सी.डी.एस. के ‘पद’ का क्या औचित्य

punjabkesari.in Thursday, Jan 02, 2020 - 02:26 AM (IST)

30 दिसम्बर 2019 को राजग/भाजपा सरकार ने प्रथम चीफ ऑफ डिफैंस स्टाफ (सी.डी.एस.) की नियुक्ति की घोषणा कर दी। इस नियुक्ति से न केवल रक्षा मंत्रालय बल्कि भारतीय गणराज्य में भी एक नया संस्थान बनाया गया है। इसकी संवैधानिक मंशाएं भी हैं। 

इस निर्णय के निर्यात की भरपूर प्रशंसा करने के लिए आपको पूर्व में झांकना पड़ेगा। 1861-1947 के दरम्यान ब्रिटिश इंडियन आर्मी अथवा सेना में 20 कमांडर-इन-चीफ थे। भारत में सेना का मुख्यालय दिल्ली में 1911 में शिफ्ट कर दिया गया जब राजधानी को कलकत्ता से बदल कर दिल्ली कर दिया गया। ग्रीष्म ऋतु के दौरान मुख्यालय के कुछ भागों को शिमला ले जाया गया क्योंकि ब्रिटिश सरकार दिल्ली की गर्मी को सहन नहीं कर पाती थी। द्वितीय विश्व युद्ध की शुरूआत पर सेना मुख्यालय को जनरल हैडक्वार्टर-इंडिया कमांड के तौर पर पुन: नामित कर दिया गया। 

जनरल हैडक्वार्टर-इंडिया वास्तव में 15 अगस्त 1947 तक रहा। उसके बाद पाकिस्तानी सेना का नया मुख्यालय भारतीय सेना की उत्तरी कमांड में से बनाया गया और  फिर भारतीय सेना के नए मुख्यालय ने दिल्ली में हैडक्वार्टर को टेकओवर कर लिया। भारत में सेना के अंतिम कमांडर-इन-चीफ फील्ड मार्शल आचिनलेक को सेना का सुप्रीम कमांडर नियुक्त किया गया, जिन्होंने भारत तथा पाकिस्तान की नई सेनाओं को जिम्मेदारियां स्थानांतरित करनी थीं। इसके साथ-साथ सुप्रीम कमांडर को ब्रिटिश सेना के यूनिट तथा उसके पूर्व अधिकारियों के साथ-साथ ब्रिटिश इंडियन आर्मी के लोगों की वापसी को संगठित करना भी था। 

15 अगस्त 1947 को भारत तथा पाकिस्तान दोनों ने अपनी सेनाओं का नियंत्रण ले लिया। 15 अगस्त से आचिनलेक सुप्रीम कमांडर के तौर पर पुन: नामित किए गए ताकि दोनों देशों के नए कमांडर्स-इन-चीफ के साथ कोई तकरार न हो। 11 अगस्त 1947 के ज्वाइंट डिफैंस कौंसिल आर्डर के तहत आचिनलेक के अधिकार सीमित कर दिए गए। उनके पास कानून व्यवस्था को देखने की कोई जिम्मेदारी नहीं थी और न ही किसी भी यूनिट को नियंत्रण करने का आदेश था। इन सीमित अधिकारों के बावजूद वह दोनों देशों के सहयोग पर निर्भर थे। हालांकि उन्होंने कानूनी संवैधानिक अधिकार का नेतृत्व किया। 

1 दिसम्बर 1947 को फील्ड मार्शल आचिनलेक की औपचारिक सेवानिवृत्ति के साथ ही सुप्रीम कमांडर का कार्यालय शांतमयी ढंग से बंद हो गया। 1947 में मेजर जनरल एम.जी. व्हिस्लर भारत में जनरल आफिसर कमांङ्क्षडग ब्रिटिश ट्रूप्स नियुक्त हुए तथा अंतिम ब्रिटिश यूनिट तक इस पद पर रहे। समरसैट लाइट इन्फैंट्री-प्रिंस अल्बर्टवास की एक बटालियन 28 फरवरी 1948 को भारत छोड़ गई। दूसरी बटालियन द ब्लैक वॉच- रॉयल हाईलैंड रैजीमैंट जोकि अंतिम ब्रिटिश आर्मी यूनिट था, ने पाकिस्तान को 26 फरवरी 1948 को छोड़ दिया। 1947-1955 तक भारतीय सेना प्रमुख के पद  को कमांडर-इन-चीफ के तौर पर जाना जाता था। हालांकि 1955 में सरकार द्वारा जागरूकता से एक निर्णय लिया गया तथा इस पद का नाम चीफ ऑफ द आर्मी स्टाफ रख दिया। जनरल राजेन्द्र सिंह जी जडेजा भारतीय सेना के अंतिम कमांडर-इन-चीफ तथा फस्र्ट चीफ ऑफ द आर्मी स्टाफ थे। 

