सिखों द्वारा भाजपा की उपेक्षा : चुनाव में दिखाया ‘आईना’

punjabkesari.in Thursday, Dec 08, 2022 - 05:21 AM (IST)

दिल्ली नगर निगम चुनाव में सिख, पंजाबी और मुस्लिम वोटों का व्यवहार अंदाजे से अलग रहा है। ज्यादातर सिख और पंजाबी वोट आम आदमी पार्टी (आप) को जाने की बात सामने आ रही है। सिख बहुल इलाकों मेें आम आदमी पार्टी ने बंपर जीत दर्ज की है। वहीं दूसरी ओर मुस्लिम वोट इस बार कांग्रेस को गया है जो पिछले चुनाव में लगभग एकतरफा ‘आप’ की तरफ जा रहा था। उत्तर-पूर्वी दिल्ली में 2020 में हुए दंगों के बाद से मुस्लिम मतदाता आम आदमी पार्टी से नाराज थे जिसका फायदा कांग्रेस को मिला है। वहीं पश्चिमी दिल्ली में ज्यादातर सीटें आदमी पार्टी ने जीती हैं। यह इलाका सिख बहुल इलाका माना जाता है।

राजौरी गार्डन, मादीपुर, तिलकनगर, हरीनगर, जनकपुरी, विधानसभा इलाकों में आदमी पार्टी ने लगभग एकतरफा जीत हासिल की है। यदि कोई भाजपा का उम्मीदवार इन विधानसभा क्षेत्रों में जीता है तो वह या पूर्व पार्षद रहा है या फिर पार्षद के परिवार का सदस्य। हालांकि, सिखों का वोट दिलाने के नाम पर दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी पर काबिज प्रबंधन एवं सदस्यों ने भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में बहुत जोर लगाया था। दो मौजूदा कमेटी सदस्यों के परिवारों को भाजपा का टिकट भी ऐन वक्त पर दिलवाया, लेकिन, ये दोनों उम्मीदवार चुनाव हार गए हैं। 

इसमें एक दिल्ली कमेटी सदस्य अमरजीत सिंह पप्पू की पत्नी तथा दूसरी रमनदीप सिंह थापर की पत्नी शामिल है। भाजपा को सिख बहुल इलाकों में मिली करारी हार के पीछे कई चीजें सामने आ रही हैं। इसमें बंदी सिंहों को रिहा न करना, किसान आंदोलन के दौरान भाजपा समर्थकों के द्वारा सिखों को खालिस्तानी प्रचारित करना, गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटियों में भाजपा नेताओं की बढ़ रही दखलंदाजी से सिख नाराज बताए जाते हैं। 

वैसे, नतीजों से पहले ही एक टी.वी. चैनल के द्वारा किए गए सर्वे में दावा किया गया था कि इन चुनावों में 56 फीसदी सिखों का आम आदमी पार्टी को, 26 फीसदी भाजपा को, 8 फीसदी कांग्रेस को तथा 10 फीसदी अन्य के खाते में सिख वोट गया है। नतीजों के बाद लगभग यह बात सच साबित हो रही है। कुछ सीटों पर भाजपा 500 वोटों के कम अंतर पर सिख इलाकों में हारी है। यहां तक कि 1984 सिख दंगों के पीड़ित परिवार की परमजीत कौर खुद भाजपा उम्मीदवार के रूप में 8478 वोट से चुनाव हार गई है।

इससे साफ दिखता है कि 1984 के पीड़ितों को भी सिख इलाके में भाजपा उम्मीदवार होने के कारण वोट नहीं मिला है। ये कहीं न कहीं भाजपा के लिए चिंता का विषय है। इस चुनाव में भाजपा को 39.09 प्रतिशत वोट मिले हैं। जबकि आम आदमी पार्टी को 42.05 प्रतिशत वोट, और कांग्रेस को 11.78 प्रतिशत वोट हासिल हुआ है। खास बात यह है कि नोटा पर 0.78 प्रतिशत वोट डाला गया है। 

कुछ सिख संगठनों ने बंदी सिंह की रिहाई न होने के कारण पहले ही नोटा पर वोट डालने का ऐलान कर दिया था। सिखों के साथ ही दिल्ली का पंजाबी वोट बैंक भी भाजपा से नाराज दिख रहा है। चुनाव में पंजाबी बहुल 47 सीटों में से आम आदमी पार्टी को 26 सीटें प्राप्त हुई हैं। भाजपा को 20 और कांग्रेस की झोली में 1 सीट आई है। पंजाबी कांग्रेस से पहले से नाराज चल रहे हैं, लेकिन इस चुनाव में भाजपा से दूरी बनाना चिंता का विषय है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और खुद भारतीय जनता पार्टी द्वारा सिख हितों के लिए हमेशा कार्य करने का दावा किया जाता है पर सिख वोटर भाजपा से क्यों नाराज हैं, इसका मंथन बहुत जरूरी है। ऐसा भी कह सकते हैं कि भाजपा सिखों की भावनाओं एवं उनकी नब्ज नहीं पकड़ पा रही है। यह देखना जरूरी है। इससे पहले पिछले निगम चुनाव में भाजपा का शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन था, तब भाजपा ने 272 में से 182 सीटें जीती थीं। 

8 अकाली उम्मीदवारों को टिकट दिया गया था,जिसमें से 5 जीतने में भी कामयाब रहे थे। लेकिन अकाली दल के साथ गठबंधन टूटते ही सिख हलकों में भाजपा की हार के कारण क्या हैं यह समझना पार्टी के लिए बहुत जरूरी है। चर्चा यह भी है कि पश्चिमी दिल्ली की लगभग 18 सीटें आम आदमी पार्टी भाजपा से सिखों की नाराजगी के कारण जीती है। अगर ये 18 सीटें भाजपा को मिलतीं तो निश्चित तौर पर तस्वीर कुछ और होती। 

प्रमुख हिस्सेदारी न मिलने से नाराज थे सिख: दिल्ली नगर निगम के चुनाव में दिल्ली का सिख वोटर इस बार अपने को ठगा महसूस कर रहा था, वह रिजल्ट में देखने को मिला। चुनाव में सिखों को अच्छी हिस्सेदारी एवं भागीदारी न मिलना भी एक बड़ा कारण माना जा रहा है। इसके अलावा सिखों का एक बड़ा वर्ग बंदी सिंहों की रिहाई को लेकर भी सियासी दलों से नाराज है।इसको लेकर महीनों से जन जागरण अभियान चला रखा है, लेकिन किसी भी राजनीतिक दलों की ओर से उन्हें न तो समर्थन मिला और न ही सहयोग।

भाजपा के अपने घटक दल भाजपा सिख प्रकोष्ठ से जुड़े लोगों को प्रतिनिधित्व नहीं मिला। सिख प्रकोष्ठ की ओर से 9 नेताओं की दावेदारी थी। जिसमें से 5 बहुत मजबूत माने जा रहे थे। लेकिन, पार्टी ने एक भी नेता को टिकट नहीं दिया। बात करें सिखों के प्रतिनिधित्व की तो कुल 250 वार्डों में से कांग्रेस ने 5, आम आदमी पार्टी ने 6 और भाजपा ने 8 सिखों को मैदान में उतारा है। इसमें ज्यादातर वही पुराने चेहरे ही हैं जो या तो मेयर रह चुके हैं या फिर पार्षद। चुनाव में 6 सिख विजयी हुए हैं। इसमें 4 आम आदमी पार्टी एवं 2 भारतीय जनता पार्टी से हैं।-दिल्ली की सिख सियासत सुनील पांडेय
 


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