भाजपा ने विशाल चुनावी युद्ध सामग्री इकट्ठी कर ली

punjabkesari.in Sunday, Mar 10, 2024 - 05:26 AM (IST)

लोकसभा चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा करने वाले भारतीय चुनाव आयोग (ई.सी.आई.) की अधिसूचना इस सप्ताह आने की उम्मीद है। अतीत में, माननीय प्रधानमंत्री की देश भर की यात्राओं को समायोजित करने के लिए कार्यक्रम की आलोचना की गई थी। इस बार शैड्यूल अधिक तर्कसंगत और संक्षिप्त होगा या नहीं यह जल्द ही पता चल जाएगा। चुनाव के संचालन में कई कमियां हैं। सबसे पहले मतदान के चरणों की संख्या है। देश में 3 से अधिक चरणों में चुनाव न हों और किसी राज्य में एक ही दिन मतदान हो, बड़े राज्यों में यह 2 दिन हो सकता है। 2019 में मतदान की तारीखें 11 अप्रैल से 19 मई तक 39 दिनों तक ङ्क्षखच गईं। बिहार (40 सीटें), उत्तर प्रदेश (80) और पश्चिम बंगाल (42) में 7 चरणों में मतदान हुआ। 

तमिलनाडु और पुडुचेरी (39+1) में निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या बिहार और पश्चिम बंगाल के बराबर ही है, फिर भी मतदान एक ही दिन हुआ। केवल 29 विधानसभा क्षेत्रों वाले मध्य प्रदेश में 4 तारीखों में मतदान क्यों होना चाहिए? यू.पी. की संख्या तमिलनाडु से दोगुनी है वहां 7 तारीखों में मतदान  क्यों होना चाहिए? यह कोई प्रशंसनीय कारण नहीं। कारण यह  दिया गया है कि ‘सुरक्षा’ संबंधी समस्याएं हैं और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को एक राज्य के एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में स्थानांतरित करने के लिए समय की आवश्यकता होती है।  एक बार चुनाव की घोषणा हो जाने के बाद, राज्य के सभी निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान के दिन, पुलिस और सी.ए.पी.एफ. तैनात कर दी जाती है। 

निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान हो रहा है, अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में अभियान चलेगा, और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस और सी.ए.पी.एफ तैनात किए जाएंगे। ऐसा नहीं है कि मतदान के दिन से पहले और बाद में किसी निर्वाचन क्षेत्र में पुलिस नहीं होती। इसके अलावा भाजपा के मुताबिक बिहार और उत्तर प्रदेश में डबल इंजन की सरकार है और कानून-व्यवस्था में जबरदस्त सुधार हुआ है तो फिर इन राज्यों में हिंसा की आशंका क्यों होनी चाहिए?
संदेह यह है कि कई चरणों का उद्देश्य राज्य के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक नेताओं और पार्टी कार्यकत्र्ताओं की आवाजाही को सुविधाजनक बनाना है। हालांकि, इसके कई नकारात्मक परिणाम भी हैं। सबसे पहले, यदि मतदान की तारीखें अलग-अलग हैं, तो ‘मौन अवधि’ भी अलग-अलग होगी। 

निर्वाचन क्षेत्र ‘ए’ में तथाकथित मौन दिवस और मतदान दिवस पर, नेता पड़ोसी निर्वाचन क्षेत्र ‘बी’ में प्रचार कर सकता है और भाषण टी.वी., रेडियो, समाचार पत्रों और सोशल मीडिया के माध्यम से निर्वाचन क्षेत्र ‘ए’ तक जाएगा। दूसरे, बहु-चरणीय मतदान में, पोस्ट -चरण में संभावित परिणामों का मतदान आकलन निश्चित रूप से चरणबद्ध और उसके बाद के चरणों में मतदान व्यवहार को प्रभावित करेगा। 

