कृषि कानूनों पर इतनी ‘जल्दबाजी’ समझ से परे

punjabkesari.in Wednesday, Oct 07, 2020 - 04:34 AM (IST)

भारत के महामहिम राष्ट्रपति ने अवकाश वाले दिन कृषि संबंधी तीन बिलों पर हस्ताक्षर करके उन्हें कानून की शक्ल प्रदान कर दी है। जिस तूफानी गति से पहले अध्यादेश,  फिर राष्ट्र की सर्वोच्च सत्ता संसद में तथा उसके बाद राज्यसभा में ध्वनि मत से ये बिल पास किए गए हैं,  उसी गति से इन्हें स्वीकृति प्रदान करके समूचे राष्ट्र को अचंभित कर दिया है। 

अध्यादेशों को जारी करने से पहले की गई मीटिंग में पंजाब से किसी भी सदस्य को नहीं बुलाया गया। जिसके कारण पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने इसका घोर विरोध किया और 28 अगस्त को विधानसभा का सत्र बुलाकर सर्वसम्मति से इसे संविधान विरोधी, किसान विरोधी और जनसाधारण विरोधी कह कर नकार दिया। न तो संसद में इन बिलों पर गंभीरता से विचार-विमर्श किया गया और न ही राज्यसभा में मैंबर साहिबान को खुलकर अपने विचार रखने का मौका दिया गया। 

कृषि बिलों पर इतनी जल्दबाजी करना समझ से ही परे है। क्योंकि इस समय भारत और चीन की सेनाएं 3500 किलोमीटर लंबी सीमा पर आमने-सामने खड़ी हैं। भारत और पाकिस्तान की सेनाएं भी पी.आे.के. में आमने-सामने हैं। समूचा देश कोरोना की चपेट में है। देश घोर आर्थिक संकट से गुजर रहा है, रिकॉर्डतोड़ बेरोजगारी ने पारिवारिक जीवन को मुश्किल में डाल दिया है। अभी तक किसी को यह मालूम नहीं है कि इससे किसानों को फायदा होगा या नुक्सान? फिर आम आदमी पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा? किसान इस कानून के विरुद्ध सारे देश में जोरदार प्रदर्शन कर रहे हैं। सरकार के अनुसार ये बिल किसान हितैषी हैं। तीनों कानूनों पर अच्छी तरह नजरसानी करने के पश्चात ही किसी पुख्ता परिणाम पर पहुंचा जा सकता है। हकीकत में कृषि और बाजार राज्य का विषय हैं। इस पर प्रदेश सरकारों को ही कानून बनाने और संशोधन करने का अधिकार है। 

केंद्र सरकार को यदि इन पर कोई कानून बनाना ही था, तो सारे देश की प्रादेशिक सरकारों से सलाह-मशविरा करना अति आवश्यक था। यही भारत के संविधान की मूल भावना है। इस तरह केंद्र ने संविधान के फैडरल ढांचे में खुल्लम-खुल्ला दखलंदाजी की है। पंजाब और हरियाणा जहां पर 1978 से गेहूं और चावल पर एम.एस.पी. लागू है। कृषि क्षेत्र में, लोगों के मन में अनिश्चितता का माहौल पैदा हो गया है। उनके मुताबिक पिछले 50 वर्षों से चली आ रही कृषि मंडी खत्म हो जाएगी। पंजाब में छोटी-बड़ी मंडियों को मिलाकर 4 हजार के करीब मंडियां बनती हैं, जहां किसान अपनी फसल लाकर बेचता है। यदि उसकी फसलें बोरियों में बंद हो जाती हंै तो 24 घंटे के अंदर-अंदर किसान को भुगतान कर दिया जाता है। क्योंकि पंजाब और हरियाणा में कृषि मंडी प्रणाली बहुत ही खूबसूरत तरीके से अपनी हर जिम्मेदारी को सरअंजाम दे रही है। 

मंडियों के खत्म हो जाने से किसानों को अत्यधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा और उनका यह विचार है कि धीरे- धीरे कार्पोरेट सैक्टर उनकी उपज पर कब्जा कर लेगा और मंडियों का महत्व पूरी तरह खत्म हो जाएगा। इन मंडियों से पंजाब को ही 6 हजार करोड़ रुपए की आमदन होती है और यह सारी राशि गांवों के विकास पर खर्च की जाती है जिनमें विशेष करके ङ्क्षलक सड़कों का निर्माण होता है। 

सरकार द्वारा कांट्रैक्ट फाॄमग लागू करने से किसानों की दुविधा और भी बढ़ गई है। जब बड़े-बड़े अमीर घराने किसानों से करार करेंगेे, पहले तो मूल्य कैसे निश्चित होगा, यह प्रश्न भी अंधेरे में है और दूसरा अगर खरीददार व  किसानों में करारनामे पर झगड़ा पड़ जाता है तो उसका निपटारा कौन करेगा और कितने समय में होगा क्योंकि भारत की वर्तमान न्यायिक प्रणाली बड़ी पेचीदा, खर्चीली, थका देने वाली और एक मामूली केस का फैसला लेने में 10 से 15 वर्ष लगा देती है। झगड़े की इस व्यवस्था में किसान की तो पूरी जिंदगी कोर्ट-कचहरियों में ही गुजर जाएगी। 

कांट्रैक्ट सिस्टम पंजाब में गन्ने और पोल्ट्री फार्म पर है, पर जो हाल गन्ना किसानों का मिल मालिक करते हैं उसका रब ही राखा है। कई-कई साल गन्ना किसानों को पेमैंट लेने में लग जाते है। अब प्रश्न यह पैदा होता है कि कार्पोरेट सैक्टर कोशिश करेगा कि वह सस्ती से सस्ती फसल खरीदे और महंगी करके उसे मार्कीट में बेचे। इससे किसान अपने बनते हक से ही महरूम नहीं होगा, बल्कि जनसाधारण के लिए भी मुश्किल बढ़़ जाएगी। जो आटा आज 28 या 30 रुपए किलो मिलता है वो 60 से 70 रुपए किलो पहुंच जाएगा। पूरी फसल पर साहूकारों का बोलबाला हो जाएगा। 

प्रदेश की एजैंसियां जो यह फसल खरीदती हैं, उनमें मंडी बोर्ड, पंजाब एग्रो, पनसप और मार्कफैड सब नकारा होकर रह जाएंगी और सारा इंफ्रास्ट्रक्चर जो पिछले 50 वर्षों से बड़ी मेहनत से बना है वह खत्म हो जाएगा और इन उपक्रमों में काम करने वालों को बेकारी का सामना करना पड़ेगा। सरकार वन नेशन और वन बाजार की बात करती है, इसे वन नेशन और वन एम.एस.पी. का कानून बनाना चाहिए ताकि सारे देश के किसान खुशहाल हों, समृद्ध हों और दूसरे लोगों की तरह अच्छी जिंदगी बसर कर सकें।-प्रो. दरबारी लाल पूर्व डिप्टी स्पीकर, पंजाब विधानसभा 
 


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