सी.ए.ए.-एन.आर.सी. : सरकार के लिए कुछ अहम ‘सवाल

punjabkesari.in Wednesday, Dec 25, 2019 - 02:07 AM (IST)

संसद में जब गृह मंत्री अमित शाह द्वारा नागरिक संशोधन कानून (सी.ए.ए.) 2019 पेश किया गया तब उन्होंने संसद में कहा कि एन.आर.सी. को पूरे देश में लागू किया जा रहा है। झारखंड विधानसभा चुनावों के दौरान आयोजित रैलियों में उन्होंने कहा कि एन.आर.सी. को 2024 के चुनावों से पहले पूरा कर लिया जाएगा तथा सभी ‘घुसपैठियों’ को देश से बाहर निकाल दिया जाएगा।

हालांकि पिछले 10 दिनों से देश भर में चल रहे विरोध-प्रदर्शन के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली के रामलीला मैदान में कहा कि एन.आर.सी. पर कोई भी बातचीत नहीं हुई है, कोई भी कानून नहीं बनाए गए तथा यह मामला संसद तथा कैबिनेट में नहीं लाया गया। यहां तक कि कुछ समाचार पत्रों में छपे विज्ञापनों में यह व्याख्या की गई है कि कोई भी राष्ट्रव्यापी एन.आर.सी. की घोषणा नहीं हुई। यदि और जब भी घोषणा होगी तो नियमों तथा मापदंडों को ऐसा बनाया जाएगा कि किसी भी भारतीय नागरिक को किसी प्रकार की परेशानी न झेलनी पड़े। प्रधानमंत्री के स्पष्टीकरण का स्वागत है। हालांकि कुछ एहतियात बरती गई है तथा सरकार को सी.ए.ए./एन.आर.सी. पर लोगों का और ज्यादा विश्वास जीतने के लिए और भी बहुत कुछ करना पड़ेगा।

भारत का नागरिक कौन है?
नागरिक कानून 1955 की धारा 3 के अन्तर्गत आप नागरिक हैं।

1. यदि भारत में आपका जन्म 1 जुलाई 1987 से पूर्व हुआ, तब भी कोई फर्क नहीं पड़ता यदि आपके माता-पिता भारतीय थे तब आपको भारतीय ही माना जाएगा।

2. यदि भारत में आपका जन्म 1 जुलाई 1987 के बाद लेकिन 3 दिसम्बर 2004 तक हुआ तथा आपके माता-पिता में से एक भारतीय नागरिक था।

3. यदि भारत में आपका जन्म 1 जुलाई 1987 के बाद लेकिन 3 दिसम्बर 2004 तक हुआ तथा आपके माता-पिता में से एक भारतीय नागरिक था तथा दूसरा गैर-कानूनी प्रवासी नहीं था।

वाजपेयी सरकार द्वारा नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए 2003 में आवश्कताओं को प्रस्तुत किया गया। इसमें कहा गया है कि माता-पिता में से एक को अवैध प्रवासी नहीं होना चाहिए। यह एक धार्मिक संशयवादी आवश्यकता थी। मिसाल के तौर पर गैर-कानूनी प्रवासी किसी भी धर्म से संबंधित व्यक्ति हो सकता है जो विदेशी है तथा जो भारत में बिना वैध पासपोर्ट के दाखिल हुआ।

एन.आर.सी. प्रक्रिया क्या है तथा क्या कोई चिंता करने की जरूरत है?
माननीय गृह मंत्री ने संसद के बाहर कई भाषणों के दौरान कहा था, ‘‘एन.आर.सी. के लिए किसी भी पृष्ठभूमि की आवश्यकता नहीं। यह स्पष्ट है कि एन.आर.सी. देश में लागू होगा।’’ प्रधानमंत्री मोदी ने अब यह यकीनी बना दिया है कि एन.आर.सी. पर कोई बात नहीं है तथा इसके लिए कोई नियम नहीं हैं। इसलिए कानूनी हालात क्या होंगे? नागरिकता संशोधन 2003 जिसने धारा 14-ए का परिचय करवाया, यह बताता है, ‘‘केन्द्र सरकार भारतीय नागरिकों का एक नैशनल रजिस्टर बना कर रखेगी।’’