भेदभावपूर्ण नियम : दूसरा मामला जो ई.सी.आई. को चिंतित करना चाहिए वह राज्यों में ई.सी.आई. का प्रतिनिधित्व करने वाले मुख्य चुनाव अधिकारियों द्वारा लागू किए गए भेदभावपूर्ण नियम हैं। उदाहरण के लिए, 2019 में तमिलनाडु में सी.ई.ओ. ने नगर पंचायतों और नगर पालिकाओं में पोस्टर, फ्लैक्सबोर्ड, बैनर और झंडे के प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा दिया। उन्होंने प्रति उम्मीदवार एक दिन के अलावा रोड शो की इजाजत नहीं दी। उन्होंने उन बिंदुओं को सीमित कर दिया जिन पर प्रचारक मतदाताओं को संबोधित कर सकते हैं। उन्होंने प्रत्याशी के साथ 3 से अधिक वाहनों को जाने की अनुमति नहीं दी। जब कोई सार्वजनिक बैठक या रैली निर्धारित की जाती थी, तो सी.ई.ओ. पिछले दिन, बैठक/रैली के दिन और उसके अगले दिन स्थानीय क्षेत्र में झंडे प्रदर्शित करने की अनुमति देता था। 

इन सभी प्रतिबंधों को सख्ती से लागू किया गया था, तब भी जब तमिलनाडु के लोगों को आश्चर्य हुआ कि कैसे अन्य राज्यों के कस्बे और शहर पोस्टर, बैनर, झंडों आदि से भर गए थे और कई वाहनों के साथ कई रोड शो की अनुमति दी गई थी। ई.सी.आई. को भेदभाव समाप्त करना चाहिए और पूरे देश में समान नियम और मानदंड लागू करने चाहिए। खुले अभियानों पर इन अनुचित प्रतिबंधों का प्रभाव लोकतंत्र में चुनावों के सार को लूटना है। चुनाव लोकतंत्र का एक त्यौहार है। 2019 में अभियान अवधि के अधिकांश भाग के लिए, तमिलनाडु ने अंतिम संस्कार जैसा रूप धारण किया। प्रतिबंधों ने चुनावों को भूमिगत कर दिया। अभियान को अंधेरे में धकेल दिया गया और पार्टी कार्यकत्र्ता चुपचाप घर-घर जाकर वोट मांग रहे थे। 

पैसा भूमिगत हो जाता है : मैंने सबसे महत्वपूर्ण मामले पैसा और चुनावों में इसकी भूमिका को अंत तक सुरक्षित रखा है। कुख्यात चुनावी बांड के कारण, खेल का मैदान समतल नहीं है। भाजपा ने एक विशाल चुनावी युद्ध सामग्री इकट्ठी कर ली है जिसे चुनाव में बांटा जाएगा। माननीय प्रधानमंत्री द्वारा संबोधित एक रैली पर कथित तौर पर कई करोड़ रुपए खर्च होते हैं। उम्मीदवार मंच पर मौजूद हैं, लेकिन व्यय का एक अनुपात प्रत्येक उम्मीदवार को नहीं दिया जाता है  मुझे लगता है, यह बिल्कुल सही है। लेकिन तमिलनाडु में पिछले लोकसभा चुनाव में, यदि उम्मीदवार किसी पार्टी नेता (स्टार प्रचारक) के साथ मंच पर मौजूद थे, तो खर्च का एक अनुपात प्रत्येक उम्मीदवार को दिया जाता था और उसके चुनाव खर्च में जोड़ा जाता था। ई.सी.आई. को इस भेदभाव को सुधारना चाहिए। चुनाव अभियानों  का गुप्त रूप से चलना वोटों के बदले नकदी की घिनौनी प्रथा का कारण है। 

सौभाग्य से कई मतदाता अपनी इच्छा के अनुसार मतदान करते हैं, लेकिन नकदी के वितरण ने चुनावों को अत्यधिक महंगा बना दिया है। यदि उम्मीदवारों या उनके राजनीतिक दलों द्वारा खुले तौर पर अधिक धन खर्च करने की अनुमति दी जाती है और चुनाव अभियान को जमीनी स्तर पर लाया जाता है, तो समय के साथ वोट के बदले नकद की प्रथा समाप्त हो सकती है। चुनाव के लड़ाकूू , शोर-शराबे, हर्षोल्लासपूर्ण, उत्सवपूर्ण माहौल को बहाल करने के लिए ई.सी.आई. को विभिन्न उपाय करने चाहिएं क्योंकि लोकतंत्र एक उत्सव का हकदार है।-पी. चिदम्बरम


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