भारत विरोधी अभियान से सावधान

punjabkesari.in Friday, Dec 01, 2023 - 04:42 AM (IST)

हाल में सामने आए एक दिलचस्प घटनाक्रम ने अडानी-हिंडनबर्ग मामले ने एक नई चिंता पैदा कर दी है। भारत के मुख्य न्यायाधीश ने 24 नवंबर को सुनवाई के दौरान अडानी समूह और भारत के पूंजी बाजार नियामक, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के खिलाफ निराधार आरोप लगाने के लिए विदेशी प्रकाशनों में प्रकाशित खबरों पर याचिकाकत्र्ता की निरंतर निर्भरता पर चिंता व्यक्त की। इसके अलावा, भारत के मुख्य न्यायाधीश ने याचिकाकत्र्ताओं से यह भी अनुरोध किया कि वे उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति के खिलाफ हितों के टकराव के आरोप लगाना बंद करें क्योंकि उनके पास कोई तथ्यात्मक आधार नहीं है। 

इसके अलावा, सुनवाई के दौरान भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने संगठित अपराध और भ्रष्टाचार रिपोॄटग परियोजना (ओ.सी.सी.आर.पी.) की एक रिपोर्ट की उत्पत्ति के संबंध में तथ्य भी बताए। जब संबंधित प्राधिकार ने ओ.सी.सी.आर.पी. से उन दस्तावेजों के लिए संपर्क किया, जिनके आधार पर रिपोर्ट तैयार हुई थी, तो संगठन ने एक स्रोत का हवाला दिया, जो प्रशांत भूषण के एक गैर सरकारी संगठन (एन.जी.ओ.) से संबंधित है। घटनाओं की पूरी शृंखला दर्शाती है कि कैसे कुछ बड़े संपर्क वाले लोग और संस्थाएं एक व्यापारिक समूह को निशाना बनाने के लिए निरंतर काम कर सकते हैं और बारीकी से अराजकता तथा भ्रम पैदा कर भारत की विकास गाथा को पटरी से उतार सकते हैं। 

दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि कुछ राजनीतिक दल भी केंद्र सरकार को निशाना बनाने के लिए इन शक्तियों के साथ मिल कर काम कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर से लोकसभा सदस्य महुआ मोइत्रा से जुड़ा कुख्यात ‘कैश फॉर क्वश्चेन’ (पैसे लेकर सवाल पूछना) घोटाला, भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के विस्तृत खुलासों के कारण चर्चा में है। गौतम अडानी का पक्ष लेने के लिए मोदी सरकार की जमकर आलोचना करने वाली महुआ मोइत्रा के खिलाफ ताजा खुलासे से इस मामले में नया मोड़ आ गया है, जिसमें पत्रकार, राजनेता और कंपनियां शामिल हो सकती हैं। इससे पहले, कुख्यात शॉर्टसेलर हिंडनबर्ग रिसर्च ने आरोप लगाया था कि अडानी एंटरप्राइजेज और समूह की अन्य इकाइयां ‘दशकों से स्टॉक की हेराफेरी और अकाऊंटिंग की धोखाधड़ी कर रही हैं।’ इसका अडानी समूह पर गहरा और नकारात्मक प्रभाव पड़ा और इसके बाजार पूंजीकरण में 25 जनवरी को लगभग 1 लाख करोड़ रुपए की महत्वपूर्ण गिरावट दर्ज हुई। 

भारत के मेहनतकश लोगों, किराना दुकानों के मालिकों और युवा तथा पहली बार निवेश करने वालों को अरबों का नुकसान हुआ। ओ.सी.सी.आर.पी. और ब्रिटेन के कई प्रकाशनों द्वारा एक अन्य रिपोर्ट में अचानक भारत में रुचि दिखाई दी। तमाम आर्थिक प्रगति और अरबों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने के बावजूद, इन प्रकाशनों ने कभी भी भारत के बारे में सकारात्मक राय नहीं जाहिर की। उनके लिए भारत को अभी भी तीसरी दुनिया के देश के रूप में पेश करना औपनिवेशिक विरासत प्रतीत होती है। बड़े पैमाने पर सुनियोजित हमले भारत की वृहत्तर विकास गाथा में कोई खास असर डालने में नाकाम रहे हैं। वास्तव में, इस संकट ने नियामकों और सरकार को यह सबक दिया है कि भविष्य में ऐसी स्थितियों से कैसे निपटा जाए। पहली दो तिमाहियों में पूंजी बाजार के रुझान पर अस्थायी असर के बावजूद, भारत का शेयर बाजार और समग्र अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन बढिय़ा है। यह शायद उस किसी खास मंशा से प्रेरित और दुर्भावनापूर्ण मशीनरी के लिए सबसे अच्छा जवाब है, जो भारत की विकास गाथा को पटरी से उतारने के लिए चौबीसों घंटे सक्रिय है। 

अडानी समूह भी अपने विस्तार और विकास चक्र पर ध्यान केंद्रित किए हुए है। इसने वित्त वर्ष 2023 के लिए अपने शुद्ध ऋण को रन-रेट एबिट्डा के मुकाबले घटाकर 2.8 गुणा कर लिया, जबकि साल भर पहले यह 3.2 गुणा था और साथ ही तैनात इक्विटी अब बढ़कर कुल संपत्ति के आधे से अधिक हो गई है। अडानी समूह ने भारत की सबसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा निवेश भागीदारी के हिस्से के रूप में प्रमुख वैश्विक निवेशकों को शामिल कर 4 साल में 9 अरब डॉलर जुटाए हैं। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अडानी-हिंडनबर्ग मामले में अपना आदेश सुरक्षित रखा है। बहस के दौरान न्यायालय किसी भी नए निराधार आरोप को शामिल करने में झिझक रहा था, जो इस तथ्य से स्पष्ट है कि उसने जीवन बीमा निगम और भारतीय स्टेट बैंक के खिलाफ नई जांच शुरू करने की याचिकाकत्र्ता की याचिका को अस्वीकार कर दिया। आखिरकार, अटकलों के चक्र का अंत होना ही चाहिए! हालांकि सेबी और अन्य नियामक एजैंसियां इस मामले की आगे जांच कर सकती हैं, लेकिन वे कानून की निर्धारित प्रक्रिया का पालन करेंगी। 

भारत विरोधी यह अभियान हालांकि असफल होता दिखाई दे रहा है, पर हमें देखना और पता लगाना होगा कि इन संस्थाओं का उद्देश्य क्या था। क्या भविष्य में इससे भी बड़ी कोई कुटिल योजना है? क्या अभी ऐसी और भी रिपोर्ट आनी हैं? इसके पीछे मूल रूप से किसका हाथ था? यह महत्वपूर्ण है कि सम्बद्ध पक्ष भारत की विकास गाथा के खिलाफ काम करने वाली संस्थाओं और व्यक्तियों पर ध्यान दें, खासकर तब, जब भारत में अगले साल आम चुनाव होने वाला है।(लेखक सैंटर फॉर इकोनॉमिक पॉलिसी रिसर्च (सी.ई.पी.आर.) के निदेशक हैं)-डॉ. सुभाष शर्मा 


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