बंगलादेश : हसीना के पतन से लेकर यूनुस की चुनौती तक

punjabkesari.in Wednesday, Aug 14, 2024 - 05:29 AM (IST)

सभी की निगाहें बंगलादेश पर टिकी हुई हैं। 2009 से देश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने ढाका में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों के कारण 5 अगस्त को इस्तीफा दे दिया और भाग गईं। उनकी जगह नोबेल पुरस्कार विजेता और माइक्रोफाइनांस के अग्रणी मुहम्मद यूनुस, जो अब 84 वर्ष के हैं, के नेतृत्व में एक कार्यवाहक सरकार आ गई। उन्हें सेना का समर्थन प्राप्त है। कई लोग इसे बंगलादेश के लिए दूसरी मुक्ति के रूप में देखते हैं, लेकिन देश को एक निरंकुश प्रधानमंत्री को हटाने से परे गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। बंगलादेश को इससे उबरने के लिए अपनी गहरी जड़ें जमाए हुए और भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था में सुधार करना चाहिए। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण है एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था में सुधार, जिस पर शक्तिशाली राजवंशों का वर्चस्व रहा है। 

तो हुआ क्या? : जुलाई से बंगलादेश सिविल सेवा आरक्षण कोटा के खिलाफ  तीव्र छात्र विरोध प्रदर्शनों से हिल गया। सरकार ने कुछ मांगों को स्वीकार करते हुए अधिकांश कोटा रद्द कर दिए, जिसके कारण विरोध प्रदर्शन वापस ले लिए गए। हालांकि विरोध प्रदर्शन फिर से तीव्र हो गए। प्रदर्शनकारियों की एकमात्र मांग थी कि प्रधानमंत्री शेख हसीना 3 अगस्त तक इस्तीफा दें। पुलिस दमन के परिणामस्वरूप लगभग 300 लोगों की मौत हो गई, जिससे और भी बड़े विरोध प्रदर्शन हुए और ढाका में एक योजनाबद्ध मार्च हुआ। अलोकप्रिय हसीना का समर्थन करने में असहज सेना ने उन्हें पद छोडऩे की सलाह दी, जिस कारण उन्हें भारत भागना पड़ा। 

शेख हसीना के कार्यकाल के दौरान अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय प्रगति हुई, जिसमें प्रति व्यक्ति आय में 3 गुना वृद्धि और पद्मा ब्रिज जैसी महत्वाकांक्षी बुनियादी ढांचा परियोजनाएं शामिल हैं, जबकि हसीना के कठोर शासन और नौकरियों और संसाधनों पर अवामी लीग के नियंत्रण ने आर्थिक समस्याओं और जनता में हताशा को जन्म दिया। इसके अलावा बढ़ते अधिनायकवाद, भ्रष्टाचार और लोकतांत्रिक स्वतंत्रता के दमन ने आर्थिक सफलता को प्रभावित किया। डिजिटल सुरक्षा अधिनियम ने स्वतंत्र अभिव्यक्ति को और सीमित कर दिया, जिससे भय का माहौल पैदा हुआ। आॢथक लाभ ने बढ़ती असमानता और भ्रष्टाचार को नहीं रोका, जिससे व्यापक सार्वजनिक असंतोष पैदा हुआ। बंगलादेश में सैन्य शासन और अस्थिर लोकतंत्र का एक जटिल इतिहास रहा है। सत्ता अक्सर 2 प्रमुख राजनीतिक परिवारों अर्थात शेख हसीना की अवामी लीग (ए.एल.) और बंगलादेश नैशनलिस्ट पार्टी (बी.एन.पी.) के बीच बदलती रही है। 

हसीना के साथ अपने संबंधों के कारण भारत को कूटनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जबकि  बंंगलादेश अराजकता के कगार पर है। बी.एन.पी. ने अपदस्थ प्रधानमंत्री को शरण देने के भारत के फैसले पर नाराजगी जताई है। बी.एन.पी. के वरिष्ठ नेता, 1991 की बी.एन.पी. नीत सरकार में पूर्व मंत्री और पार्टी की स्थायी समिति के सदस्य गायेश्वर रॉय ने भारत के फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि बी.एन.पी. का मानना है कि बंगलादेश और भारत को सहयोग करना चाहिए। भारत सरकार को इस भावना को समझना चाहिए और उसके अनुसार काम करना चाहिए। हालांकि अपने विरोधियों का समर्थन करने से उस सहयोग को बनाए रखना मुश्किल हो जाता है। बंगलादेश ने पिछले 3 दशकों में गरीबी कम करने, माइक्रोक्रैडिट में अग्रणी होने और एक महत्वपूर्ण परिधान निर्यातक बनने में उल्लेखनीय प्रगति की है। हालांकि यह लोकतांत्रिक पतन और भ्रष्टाचार से भी ग्रस्त है। 

आगे बढ़ते हुए, आर्थिक स्तर पर भविष्य की प्रगति के लिए समर्पित नेताओं की नई पीढ़ी को शामिल करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। मुहम्मद यूनुस इस निर्णायक बदलाव का नेतृत्व कर रहे हैं इसलिए उन्हें महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें इस्लामी चरमपंथ का मुकाबला करना, चीन पर निर्भरता कम करना और बी.एन.पी. की सत्ता में संभावित वापसी से निपटना शामिल है। उन्हें जल्दी से जल्दी चुनाव करवाने होंगे, भ्रष्ट संस्थानों में सुधार और बाहरी फंङ्क्षडग और व्यापार समझौतों को सुरक्षित करना होगा। उनकी भूमिका की कुंजी बंगलादेश के युवाओं के साथ प्रतिध्वनित होने वाले नए नेतृत्व और विचारों को बढ़ावा देकर राजनीतिक नवीनीकरण को बढ़ावा देना है। उनकी तत्काल प्राथमिकताएं स्थिरता बहाल करना, हिंसा पर अंकुश लगाना और यह सुनिश्चित करना है कि कार्यवाहक सरकार विविध राजनीतिक और सामाजिक समूहों का प्रतिनिधित्व करे। यूनुस ने कहा है कि हसीना ने बंगलादेश में लोकतंत्र को कमजोर किया है। उन्होंने आगे कहा कि यह ध्यान रखना होगा कि लोकतंत्र अस्थिरता की दवा है। 

बंगलादेश जटिल चुनौतियों का सामना कर रहा है। यह विकास स्वतंत्रता, शांति, न्याय और लोकतंत्र चाहता है। हालांकि सबसे बढ़कर इसे स्थिरता, कानून-व्यवस्था की आवश्यकता है। स्थिरता को पहले आना चाहिए क्योंकि यह अंतत: अन्य सभी आकांक्षाओं की सफलता को निर्धारित करेगी। स्थिरता को प्राथमिकता देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।-हरि जयसिंह
 


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