तैयार रहें कृत्रिम बुद्धिमत्ता के नए दौर के लिए

punjabkesari.in Monday, Mar 20, 2023 - 07:00 AM (IST)

बहुत जल्द आने वाला दौर खुल जा सिमसिम से कम नहीं होगा। तब अली बाबा और चालीस चोर एक गुफा में रखे खजाने तक पहुंचने की खातिर दरवाजा खोलने और बंद करने के लिए सिमसिम बोला करते थे। आज इशारे, बोली या चेहरे के संकेतों से बहुत कुछ कर गुजरने की क्षमता हासिल होती जा रही है। इसमें दो राय नहीं कि 21वीं सदी का यह दौर आर्टफिशियल इंटैलीजैंस (ए.आई.) या कृत्रिम बुद्धिमत्ता का है इसकी शुरूआत 1950 के दशक में हुई। लेकिन निर्णायक मुकाम तक पहुंचने में थोड़ा वक्त लगा।

इसका मतलब यह नहीं कि यह एकाएक पैराशूट से आ गिरा और दुनिया में छा गया। ए.आई. 1970 के दशक में लोकप्रिय होने लगा था जब जापान इसका अग्रणी बना। 1981 आते-आते सुपर कम्प्यूटर के विकास की 10 वर्षीय रूप-रेखा तथा 5वीं जैनरेशन की शुरूआत ने रफ्तार दी। जापान के बाद ब्रिटेन भी चेता। उसने एल्बी प्रोजैक्ट तो यूरोपीय संघ ने भी एस्पिरिट की शुरूआत की। अधिक गति देने या तकनीकी रूप से विकसित करने के लिए 1983 में कुछ निजी संस्थानों ने ए.आई. के विकास की खातिर माइक्रोइलैक्ट्रॉनिक्स एंड कम्प्यूटर टैक्नोलॉजी संघ बना डाला।

सच तो यही है कि ए.आई. की कहां-कहां और कैसी दखल होगी जिसकी न तो कोई सीमा है और न अंत। हर दिन नए-नए फीचरों के साथ करिश्माई तकनीक पहले से बेहतर विकल्पों के साथ परिवर्तनों, सुधार या विकसित होकर सामने होती है। दुनिया सबसे पहले इसके सहज रूप रोबोट से रू-ब-रू हुई जो सबकी पहुंच में नहीं रहा। लेकिन इस तकनीक ने घर-घर दस्तक देकर अपनी निर्भरता खूब बढ़ाई। अब साल भर में मोबाइल, टी.वी., गैजेट्स आऊटडेटेड लगने लगते हैं। आगे क्या होगा अकल्पनीय है। सच है कि कृत्रिम बुद्धि की दौड़ इंसानी बुद्धि पर भारी दिखने लगी है।

ए.आई. ने व्यापार के पूरे तौर-तरीके बदल दिए। हरेक उद्योग, व्यापार इसके बिना अधूरा और अनुपयोगी है। स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि या फिर नागरिक शासन प्रणाली सब में जबरदस्त दखल बेइंतहा है। आसमान में सैटेलाइट, उड़ता हवाई जहाज, पटरी पर दौड़ती रेल-मैट्रो सभी कृत्रिम मेधा के नियंत्रण में है। घर में साफ-सफाई से लेकर खाना बनाना, टी.वी. ऑन-ऑफ करना, चैनल बदलना, ए.सी. चालू-बंद करने जैसे सारे काम ए.आई. आधारित होते जा रहे हैं। 

कल सुरक्षा व्यवस्थाएं भी मानव रहित तकनीक पर आधारित होकर अधिक चाक चौबंद होना तय है। भारत में डी.आर.डी.ओ. सहित कई स्टार्टअप पर काम चल रहा है। स्वचलित स्वायत्तता के ए.आई. वाले दौर में कल्पना से भी बेहतर उपकरण होंगे जो ज्यादा प्रभावी, आक्रामक तथा सटीक यानी चूक रहित होंगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विजन भी देश की आत्मनिर्भरता में ए.आई. को लेकर सकारात्मक है। 21वीं सदी का भारत टैक्नोलॉजी में मजबूत बन रहा है। 

प्रधानमंत्री आर्टिफिशियल इंटैलीजैंस से समाज की बड़ी-बड़ी समस्याओं का हल खोजने के पक्षधर हैं। वह प्रौद्योगिकी आधारित जीवन सुगमता यानी ‘ईज ऑफ लिविंग यूजिंग टैक्नोलॉजी’ पर मंशा जता चुके हैं। उन्होंने वन नेशन-वन राशन-कार्ड, जे.ए.एम. यानी जनधन-आधार-मोबाइल की त्रिवेणी, डिजी लॉकर, आरोग्य सेतु और को-विन ऐप, रेलवे आरक्षण, आयकर प्रणाली से जुड़ी शिकायतों के ‘फेसलैस’ निपटान और सामान्य सेवा केंद्रों के उदाहरण दिए।

ए.आई. की बैंकों, वित्तीय संस्थानों के डाटा को व्यवस्थित, सुरक्षित और प्रबंधित करने के साथ तमाम स्मार्ट और डिजिटल कार्डों के सफल संचालन के साथ समुद्र के गहरे गर्भ में खनिज, पैट्रोल, ईंधन की खोज और खुदाई में भूमिका जबरदस्त है। सबने देखा दिल्ली की चालक रहित मैट्रो या दुनिया में बिना ड्राइवर की ऑटोपायलट कार के भविष्य की शुरूआत और टेसला को लेकर उत्साह है। ए.आई. तकनीक से जल्द ही चौक-चौराहों पर बिना पुलिस के अचूक स्मार्ट पुलिसिंग की पहरेदारी दिखेगी।

अनेकों खूबियों से लैस 360 डिग्री घूमने में सक्षम कैमरे जो हरेक गतिविधियों को भांपने, पहचानने में दक्ष तथा कंट्रोल रूम में तैनात टीम को चुटकियों में सूचना सांझा कर मौके पर पहुंचाने में मददगार होंगे। वहीं सड़क दुर्घटनाओं को रोकने की खातिर वरदान बन हरेक वाहन में ऐसी सैंसर प्रणाली विकसित भी हो सकेगी जो खुद-ब-खुद सामने वाली गाड़ी की स्थिति, संभावित चूक या गड़बड़ी को पढ़ कर स्वत: नियंत्रित हो जाए तो भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए। इस पर भारत में भी काम चालू है।

भारतीय सड़कों की खातिर लेन रोडनैट यानी एल.आर. नैट से लेन के निशान, टूटे डिवाइडर, दरारें, गड्ढे यानी आगे खतरे की पहले ही जानकारी ड्राइवर को हो जाएगी। ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम यानी जी.पी.एस. का उदाहरण सामने है जो हमें आसमान से धरती की अनजान जगह पर बिना किसी से पूछे सुरक्षित रास्ते से पहुंचाता है। लोकेशन शेयर करने पर मूवमैंट की जानकारी देने जैसा सारा कुछ ए.आई. की ही देन है। -ऋतुपर्ण दवे


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