यह कहना उचित होगा कि 1955 तक सेना प्रमुख को कमांडर-इन-चीफ के नाम से बुलाया जाता था। यह पद भारतीय सेना तक ही सीमित था। वहीं वायुसेना तथा नौसेना को उनके संबंधित कमांडरों ने कमांड किया। 64 साल बाद 24 दिसम्बर 2019 को प्रैस इन्फार्मेशन ब्यूरो (पी.आई.बी.) ने कैबिनेट द्वारा चीफ ऑफ डिफैंस स्टाफ की नियुक्ति का कैबिनेट द्वारा रास्ता साफ किए जाने का एक प्रैस रिलीज जारी किया, जिसमें यह कहा गया, ‘‘निम्रलिखित क्षेत्र सी.डी.एस. की अध्यक्षता में सैन्य मामलों के विभाग द्वारा देखे जाएंगे। देश के सुरक्षा बल जिसमें सेना, नौसेना तथा वायु सेना शामिल हैं, रक्षा मंत्रालय का मुख्यालय जिसमें सेना मुख्यालय, नौसेना मुख्यालय, वायु सेना मुख्यालय तथा डिफैंस स्टाफ मुख्यालय शामिल थे, को संगठित कर दिया गया था। 

सैन्य मामलों के विभाग के प्रमुख के तौर पर रहते हुए चीफ ऑफ डिफैंस स्टाफ चीफ’स ऑफ स्टाफ कमेटी के स्थायी चेयरमैन भी होंगे। वह रक्षा मंत्री के तीनों सेनाओं के प्रमुख सैन्य सलाहकार का कार्य भी करेंगे। तीनों सेना प्रमुख रक्षा मंत्री को अपने संबंधित सेवाओं के मामलों पर परामर्श देते रहेंगे। सी.डी.एस. किसी भी सैन्य कमांड का उपयोग नहीं करेगा, ऐसा इसलिए होगा ताकि वह राजनीतिक नेतृत्व को निष्पक्ष परामर्श दे सके।’’ यहां पर एक परस्पर विरोध है कि भारत सरकार का सचिव सैन्य मामलों के विभाग का जिम्मा भी सम्भालता है तथा थल सेना, नौसेना तथा वायु सेना के ऊपर देखरेख भी करता है। 

भारत के राष्ट्रपति तीनों सेनाओं के सुप्रीम कमांडर हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 53 (2) घोषणा करता है कि सैन्य बलों की  सुप्रीम कमांड राष्ट्रपति के हाथ में होगी। तब यह सवाल उठता है कि चीफ ऑफ डिफैंस स्टाफ की स्थिति क्या है, जबकि भारत के राष्ट्रपति सुप्रीम कमांडर हैं। इसके अलावा और भी सवाल हैं जिन पर गहराई से ध्यान दिया जाना है। क्या सी.डी.एस. का परामर्श तीनों सेना प्रमुखों की सलाह से ऊपर है? क्या सी.डी.एस. स्टाफ कमेटी के ज्वाइंट चीफ के स्थायी चेयरपर्सन होंगे, जबकि तीनों सेना प्रमुख 4 स्टार अधिकारी हैं? क्या तीनों सेना प्रमुखों की रक्षा मंत्री को रिपोर्ट अब रक्षा सचिव अथवा सी.डी.एस. के माध्यम से दी जाएगी। 

एक सिद्धांत के अनुसार सॢवस चीफ की रिपोर्ट रक्षा मंत्री को सीधी जाती है। जबकि अमल के तौर पर सभी फाइलें तथा निर्णय रक्षा सचिव के माध्यम से ही भेजे जाते हैं। तब सी.डी.एस. के पद का क्या औचित्य होगा। क्या ट्रांजैक्शन ऑफ बिजनैस रूल्स के नियम 11 के तहत रक्षा सचिव रक्षा मंत्रालय के प्रशासनिक प्रमुख के तौर पर कार्य करना जारी रखेगा। प्रस्तावित सैन्य मामलों के विभाग का शासनादेश क्या होगा। सिविल मिलिट्री रिलेशन के लिए सी.डी.एस. की नियुक्ति के निहितार्थ क्या होंगे?-मनीष तिवारी


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