जलवायु परिवर्तन के कारण बच्चों पर मंडराता खतरा

punjabkesari.in Friday, Aug 27, 2021 - 05:14 AM (IST)

यूनिसेफ की हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के एक अरब से ज्यादा बच्चों पर जलवायु परिवर्तन से खतरा मंडरा रहा है। भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान पर जलवायु परिवर्तन का संकट सबसे अधिक है। यूनिसेफ द्वारा बच्चों पर केन्द्रित क्लाइमेट रिस्क इंडैक्स भी जारी किया गया है, जिसमें इन देशों को जलवायु परिवर्तन के मामले में सबसे ज्यादा जोखिम वाले देशों में शामिल किया गया है। इन जोखिमों में बाढ़, वायु प्रदूषण, चक्रवात और लू शामिल हैं।

क्लाइमेट रिस्क इंडैक्स में बच्चों पर जलवायु व पर्यावरण संबंधी खतरों के जोखिम, उनसे बचाव व आवश्यक सेवाओं तक उनकी पहुंच के आधार पर देशों को क्रमबद्ध किया गया है। दुनिया के एक अरब से ज्यादा बच्चे जलवायु परिवर्तन के उच्च जोखिम वाले 33 देशों में रहते हैं। अनुमान है कि जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन का असर बढ़ेगा, वैसे-वैसे बच्चों का यह जोखिम और बढ़ता जाएगा। 

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस प्रगतिशील दौर में एक तरफ बच्चे अनेक बीमारियों के कारण मौत के मुंह में समा रहे हैं तो दूसरी तरफ विभिन्न विसंगतियों के चलते बच्चों के बचपन पर एक बड़ा खतरा मंडरा रहा है। कुछ वर्ष पूर्व सैंटर फार एडवोकेसी एंड रिसर्च द्वारा जारी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि टी.वी. पर दिखाई जाने वाली हिंसा से बच्चों के दिलो-दिमाग पर प्रतिकूल असर पड़़ रहा है। पांच शहरों में कराए गए इस सर्वेक्षण की रिपोर्ट में बताया गया था कि अनेक ऐसे बच्चे हैं जो भूत और किसी अन्य भटकती आत्मा के भय से प्रताडऩा की जिंदगी जी रहे हैं। 

इस सर्वेक्षण में यह निष्कर्ष निकाला गया कि 75 फीसदी टी.वी. कार्यक्रम ऐसे हैं जिनमें किसी न किसी तरह की हिंसा जरूर दिखाई जाती है। सस्पैंस ,थ्रिलर, हॉरर शो और सोप ओपेरा देखने वाले बच्चे जटिल मनोवैज्ञानिक समस्याओं से प्रभावित हो जाते हैं। एक अध्ययन में जलवायु परिवर्तन और बच्चों में कुपोषण के अंत:संबंधों पर भी शोध हुआ है। पहले कुपोषण का अर्थ शरीर में पोषक तत्वों की कमी होना था लेकिन इस दौर में कुपोषण के अर्थ बदल गए हैं। अब ज्यादा या कम वजन होने का अर्थ भी कुपोषण ही है। 

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में करीब 70 करोड़ बच्चे कुपोषण की चपेट में हैं। यह जरूर है कि वैश्विक स्तर पर कुपोषित बच्चों की संख्या में पहले की अपेक्षा कमी आई है लेकिन लैंसेट की एक रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के कारण भविष्य में कुपोषण की स्थिति और खतरनाक होने की संभावना व्यक्त की गई है। पिछड़े इलाकों में स्वच्छ पेयजल और साफ-सफाई का भी अभाव रहता है। जलवायु परिवर्तन इन्हीं सब कारकों को बढ़ाकर बच्चों के लिए अनेक समस्याएं पैदा करता है। 

आज की महानगरीय जीवन शैली में माता और पिता दोनों ही अपने-अपने कामों में व्यस्त रहते हैं ऐसे में बच्चों को आया या नौकर के सहारे छोड़़ दिया जाता है। व्यावसायिकता के इस दौर में किंडर गार्टन संस्कृति भी खूब फल-फूल रही है। बच्चों के पालन-पोषण के लिए मात्र सुख-सुविधाओं की ही आवश्यकता नहीं होती, बल्कि सबसे अधिक आवश्यकता होती है उस स्नेह की, जो सच्चे अर्थों में उनके अंदर एक विश्वास पैदा करता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज हमने और अधिक पैसा कमाने की होड़ एवंआधुनिक बनने के चक्कर में मानवीय मूल्यों को भी तिलांजलि दे दी है। 

आज यह भी देखने में आ रहा है कि हम अक्सर बच्चों के मनोविज्ञान को समझे बिना अपनी इच्छाएं उन पर थोप देते हैं। ऐसे में बच्चे जिस अंतद्र्वंद्व की अवस्था से गुजरते हैं वह अंतत: अनेक समस्याओं को जन्म देती है। अक्सर यह देखने में आया है कि माता-पिता स्वयं जिस लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाते हैं वे उस लक्ष्य तक अपने बच्चों को पहुंचाने की कोशिश करते हैं। वे इस जुनून में यह भी परवाह नहीं करते कि वास्तव में बच्चे की अपनी इच्छा क्या है? वे यह भी जानने की कोशिश नहीं करते कि बच्चे में उस लक्ष्य तक पहुंचने की क्षमता है भी या नहीं। 

निश्चित रूप से बच्चे के उज्ज्वल भविष्य का स्वप्र देखना और उस स्वप्र को साकार करने का प्रयास करना गलत नहीं है लेकिन यह सब यथार्थ के धरातल पर होना चाहिए। सर्वप्रथम हमें यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि पढ़ाई में बच्चे का स्तर क्या है? इसी आधार पर हमें उसके भविष्य का मार्ग तय करना चाहिए। बच्चों की क्षमता को न देखते हुए किसी एक ही करियर का जुनून पालना गलत तो है ही, बच्चे के प्रति भी अन्याय है। अमूमन होता यह है कि माता-पिता बच्चे के स्तर से अधिक की आशा रखते हैं। ऐसे में आशानुरूप परिणाम न मिलने के कारण माता-पिता के डर से अनेक बच्चे आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाते हैं। बच्चों के बचपन को बचाने के लिए आज विभिन्न स्तरों पर विचार-विमर्श की जरूरत है। बचपन बचाने के लिए वातावरणीय कारणों के साथ-साथ मानवीय कारणों पर भी ध्यान देना होगा, जिसके लिए व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।-रोहित कौशिक 
 


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