बड़ी सोच और बड़े दिल वाले भैया जी जवाहरलाल दर्डा
punjabkesari.in Sunday, Jul 02, 2023 - 05:57 AM (IST)

सार्वजनिक जीवन में कुछ विरले लोग ही ऐसे होते हैं जो इतिहास के पन्नों पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। ऐसी एक महान शख्सियत जवाहरलाल दर्डा की 2 जुलाई को जन्म शताब्दी है। महाराष्ट्र के जनजीवन में बाबू जी के नाम से विख्यात ज्येष्ठ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और लोकमत पत्र समूह के संस्थापक संपादक जवाहरलाल जी को मैं भैयाजी कहता था। जवाहरलाल जी दर्डा की स्मृति कभी भी मेरे जेहन से अलग नहीं होती। अत्यंत उच्च विचारों से परिपूर्ण व्यक्तित्व के धनी, अत्यंत सहज, सरल, खुशमिजाज और हर किसी के लिए संबल बनने की आतुरता उनमें नैसर्गिक रूप से थी। उनके दर से कभी कोई खाली नहीं लौटा।
एक बड़ी खासियत उनमें यह थी कि दूसरों की खुशी में तो वे सहर्ष शामिल होते ही थे, दूसरों का दुख कैसे दूर हो, इस बात पर उनका खास ध्यान होता था। वे सबके लिए खुशियों की चाहत रखते थे, चाहे वह करीबी हो या फिर कोई और। यह बात मैं पूरे विश्वास के साथ इसलिए कह सकता हूं कि उनकी कार्यशैली को बहुत करीब से देखने और जानने का मुझे अवसर मिला। उनके व्यक्तित्व के ढेर सारे आयाम थे। इतने सारे गुण एक व्यक्ति में होना वाकई आश्चर्यजनक लगता है। गुलामी की जंजीरों को तोडऩे के लिए अत्यंत कम उम्र में स्वतंत्रता संग्राम में कूद पडऩा उनके साहस और देशभक्ति को दर्शाता है।
अंग्रेजों से स्वतंत्रता मिलने के बाद आम आदमी तक आजादी का प्रतिफल पहुंचाने के लिए एक तरफ पवित्र राजनीति, तो दूसरी तरफ पत्रकारिता को आधार बनाना उनकी दूरदृष्टि का परिचायक है। राजनीति भी ऐसी कि सबके प्रति प्रेम और स्नेह का भाव चाहे वो किसी विरोधी दल का ही क्यों न हो! यही कारण है कि हर दल के लोग जवाहरलाल जी दर्डा का सम्मान करते थे।
उनके व्यक्तित्व में बिल्कुल अलग तरह का आकर्षण था। जो एक बार मिल लेता था, उनके स्नेह सूत्र में बंध जाता था। एक बार मिलने के बाद उनका प्रेम व्यवहार चिरस्थायी होता था, सदैव स्नेह से परिपूर्ण। उनसे मेरा परिचय हुआ और धीरे-धीरे संबंध इतने गहरे हो गए कि हम एक परिवार हो गए। उनके स्नेह से मैं आच्छादित हो गया। मुझे याद है कि 1977 में पहली बार जब मैं विधानसभा में चुनकर गया तो उन्होंने मुझे घर पर बुलाया। बहुत स्नेह और प्रेम के साथ वे मिले और शॉल-श्रीफल देकर मेरा सम्मान किया। उस स्नेह को मैं कभी भूल नहीं सकता। वह पल मेरी धरोहर है।
उनकी सोच कितनी बड़ी थी और कितने बड़े दिल वाले थे बाबूजी, इसका मैं आपको एक उदाहरण देता हूं। मैंने 27 जनवरी 1979 में हितवाद शुरू किया। प्रमुख मेहमान के रूप में श्री गिरिलाल जैन, श्री शिवराज पाटिल और श्री जवाहरलाल दर्डा को आमंत्रित किया। मैंने भैया जी से कहा कि आप आएंगे न! उन्होंने कहा कि क्यों नहीं आऊंगा? वे उस कार्यक्रम में आए और बहुत बढिय़ा भाषण भी दिया। एक और उदाहरण देता हूं। वे जब उद्योग मंत्री थे तब बाम्बे हाई से गैस निकाले जाने की शुरूआत हुई थी।
