‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने कांग्रेस और गांधी परिवार को नई उम्मीद दी

punjabkesari.in Tuesday, Feb 07, 2023 - 04:54 AM (IST)

कांग्रेस नेता राहुल गांधी की हाल ही में पूरी हुई ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के प्रभाव का कोई कैसे आंकलन करता है? क्या उन्होंने खुद अपनी पार्टी और विपक्ष के सामने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया है? इसका उत्तर है हां, वह अपनी छवि बदलने में आंशिक रूप से सफल रहे हैं लेकिन पार्टी और विपक्ष के बारे में अभी कोई परिणाम आना जल्दबाजी होगी। 

नि:संदेह, राहुल ने जनता से जुडऩे, मुद्दों को प्रत्यक्ष रूप से जानने और अपनी छवि में बदलाव लाने के लिए कन्याकुमारी से कश्मीर तक पदयात्राएं कीं। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण अडवानी जैसे कई नेताओं ने पहले राजनीतिक उद्देश्यों के लिए ऐसी यात्राएं की थीं और उनमें से कुछ ने राजनीतिक लाभ हासिल भी किया। कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का दावा है कि राहुल ने बस यात्रा पर जाने के अपने रणनीतिकारों के शुरूआती सुझाव को खारिज कर दिया और इसकी बजाय एक अधिक कठिन पैदल यात्रा का चयन किया। राहुल ने पैरों में छाले और घुटनों के दर्द के साथ हजारों किलोमीटर का सफर किया। 

क्या यात्रा से राहुल को फायदा हुआ है? : राहुल गांधी का दावा है कि उन्हें यात्रा से फायदा हुआ है। उनके अनुसार, ‘‘मैंने बहुत कुछ सीखा है, लाखों लोगों से मिला और उनसे बात की।  मेरे पास इसका वर्णन करने के लिए शब्द ही नहीं हैं। यात्रा का लक्ष्य भारत को एकजुट करना था। यह यात्रा नफरत और ङ्क्षहसा के खिलाफ थी। भारत जोड़ो यात्रा मेरे जीवन का सबसे खूबसूरत अनुभव है।’’ उन्होंने आगे दावा किया कि यात्रा ने ‘घृणा के बाजार में प्यार की दुकानें खोल दी हैं’। 

आशावादी रहते हुए राहुल ने कहा कि भारत के पास अब चुनने के लिए दो रास्ते या जीने के तरीके हैं। एक तो आवाजों को दबाने और नफरत तथा ङ्क्षहसा फैलाने के लिए निकलता है और दूसरा रास्ता दिलों से जुड़ता है। उन्होंने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि यह यात्रा देश की राजनीति को प्रभावित करने वाला पहला कदम है।’’राहुल ने भारी भीड़ को अपनी ओर आकर्षित किया खास कर दक्षिण में। जनता के साथ उनकी बातचीत और रास्ते में प्रैस वार्ता ने भाजपा के खिलाफ लोगों के लिए एक वैकल्पिक राजनीतिक विकल्प पेश करने में मदद की। कांग्रेसियों को उम्मीद है कि लोग राहुल को अब ‘पप्पू’ नहीं बल्कि एक गंभीर राजनेता के रूप में देखेंगे। 

राहुल ने प्यार और नफरत, असमानता, बेरोजगारी, बढ़ती महंगाई, सीमा की सुरक्षा जैसे मुद्दों को उठाया। उन्होंने वह सब कुछ किया जो चतुर राजनेता अक्सर करते हैं। जैसे कभी-कभी बच्चों को अपनी गोद में लेना, युवाओं के साथ मेलजोल बढ़ाना, महिलाओं और वरिष्ठों का हाथ पकड़ कर उनसे बातचीत करना। अब जबकि यात्रा पूरी हो चुकी है, राहुल को इस अनुभव का इस्तेमाल अपने भविष्य के लिए करना चाहिए लेकिन आगे का काम आसान नहीं है क्योंकि पूरी तरह से बदलाव के लिए पांच महीने से ज्यादा की जरूरत है। 

सार्थक परिणाम के लिए राहुल गांधी को 2024 के चुनावों तक कड़ी मेहनत करनी होगी साथ ही उन्हें देखने के लिए आई भीड़ को वोट में बदलना सबसे चुनौतीपूर्ण काम है। इसके लिए उन्हें संगठन की जरूरत है। 2014 के बाद से आने वाले महीनों में 2024 के लोकसभा चुनावों का सामना करने के लिए संगठन का कायाकल्प करने की आवश्यकता है। इस साल 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। जम्मू-कश्मीर में भी चुनाव हो सकते हैं। यदि कांग्रेस जीतने वाले राज्यों की संख्या अपने खाते में बढ़ा सकती है तो इसका श्रेय राहुल को जाएगा। 

तीसरा लक्ष्य सभी गैर-भाजपा दलों को एकजुट करते हुए विपक्ष के नेता के रूप में उभरना था। यहां उन्हें थोड़ी दिक्कत हुई। कई विपक्षी नेता राहुल के नेतृत्व को स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव जैसे प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों ने पिछले महीने तीसरे मोर्चे के अपने विचार को फिर से शुरू करने के लिए एक बड़ी भीड़ जुटाई। हालांकि राहुल ने कश्मीर में यात्रा के समापन में शामिल होने के लिए विपक्षी नेताओं को आमंत्रित किया था लेकिन इसमें केवल 11 दलों के नेताओं ने भाग लिया। यात्रा के दौरान भी अखिलेश यादव और उद्धव ठाकरे जैसे प्रभावशाली नेताओं ने इसमें हिस्सा नहीं लिया। राहुल ने उम्मीद नहीं छोड़ी है। विपक्ष में मतभेद जरूर हैं लेकिन वे आपस में बात करते हैं। दूसरी ओर ये उनका विरोध करने वाली ताकतें हैं। कुल मिलाकर ‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने कांग्रेस और गांधी परिवार को नई उम्मीद दी है।

जैसा कि राहुल ने कहा कि अब पार्टी को चुनावी लाभ के लिए गति को आगे बढ़ाना होगा। कांग्रेस को ठोस राज्य स्तरीय नेताओं, दूसरी पंक्ति के नेतृत्व और सार्थक गठबंधन का निर्माण करना चाहिए। कांग्रेस और विपक्ष के लिए राजनीति में प्रासंगिक बने रहने के लिए इस लक्ष्य के अगले 14 महीने महत्वपूर्ण हैं। ऐसी कहावत कि ‘संयुक्त रूप से आप जीतते हैं और विभाजित होने पर आप गिर जाते हैं’ सब कुछ कहती है। प्रधानमंत्री कौन बनेगा यह सवाल बाद में आता है। यह सामान्य ज्ञान है कि विभाजित पक्ष मोदी के तीसरे कार्यकाल के लिए लौटने का रहस्य है। क्षेत्रीय नेताओं को अपने अहंकार और पूर्वाग्रहों को एक तरफ रख देना चाहिए और यदि परिणाम चाहिएं तो एकजुट हो जाएं।-कल्याणी शंकर 
 


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