संशोधन के अंतर्गत, नागरिकता (रजिस्ट्रेशन ऑफ सिटीजन्स एंड इश्यू ऑफ नैशनल आईडैंटिटी काडर््स) नियम 2003 (नैशनल आईडैंटिफाई कार्ड रूल्स) को पहले ही जारी किया जा चुका है। नियम 6 के अंतर्गत सिटीजन रजिस्ट्रेशन का रजिस्ट्रार जनरल यह नोटीफाई करता है कि प्रत्येक व्यक्ति स्थानीय रजिस्ट्रार के साथ अपने आपको पंजीकृत करवाए। इसलिए जब तक नोटीफिकेशन जारी नहीं होती तब तक कोई एन.आर.सी. नहीं हो सकता। हालांकि सरकार संसद में मामला उठाए जाने की जरूरत के बिना नोटीफिकेशन को जारी कर सकती है। इसलिए यह आवश्यक बन जाता है कि सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि वह सभी राजनीतिक पार्टियों के साथ समझौते तथा आम सहमति के बिना कोई भी नोटीफिकेशन जारी नहीं करेगी।

सरकार के लिए यह भी अनिवार्य है कि वह स्पष्ट करे कि यदि एन.आर.सी. पर अभी कोई बात नहीं हो रही तो वह नैशनल पापुलेशन रजिस्टर (एन.पी.आर.) को क्यों अपडेट कर रही है। कुछ शंकाओं को स्पष्ट करने के लिए यह कहना जरूरी है कि एन.पी.आर. का आधार से कोई लेना-देना नहीं। आधार एक अलग तथा एन.पी.आर. एक अलग प्रक्रिया है। एन.पी.आर. प्रक्रिया मात्र किसी अन्य विधेयक के अंतर्गत नहीं बल्कि नैशनल आईडैंटिटी कार्ड रूल्स के तहत प्रदान की गई है।

नियमों के अनुसार एन.पी.आर. का गठन पहले होगा तथा इसके विवरणों को स्थानीय रजिस्ट्रार द्वारा सत्यापित किया जाएगा, उसके बाद एन.पी.आर. से करवाया जाएगा। नामों को जांचने के बाद एन.आर.सी. को भेजा जाएगा। इसलिए यदि आपका नाम एन.पी.आर. में नहीं है तब यह एन.आर.सी. में भी नहीं होगा। इस कारण यह लाजिमी है कि एन.पी.आर. को इसकी महत्ता की जागरूकता को फैलाने के बाद ही इसे उपयोग में लाया जाएगा। कई लोगों को आधार से जोड़ा गया है तथा उनके पास उनका आधार नम्बर है। हालांकि जहां तक एन.पी.आर. का सवाल है इसमें यह पारदर्शिता नहीं है कि किसका नाम एन.पी.आर. में है या नहीं।

एन.पी.आर. को पहले से ही 2010 तथा 2015 में एक घर से दूसरे घर तक गणना कर उपयोग में लाया गया है और यदि प्रत्येक व्यक्ति जिसने एन.पी.आर. फार्म को भरा है तब उसे स्वीकृति स्लिप दी गई। हालांकि लेखक तथा अन्यों को इस प्रक्रिया के लाभों का हिस्सा नहीं बनाया गया और उसने लोगों का ध्यान अपनी ओर आकॢषत नहीं किया जैसा कि होना चाहिए था। अब सरकार ने 31 जुलाई 2019 को यह माना है कि एक अप्रैल 2020 से लेकर 30 सितम्बर 2020 की अवधि में एन.पी.आर. को अपडेट किया जाएगा। सरकार के लिए यह सवाल खड़ा होता है कि यदि एन.आर.सी. की कोई योजना नहीं तो फिर एन.पी.आर. को अब अपडेट क्यों किया जा रहा है? हालांकि एन.पी.आर. तथा एन.आर.सी. की प्रक्रिया को बदलने के लिए नियमों में स्पष्ट तौर पर वरतनी नहीं की गई। नैशनल आईडैंटिटी कार्ड रूल्स का नियम 4 कहता है, ‘‘वैरिफिकेशन प्रक्रिया के दौरान ऐसे व्यक्तियों का लेखा-जोखा जिनकी नागरिकता पर शंका थी, को स्थानीय रजिस्ट्रार के पास पापुलेशन रजिस्टर में अन्य पूछताछ (यदि कोई शंका हो तो) के लिए सही टिप्पणी के साथ दर्ज किया जाएगा।’’

जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि सरकार ने उन दस्तावेजों का पूरी तरह व्याख्यान नहीं किया, जिनकी एन.आर.सी. उपयोग के लिए वैरीफिकेशन किए जाने की जरूरत थी। हालांकि एक जुलाई 1987 से पूर्व जन्मे लोगों के लिए नागरिकता का प्रमाण देना आसान था। उनको केवल अपनी जन्म तिथि तथा जन्म का स्थान देने की जरूरत थी। हालांकि एक जुलाई 1987 के बाद जन्मे लोगों के लिए नागरिकता का प्रमाण देने का मतलब माता-पिता में से एक के नागरिक होने के सबूत का रिकार्ड देना था तथा जिनका जन्म 3 दिसम्बर 2004 के बाद हुआ उनके लिए दोनों माता-पिता को नागरिक होने का अधिकार देना जरूरी था। इस अवस्था में दोनों माता-पिता में से किसी को भी गैर-कानूनी प्रवासी नहीं होना चाहिए था।

इसलिए सरकार को एन.पी.आर.-एन.आर.सी. की प्रक्रिया से पहले कुछ बातों को स्पष्ट करने की जरूरत थी:

(क) नागरिकता तथा जन्म स्थान के प्रमाण की जरूरत के लिए किन दस्तावेजों की आवश्यकता है? इसमें कई विरोधाभास वाले बयान सामने आए हैं, जिसमें माननीय गृह मंत्री का एक साक्षात्कार भी शामिल है, जिसमें उन्होंने कहा था कि वोटर आई.डी. तथा आधार होना नागरिकता का प्रमाण नहीं है।

(ख) एक व्यक्ति को कैसे ढूंढा जा सकता है

यदि उसका नाम एन.पी.आर. डाटा में 2015

तक अपडेट किया गया है?

(ग) एन.पी.आर. तिथि को दिखाने का क्या अभिप्राय: है तथा इसको कैसे संरक्षित किया जा सकता है?

(घ) एन.पी.आर. को एन.आर.सी. में बदलने हेतु क्या दिशा-निर्देश होंगे?

क्या होगा यदि आप एन.आर.सी. में शामिल नहीं किए गए?
असम में एन.आर.सी. में शामिल न होने के परिणाम काफी घातक हैं। असम में यदि आपका नाम एन.आर.सी. में नहीं है तब आपको फॉरनर्स ट्रिब्यूनल के पास भेजा जाएगा और यदि आपने अपनी नागरिकता को प्रमाणित नहीं किया तो आप को फॉरनर्स एक्ट 1948 के तहत ‘विदेशी’ करार दे दिया जाएगा। इस संदर्भ में करीब 400 ट्रिब्यूनल हैं जो असम में आवेदनों से डील करने के लिए स्थापित किए गए हैं। एन.आर.सी. के बाहर 19 लाख लोग दिखाई देते हैं।

