रक्षा बजट के लिए अधिक आबंटन समय की पुकार

punjabkesari.in Sunday, Feb 06, 2022 - 06:19 AM (IST)

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 31 जनवरी को पेश किए आर्थिक सर्वेक्षण में वर्ष 2022-23 के लिए सकल घरेलू उत्पादन अर्थात जी.डी.पी. की 8 से  8.5 प्रतिशत की विकास दर का अनुमान लगाया जोकि 2021-22 के 9.2 प्रतिशत विकास दर के अनुमान से कम है। आर्थिक सर्वेक्षण के साथ यदि देश की सुरक्षा चुनौतियों का जायजा लिया जाए तो पता चलेगा कि चीन द्वारा अपनी सीमाओं से संबंधित रक्षा नीति वाले कानून बनाने से उसकी विस्तारवादी सोच को प्रोत्साहन मिलेगा जिसका प्रभाव भारत-चीन की 3488 कि.मी. ल बी सीमा पर भी पडऩा शुरू हो गया है। 

पहले शी जिनपिंग की सरकार का नेपाल में दखल, फिर अरुणाचल प्रदेश में घुसपैठ के प्रयास तथा सीमांत क्षेत्र में गांवों का निर्माण, अब भारत-भूटान के साथ लगते क्षेत्र में भी गांवों का निर्माण, भारत-प्रशांत महासागर में बढ़ता चीन का प्रभाव, परमाणु हथियारों का विस्तार, पेइचिंग का साइबर सुरक्षा पर ध्यान, ड्रोन वारफेयर, चीन-पाकिस्तान तथा अधिकतर दक्षिण एशियाई देशों के साथ रणनीतिक-आर्थिक सांझेदारी, यांमार में सैन्य प्रशासन, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा, एल.ए.सी. तथा एल.ओ.सी. पर तनावपूर्ण स्थिति जैसे पहलू देश की सुरक्षा नीति तथा बजट पर प्रभाव डालने वाले हैं। 

अभी ये पंक्तियां लिखी जा रही थीं कि यह खबर पढऩे को मिली कि पेइचिंग में होने वाले शीतकालीन ओलिम्पिक्स में गलवान घाटी की 15 जून 2020 वाली झड़प के कमांडर को ओलम्पिक मशाल वाहक के तौर पर स मानित करने वाले चीन के फैसले का विदेश मंत्रालय ने चीन को करारा जवाब देते हुए ओलम्पिक का बहिष्कार करने का फैसला सुनाया। ऐसा करने से चीन ने आग पर घी डालने का काम किया है जोकि सैन्य प्रमुख जनरल एम.एम. नरवणे को भविष्य के संघर्ष का ट्रेलर दिखाई देता है, इसलिए राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियां हमेशा रक्षा बजट की कमी को उजागर करती रहेंगी। 

रक्षा बजट
वित्त मंत्री ने 1 फरवरी को वित्तीय वर्ष 2022-23 का जो बजट संसद में पेश किया उसके अनुसार रक्षा बजट के लिए 5.25166 करोड़ रुपए की व्यवस्था की गई है, जबकि चालू वित्तीय वर्ष के लिए यह 4.78196 करोड़ रुपए था। अर्थात करीब 47,000 करोड़ रुपए की वृद्धि जोकि 9.7 प्रतिशत बनती है जो महंगाई में ही खपत हो जाएगी। इस सुरक्षा बजट में 1.19696 करोड़ रुपए का पैंशन बजट भी शामिल है जिसे यदि कुल बजट से निकाल कर देखा जाए तो बाकी 4.0547 करोड़ रुपए ही बचते हैैं। 

वायु सेना के लिए 55,586 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं और रक्षा क्षेत्र के विकास व खोज के लिए (डी.आर.डी.ओ.) 11,941 करोड़ रुपए की राशि आरक्षित है। इसके अतिरिक्त कोस्टगार्ड तथा बार्डर रोड आर्गेनाइजेशन (बी.आर.ओ.) भी इस बजट का हिस्सा हैं। 

