‘सी.ए.ए. का मसला’ संवेदनशील, राजनीतिक और सामाजिक

punjabkesari.in Wednesday, Mar 04, 2020 - 01:47 AM (IST)

सी.ए.ए. विरोधी प्रदर्शन एक भयंकर दौर में प्रवेश कर गए हैं। अदालतें इसका संज्ञान ले रही हैं। हालांकि इनकी समाप्ति कोर्ट के फैसले के बाद हो जाएगी, मगर न्यायिक प्रक्रिया लम्बी चल रही है। अभी तक प्रदर्शनकारी नेतृत्व विहीन तथा किसी संगठनात्मक ताकत के बिना हैं। दिल्ली में पुलिस की प्रदर्शनकारियों पर दमनकारी नीति ने आंदोलन को देश के अन्य भागों में फैलने में मदद की है। हालांकि प्रदर्शन कुछ हिस्सों में उग्र हुए थे। 

सी.ए.ए. विरोधी आंदोलन से किसी महत्वपूर्ण नेता ने जन्म नहीं लिया
जे.पी. आंदोलन ने लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव तथा नीतीश कुमार जोकि बाद में क्षेत्रीय नेता बन गए जैसे कई सामाजिक नेताओं को जन्म दिया। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से उभर कर आए। हालांकि मुद्दा भावपूर्ण है मगर सी.ए.ए. विरोधी आंदोलन से किसी महत्वपूर्ण नेता ने जन्म नहीं लिया। प्रभावी नेतृत्व तथा समॢपत कार्यकत्र्ताओं की अनुपस्थिति में प्रदर्शनकारी बिखर कर रह गए, जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इन प्रदर्शनों को उकसाने का कांग्रेस तथा वामदलों पर आरोप लगाया है।

विपक्षी पार्टियों के पास अब मौका है कि वह इन प्रदर्शनों को लेकर मोदी सरकार को घेरें। मगर उन्हें अपने कदम पीछे खींचने की बजाय आगे आना होगा तथा सी.ए.ए. के खिलाफ सशक्त विरोधी बनना होगा। इस मुद्दे को शांतिपूर्ण तथा व्यावहारिक तरीके से कुशल नेतृत्व के साथ निपटना होगा। दिल्ली हिंसा में 42 मौतें रिकार्ड की गई हैं तथा इसमें कई घायल भी हुए हैं। इस तरह की नासमझ ङ्क्षहसा कहीं भी फैल सकती है क्योंकि सरकार सी.ए.ए. पर पीछे मुडऩे को तैयार नहीं। वह पूरी तरह से दृढ़संकल्प है और यदि सरकार बातचीत करने को तैयार हो भी जाए तब यह सवाल उठता है कि आखिर वह किसके साथ बातचीत का दौर शुरू करे? 

कांग्रेस इस क्षण को भुनाने तथा प्रदर्शनों का नेतृत्व करने में असफल रही
यहां पर कांग्रेस पार्टी मौके को गंवा रही है। देश की सबसे पुरानी पार्टी होने के नाते कांग्रेस इस क्षण को भुनाने तथा प्रदर्शनों का नेतृत्व करने में असफल रही है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कांग्रेस इस समय पार्टी के भीतर ही नेतृत्व संकट से जूझ रही है। दूसरी बात यह है कि कांग्रेस विश्वसनीय धर्मनिरपेक्ष कहानी के उस ङ्क्षबदू का निर्माण करने में असमर्थ रही है, जिसने भारतीय संविधान को बनाने में अपना प्रमुख योगदान उपलब्ध करवाया था। लाखों की संख्या में प्रदर्शनकारी संविधान की प्रस्तावना को गुनगुना रहे हैं जिसने कि धर्मनिरपेक्षता के विचार को ताजगी दी है। तीसरा यह कि कांग्रेस अपनी विचारधारा के बारे में स्पष्ट नहीं, जबकि भाजपा अपनी हिंदुत्व विचारधारा को सफलतापूर्वक प्रोजैक्ट करने में सफल हुई। 