माननीय प्रधानमंत्री ने कहा है कि भारत में नजरबंदी केन्द्र नहीं हैं तथा इनको लेकर अफवाहें फैलाई जा रही हैं। हालांकि विदेशियों से निपटने हेतु कानूनी ढांचा फारनर्स एक्ट 1946 की धारा 3 (2) के तहत सरकार के पास यह अधिकार है कि वह किसी भी विदेशी को पकड़ सकती है। गृह मंत्रालय ने सांसद हुसैन दलवी द्वारा उठाए गए एक प्रश्र के संबंध में लिखित रूप में यह दावा किया, ‘‘केन्द्र सरकार ने मॉडल डिटैंशन सैंटर/होल्डिंग सैंटर मैनुअल को सभी राज्य सरकारों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों को 9.1.2019 को भेज दिया तथा गृह मंत्रालय द्वारा जारी विभिन्न हिदायतों को समय-समय पर नजरबंद केन्द्रों की स्थापना हेतु फिर से दोहरा दिया।’’ यह बयान कि किसी भी भारतीय को नजरबंद केन्द्र में नहीं रखा जाएगा, यह कोई आश्वासन नहीं है। सख्त बयान है। जो यह अनुमान लगाता है कि एक भारतीय नागरिक एन.आर.सी. को लेकर वैरीफिकेशन की आवश्यकताओं को पूरा करेगा। यदि सरकार इस मामले पर अपनी स्थिति स्पष्ट करना चाहती है तो उसको यह कहना चाहिए कि :

(1) यदि प्रत्येक राज्य में एन.आर.सी. को जांचने के लिए अवैध प्रवासियों के अनुमान को पूरे भारत वर्ष में दिखाना होगा।

(2) एन.आर.सी. के लिए अपेक्षित दस्तावेज को निर्दिष्ट करना होगा।

(3) सरकार को विदेशी कानून में संशोधन करना चाहिए तथा यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि जो एन.आर.सी. के बाहर रह गए हैं उनको विदेशी नहीं माना जाएगा तथा उनसे विदेशी कानून के तहत निपटा नहीं जाएगा।

नागरिकता संशोधन कानून 2019 का अभिप्राय: क्या?
नागरिकता संशोधन कानून 2019 से यह अभिप्राय: है कि वे लोग जो हिन्दू, सिख, पारसी, जैन, बौद्ध तथा ईसाई समुदाय से संबंधित हैं तथा ये लोग अफगानिस्तान, पाकिस्तान तथा बंगलादेश से धार्मिक प्रताडऩा के चलते भारत में आश्रय लेने के लिए धकेले गए हैं, उनको 1955 के नागरिकता कानून के उद्देश्य के तहत अवैध प्रवासी नहीं समझा जाएगा। ये संशोधन पासपोर्ट एंट्री एक्ट 1920 तथा फॉरनर्स आर्डर 1948 में संशोधन के तहत 7 सितम्बर 2015 से पूर्व के दोनों नोटीफिकेशन के साथ जोड़े गए हैं।

हालांकि ज्यादातर प्रदर्शनकारी यह सोच कर प्रदर्शन कर रहे हैं कि एन.आर.सी. को लागू करने पर हिन्दू, सिख, पारसी, जैन, बौद्ध तथा ईसाई समुदाय हैं तो भारतीय मगर एन.आर.सी. में अपने दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर पाए हैं, नागरिकता कानून 2019 के तहत अपनी नागरिकता के दावे का दूसरा प्रयास भी प्राप्त कर पाएंगे। यहां पर और स्पष्टता की जरूरत है। मिसाल के तौर पर क्या सरकार साधारण तौर पर किसी व्यक्ति को हिन्दू, सिख, पारसी, जैन, बौद्ध तथा ईसाई समुदाय की नागरिकता दे पाएगी या फिर इन लोगों को निर्दिष्ट दस्तावेज दिखाने होंगे कि वे अफगानिस्तान, पाकिस्तान तथा बंगलादेश से आए हैं। ऐसे लोगों के मन में धार्मिक उत्पीडऩ का वाकई कोई खौफ था।