बाम्बे हाई के वरिष्ठ अधिकारियों ने मुझे बताया कि गैस कहीं भी ले जाई जा सकती है। मैंने उसकी तकनीक का अध्ययन किया और विधानसभा में कहा कि इस गैस को पाइपलाइन के माध्यम से विदर्भ पहुंचाया जाए और पैट्रोकैमिकल संयंत्र की स्थापना की जाए। भैया जी ने कहा गैस जाएगी कैसे? वास्तव में उन्होंने मुझे डांट भी दिया था। मैं भी नाराज हो गया था। लेकिन उनका दिल कितना बड़ा था कि 6 महीने बाद जब यू.पी. तक पाइपलाइन बिछाने की बात होने लगी तो उन्होंने बुलाया और कहा कि आपकी बात में दम था। उन्होंने शरद पवार को भी बताया कि इन्होंने सवाल उठाया था लेकिन हम लोगों ने ध्यान नहीं दिया। बाबूजी की प्रशासनिक क्षमता और मिलनसारिता का ही नतीजा था कि वे जिस विभाग के भी मंत्री रहे, खूब काम किया। वे विषयों को गहराई से समझते थे।
वैसे तो वे सबके प्रति स्नेह का भाव रखते थे लेकिन मेरे प्रति तो उनका स्नेह भाव गजब का था। जब मैंने लोकसभा का चुनाव लड़ा तो उन्होंने भरपूर समर्थन दिया। कभी यह अपेक्षा नहीं की कि मैं लोकमत को कोई विज्ञापन दूंगा। निश्चय ही उन्होंने एकतरफा सहयोग किया। मुझे याद है कि जब भी मैं मुंबई जाता तो उनके घर जरूर जाता था। कई बार तो बिना बताए भी पहुंच जाता था। देखते ही वे खुश हो जाते थे। आवभगत में कभी कोई कमी नहीं रखते थे। उनके घर से कोई बिना खाना खाए चला जाए, यह संभव ही नहीं था। कई बार वे मुझे यवतमाल भी ले गए। सर्किट हाऊस में नहीं बल्कि घर पर रखा। उनके आदर्श व्यवहार की यादें आज भी बनी हुई हैं।
लोकमत की लांचिंग की मुझे धुंधली-सी स्मृति है। आयल मिल कंपाऊंड गणेशपेठ से उन्होंने लोकमत की शुरूआत की। उनके परिश्रम, समर्पण, लगन और आम आदमी की चाहत को करीब से समझने का ही प्रतिफल है कि लोकमत ने इतना वृहद स्वरूप प्राप्त किया। अपनी पूरी ऊर्जा उन्होंने लगाई। पत्रकारिता के उच्चतम मापदंडों का हमेशा पालन किया। सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। पत्रकारिता में पवित्रता ही सबसे बड़ी पूंजी है, वे इस बात को अच्छी तरह समझते थे। आज हम उनकी जन्म शताब्दी मना रहे हैं। मुझे हमेशा लगता है कि कुछ दिन और हमारे साथ रहे होते तो राष्ट्र और महाराष्ट्र को उनकी अमूल्य सेवाएं और मिली होतीं। संतोष की बात यह है कि विजय बाबू और राजेंद्र बाबू योग्य पिता की योग्य संतान हैं। अगली पीढ़ी भी अत्यंत योग्य निकली है। भैया जी के सिद्धांतों पर पूरा परिवार आज भी चल रहा है, यह खुशी की बात है। पूरा परिवार फले-फूले यही मेरा आशीर्वाद। सबको शुभकामनाएं।-बनवारीलाल पुरोहित राज्यपाल, पंजाब