तमिलनाडु में भाजपा ने खेला बड़ा जुआ
punjabkesari.in Wednesday, Oct 04, 2023 - 05:03 AM (IST)

अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कझगम (अन्नाद्रमुक) द्वारा भारतीय जनता पार्टी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से बाहर निकलने की घोषणा के बाद से करीब एक सप्ताह गुजर चुका है। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने इस ब्रेकअप के बारे में कुछ नहीं कहा और राज्याधिकारियों से भी इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी न करने को कहा है। पार्टी, जिसने कई बार अपनी निर्णायक क्षमता का प्रदर्शन किया है, की चुप्पी यह संकेत देती है कि वह अन्नाद्रमुक के इस कठोर कदम के लिए तैयार नहीं थी।
अन्नाद्रमुक द्वारा अलग होने के पीछे जाहिरा कारण भाजपा के राज्याध्यक्ष के. अन्नामलाई द्वारा इसके नेताओं के खिलाफ विवादास्पद टिप्पणियां करना था। अन्नाद्रमुक के बाहर निकलने के पीछे अन्य कारण भी हो सकते हैं, जिनमें यह संदेह भी शामिल है कि गठबंधन में लम्बे समय तक बने रहना अपनी कीमत पर भाजपा को फलने-फूलने देना है। मगर अन्नामलाई को लेकर अन्नाद्रमुक ने बार-बार अपनी आपत्ति जताई लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। भाजपा द्वारा अन्नाद्रमुक को इस कारण संबंध तोडऩे देना यह संकेत देता है कि जिम्मेदारी राष्ट्रीय पार्टी की है।
यह भी संभावना जताई जा रही है कि भाजपा की चुप्पी का एक कारण यह भी है कि अभी भी सुलह-सफाई की गुंजाइश है। हालांकि ऐसा होने की संभावना नहीं के बराबर है। अन्नाद्रमुक के महासचिव इडापड्डी के. प्लानीस्वामी ने सोमवार को कहा कि बाहर होने का निर्णय उनका नहीं बल्कि सारी पार्टी का था जो पार्टी के प्रस्ताव में दिखाई देता है, जो अंतिम था। यदि सुलह-सफाई सम्भव भी है तो दोनों पाॢटयों के बीच पैदा हुई कटुता गठबंधन के भीतर मत हस्तांतरण को अप्रभावी बना देगी। एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा कि राज्य के पश्चिमी क्षेत्र में दोनों के बीच एक ‘जमीनी लड़ाई’ है। यह अन्नाद्रमुक का गढ़ माना जाता है जहां भाजपा खुद को प्रभावी बनाने का प्रयास कर रही है। इसके अतिरिक्त प्लानीस्वामी तथा अन्नामलाई दोनों गौंडर समुदाय से हैं जो क्षेत्र में चुनावी तौर पर शक्तिशाली है। और तो और, किसी भी तरह की सुलह-सफाई निश्चित तौर पर कुछ हद तक अन्नामलाई के नेतृत्व को कमजोर करेगी। इस बात में संदेह है कि भाजपा यह देखते हुए ऐसा करेगी कि उसने उन्हें विकास के तौर पर प्रदर्शित किया है, इस आशा में कि तमिलनाडु में आगे चलकर उसे इसका लाभ मिलेगा।
अन्नामलाई जो अपने ‘नेतृत्व स्टाइल’ में किसी भी तरह के बदलाव के प्रति अपनी अनिच्छा को खुलकर प्रकट करते हैं, ने किसी भी तरह सुलह को आसान नहीं रहने दिया। परिणामस्वरूप राजग के अन्य सांझीदारों को बनाए रखना तथा कुछ अन्य को शामिल करना भाजपा के लिए एक सीमित उपलब्ध विकल्प दिखाई देता है। यद्यपि यह संभवत: अन्नाद्रमुक पर हमला नहीं करना चुनेगी ताकि 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले या बाद में किसी भी तरह की सुलह के लिए जगह बनाए रख सके।
संभवत: भाजपा को 2014 में तमिलनाडु में अपनी कारगुजारी से कुछ राहत मिले, जो इसने देसिया मुरपोक्कु द्रविड़ कझगम (डी.एम.डी.के.), पत्ताली मक्कल काची (पी.एम.के.) तथा कुछ अन्य के साथ मिलकर लड़ा था। यह कन्याकुमारी निर्वाचन क्षेत्र को जीतने तथा लड़ी गई 9 सीटों पर लगभग 24 प्रतिशत मत हिस्सेदारी प्राप्त करने में सफल रही थी। यद्यपि वह एक बहुकोणीय स्पर्धा थी जिसमें द्रमुक, कांग्रेस तथा वाम दलों के बीच कोई गठबंधन नहीं था। विशेष रूप से पी.एम.के. तथा डी.एम.डी.के. की वर्तमान के मुकाबले 2014 में अधिक मत हिस्सेदारी थी। तब से भाजपा कन्याकुमारी जीतने में सफल नहीं हो पाई। 2019 में, अन्नाद्रमुक के साथ गठजोड़ के बावजूद भाजपा ने लड़ी गई 5 सीटों पर अपनी मत हिस्सेदारी बढ़ाकर लगभग 29 प्रतिशत कर ली लेकिन कोई भी जीती नहीं। भाजपा अब मुख्य रूप से उस गतिशीलता पर निर्भर करती है जिसके बारे में इसका मानना है कि उसने 2021 में प्राप्त की थी।
अन्नामलाई द्वारा कमान संभालने के बाद से भाजपा की कारगुजारी का एकमात्र उल्लेखनीय ङ्क्षबदू 2022 के शहरी स्थानीय निकाय चुनाव थे, जो पार्टी ने अकेले लड़े थे। इसने मामूली 5.5 प्रतिशत की मत हिस्सेदारी प्राप्त की थी। यहां तक कि यदि अन्नामलाई की जारी यात्रा तथा अन्य कारकों ने भाजपा के समर्थन में बढ़ौतरी की, इसमें संदेह है कि ये कुछ सीटें जीतने में भी पार्टी के लिए पर्याप्त होंगे। भाजपा ने अन्नाद्रमुक के साथ अपना गठबंधन तोड़कर तमिलनाडु में एक बड़ा जुआ खेला है। -पोन वसंत बी.ए