पूरी प्रक्रिया पर अंकुश लगाए जाने की जरूरत
नागरिकता संशोधन कानून 2019 का असम में तत्काल रूप से प्रभाव पड़ा है। 19 लाख लोगों में से जो एन.आर.सी. में शामिल नहीं किए गए उनमें से कितने लोगों को लाभ दिया जाएगा। यदि ये लोग पहले से ही एन.आर.सी. प्रक्रिया में अपना दावा पेश कर चुके हैं कि वे भारतीय मूल के ही हैं। तब क्या उनको अपना बयान बदलने की अनुमति दी जाएगी? यह सरकार की इच्छाशक्ति को जाहिर करेगा यदि ये लोग प्रमाणित कर पाए कि वे सच में धार्मिक उत्पीडऩ का शिकार हुए हैं तब असम में एन.आर.सी. में से एक ही समुदाय बाहर निकाला जाएगा। क्योंकि सी.ए.ए.-एन.आर.सी. पर कई सवाल उठे हैं। तब इस पर दोबारा सोचने की जरूरत नहीं है। ऐसी स्थिति में पूरी प्रक्रिया पर अंकुश लगाए जाने की जरूरत है।

कुछ चिंताएं हैं जिन पर सोचना जरूरी :

(1) एन.आर.सी. सूची में गरीब तथा हाशिए पर रह रहे लोगों के लिए अमीर तथा पढ़े-लिखे लोगों की तुलना में अपने दस्तावेज प्रस्तुत करना बेहद मुश्किल कार्य होगा।

(2) हमारा देश अपने आप में विलक्षण है जिसमें बड़ी तादाद में प्रवासी रहते हैं तथा क्षेत्र, धर्म, संस्कृति आपस में घुली-मिली है। ज्यादातर, विशेष तौर पर गरीब लोग (अमीर भी) जो शहरों की तरफ प्रवास कर चुके हैं उनके पास अपने पूर्वजों का रिकार्ड ही नहीं।

(3) सूची को बनाने की प्रक्रिया निश्चित तौर पर उत्सुकता बढ़ाएगी तथा जनसंख्या को आपस में बांटेगी।

(4) यह बात दिमाग में लानी होगी कि 2003 से पहले या आज भी इस देश में असम से बाहर ऐसी कोई उम्मीद है कि ऐसे लोगों को जो अपने आपको नागरिक मानते हैं, को अपनी नागरिकता का प्रमाण देने के लिए बुलाया जाएगा। कई लोग जो हैं तो नागरिक मगर उनके पास अपेक्षित दस्तावेज नहीं हैं। वे एन.आर.सी. में से मनमाने ढंग से बाहर रखे जाएंगे।

(5) इस पूरी प्रक्रिया पर बहुत लागत आएगी तथा इससे आॢथक उथल-पुथल पैदा होगी। जून 2016 में इकोनॉमिक्स टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, एन.पी.आर. को आधार से ङ्क्षलक करने की लागत 951 करोड़ रुपए आई तथा कई समाचारपत्रों ने यह कहा कि एन.पी.आर. प्रक्रिया को 2020 में निपटाने पर कई हजार करोड़ रुपए की लागत आएगी। एन.पी.आर. से पूर्व एन.आर.सी. प्रक्रिया पर इससे भी ज्यादा लागत आएगी।

(6) लागत तथा विघटन से ज्यादा इस प्रक्रिया से लाभ होने की आशंका बहुत कम है क्योंकि हमारा देश अमरीका तथा यूरोप की भांति नहीं है। पूरा विश्व भारत को टोकने के लिए आता है। अवैध प्रवासी बंगलादेश या श्रीलंका से ज्यादा तादाद में आते हैं। राष्ट्रव्यापी एन.आर.सी. की प्रकृति प्रवासियों से ज्यादा नागरिकों को बाहर बैठाएगी। यदि सरकार एन.आर.सी. की जैसी कोई प्रक्रिया अपनाना चाहती है, जिसका कि सब लोगों पर प्रभाव पड़ेगा, से चुनावी निर्वाचक नामावली में बदलाव होगा। इसलिए सभी पार्टियों तथा सहयोगियों को साथ लेकर चलना होगा तथा एक पारदर्शिता वाली प्रक्रिया अपनानी होगी।-शिवाम्बिका सिन्हा तथा स्वप्निल गुप्ता  


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