वर्तमान में कांग्रेस 7 राज्यों महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, पुड्डुचेरी, राजस्थान आदि में सत्ता पर काबिज है। वह इन राज्यों में आसानी से अपना प्रभाव छोड़ सकती है। कई गैर भाजपा मुख्यमंत्रियों ने घोषणा कर रखी है कि वह सी.ए.ए. तथा एन.आर.सी. को अपने राज्यों में लागू नहीं करेंगे। इस हलचल में कांग्रेस पार्टी अन्य विपक्षी दलों से समर्थन हासिल करने में नाकाम रही है। पिछले माह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 19 विपक्षी पार्टियों की बजट सत्र से पूर्व बैठक बुलाई थी मगर प्रमुख पार्टियां जैसे तृणमूल कांग्रेस, सपा, बसपा तथा कांग्रेस की सहयोगी द्रमुक ने इससे दूरी बनाई थी। इससे पहले सोनिया गांधी ने कहा था कि कांग्रेस कार्यकारी कमेटी (सी.डब्ल्यू.सी.) को नि:संदेह यह घोषणा करनी चाहिए कि लाखों कांग्रेसी कार्यकत्र्ता समानता, न्याय तथा गरिमा की लड़ाई में भारत के लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होंगे। 

कांग्रेस पार्टी ने पिछली 28 दिसम्बर को अपने 135वें स्थापना दिवस पर फ्लैग मार्च आयोजित किए थे। राष्ट्रपति के संयुक्त सत्र को सम्बोधित करने के दौरान कांग्रेसी सांसदों ने दोनों सदनों में काले बैज बांध रखे थे। सी.ए.ए. विरोधी प्रदर्शनकारियों के साथ सहानुभूति दर्शाने के उद्देश्य से सोनिया गांधी ने संसद परिसर में महात्मा गांधी के बुत के निकट एक प्रदर्शन का नेतृत्व किया था। उच्च स्तरीय कांग्रेस शिष्टमंडल ने राष्ट्रपति से मुलाकात की थी तथा उन्हें सी.ए.ए. को वापस लेने तथा इसमें दखलअंदाजी करने की गुहार लगाई थी। सवाल यह है कि क्या यह सब बातें काफी हैं या फिर ऐसी बातों ने भाजपा के ऊपर कोई असर छोड़ा है जोकि कांग्रेस पर इन प्रदर्शनों के लिए उकसाने का आरोप लगा रही है। 

विपक्ष बंट कर रह गया
यहां मुश्किल यह है कि विपक्ष बंट कर रह गया है। उसे भाजपा तथा मोदी सरकार की जबरदस्त मुहिम का जवाब देना होगा जोकि हिंदू प्रतिक्रिया को उत्पन्न कर सकती है। मोदी सरकार दंगों तथा अन्य मानवीय अधिकारों के मुद्दों पर विदेश मीडिया में चल रहे नकारात्मक तथा अनाकर्षक प्रचार से निपटने की कोशिश कर रही है। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ महाभियोग पर हुई वोटिंग के दिन अमरीका के तीन सबसे प्रभावशाली समाचार पत्रों ‘द न्यूयार्क टाइम्स’, ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ तथा ‘द वाल स्ट्रीट जर्नल’ के फ्रंट पेज पर आलोचनात्मक तथा अनाकर्षक कहानियां छपी थीं। 

बजट सत्र का दूसरा भाग सोमवार से शुरू हो चुका है मगर अभी तक विपक्षी एकता का कोई प्रमाण दिखाई नहीं दे रहा क्योंकि ममता बनर्जी तथा मायावती कांग्रेसी नेतृत्व के अधीन कार्य करने को तैयार नहीं। अब सवाल यह उठता है कि आखिर इसकी शुरूआत करेगा कौन? वामदल भी इस बात से नाराज हैं कि कांग्रेस अकेले ही राष्ट्रपति से मिल आई। क्योंकि सी.ए.ए. मुद्दा भावपूर्ण, संवेदनशील, राजनीतिक तथा सामाजिक है इसलिए यह सब बातें यह दर्शा रही हैं कि कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों ने एक मौका गंवा दिया। उन्हें पहले कदम उठाने की जरूरत थी।-कल्याणी शंकर 
 


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