राजा ने उसे चेतावनी दी कि इस वक्त वह उसे माफ करता है, लेकिन आगे ऐसा किया तो नहीं बचेगा। कहानी का अर्थ यही है कि माता-पिता बच्चों को जैसा बनाना चाहते हैं वैसा ही व्यवहार उनके साथ करें, तभी वे उनके अनुसार ढल सकते हैं। सही करने पर बच्चों की तारीफ करें तो गलती करने पर उन्हें रोकें भी। बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं जिस भी आकार में आप उन्हें ढालना चाहें , वे ढल सकते हैं, लेकिन इसकी पूरी जिम्मेदारी घर वालों पर होती है।-क्षमा शर्मा


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