रैवेन्यू मद में 2.33 लाख करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं, जबकि गत वर्ष यह रकम 2.27 लाख करोड़ रुपए थी, अर्थात मामूली 5,000 करोड़ रुपए की वृद्धि। इस मालिया फंड से ही लगभग 15 लाख वाली सेना के जवानों, अधिकारियों तथा सिविलियनों के वेतनों तथा भत्तों आदि का खर्च होगा। इसके साथ ही गाडिय़ों, तोपों, जहाजों, पनडुब्बियों आदि हर किस्म के उपकरणों की देख-रेख, तेल वगैरा के खर्चों की पूर्ति भी इसी मद से होगी। 

कैपिटल हैड
इस पूंजीगत हैड के अंतर्गत 1.52369 करोड़ रुपए की व्यवस्था की गई है, जबकि वर्ष 2021-22 के लिए  यह 1.35060 करोड़ रुपए थी, अर्थात 17308 करोड़ रुपए (12.18 प्रतिशत) की वृद्धि। इसी फंड के अंतर्गत सेनाओं के आधुनिकीकरण के लिए हथियार, तोपें, टैंक, जहाज, पनडुब्बियों आदि की फरीद-फरो त, आधारभूत ढांचे की वृद्धि तथा विकास होगा। बजट की विशेष बात यह रही कि कैपिटल हैड के अंतर्गत 68 प्रतिशत हिस्सा स्वदेशी हथियारों की खरीद-फरो त तथा निर्माण पर खर्च होगा, जैसे कि तेजस जैसे हल्के लड़ाकू विमान, अर्जुन टैंक, विभिन्न किस्म की मिसाइलें तथा अन्य आधुनिक हथियार शामिल हैं। रक्षा खोज तथा विकास के बजट का 25 प्रतिशत हिस्सा स्टार्टअप के निजी क्षेत्र के लिए रखा गया है। 

बाज वाली नजर
इसमें कोई संदेह नहीं कि लाल फीताशाही की नजरों में पैंशन बजट बहुत खटकता है। अभी तो मंजूरशुदा स्कीम के अनुसार ओ.आर.ओ.पी. की बराबरी अप्रैल 2019 से लागू होनी थी जोकि अभी तक नहीं हुई और सुप्रीमकोर्ट में केस लंबित है। गत एक वर्ष से सेना में भर्ती भी बंद पड़ी है जिस कारण सेना में जवानों व अधिकारियों की कमी बढ़ती जा रही है जिसका असर विशेष तौर पर सीमाओं पर तैनात देश के रखवालों पर पडऩा स्वाभाविक है। 

इसके साथ ही जवानों के परिवारों के लिए मकानों की कमी का प्रभाव जवानों के मनोबल पर पड़ता है, जिसके लिए फंड की जरूरत होगी। सी.एस.डी. कैंटीनें बंद कर दी गई हैं और बड़ी कैंटीनों में सामान की कमी है। इसके साथ ही ई.सी.एच.एस. में दवाओं के बजट की कमी के कारण शहीदों के परिवारों, पूर्व सैनिकों को परेशानी हो रही है। इस किस्म के छिपे पहलू हैं जोकि सैनिक परिवारों तथा पूर्व सैनिकों को प्रभावित करते हैं जिसकी ओर सरकार ध्यान दे। 

उल्लेखनीय है कि पूंजीगत फंड के अंतर्गत हथियारों की आपूॢत से पहले ही मंजूरशुदा प्रोजैक्टों की अदायगी, जैसे कि 36 राफेल लड़ाकू विमान की प्रारंभिक कीमत 60,000 करोड़ रुपए, तोपों, टैंकों, मिसाइलों, एस 400 एयर डिफैंस मिसाइल सिस्टम के लिए 4500 करोड़ रुपए तथा अन्य अनेकों सौदों की अदायगी अभी बाकी है, तो क्या पूंजीगत हैड के अंतर्गत 1,52,369 करोड़ रुपए की राशि सैन्य जरूरतें पूरी कर सकेगी? यदि देश सुरक्षित है तो ही विकास संभव होगा। देश की दिनों-दिन बढ़ रही सुरक्षा चुनौतियों के मद्देनजर सशस्त्र सेनाओं के लिए जी.डी.पी. का कम से कम 2.5 से 3 प्रतिशत हिस्सा रक्षा बजट के लिए समय की पुकार है। सरकार इन मुद्दों पर ध्यान दे।-ब्रिगे. कुलदीप सिंह काहलों (रिटा.)


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