चुनावी बांड की डर्टी मनी पर लगे रोक

punjabkesari.in Tuesday, Mar 19, 2024 - 05:18 AM (IST)

फिक्की और एसोचैम जैसी बड़ी संस्थाओं और नामी व्यक्तियों की अडंग़ेबाजी को नाकाम करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट बैंक के चेयरमैन को यूनिक नंबर समेत पूरी जानकारी के साथ हलफनामा दायर करने का आदेश दिया है। बांड की डर्टी मनी का कनैक्शन उजागर होने के बाद लोकसभा चुनावों में नेताओं को प्रचार की पटकथा बदलनी पड़ सकती है। 

अरुण जेटली ने चुनावी बांड से क्लीन मनी लाने का वादा किया था, लेकिन बांड पर हो रहे परत दर परत खुलासे से साफ है कि सत्ता की होड़ में सभी पाॢटयों के नेता डर्टी मनी का बेशर्मी से इस्तेमाल कर रहे हैं। लोकसभा चुनावों में प्रत्येक प्रत्याशी अधिकतम 15 लाख रुपए खर्च कर सकता है। हर सीट पर अगर चार प्रमुख प्रत्याशी माने जाएं तो सभी 543 सीटों पर औसतन अढ़ाई हजार करोड़ से ज्यादा खर्च नहीं होना चाहिए। इसके उलट इन चुनावों में एक लाख करोड़ रुपए का खर्च होने का अनुमान है। सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग और डिजिटल कम्पनियों से डाटा के लेन-देन की कीमत इन खर्चों में शामिल नहीं है। बाहुबल, धनबल, गलत सूचना और आचार संहिता जैसे चार एम पर चिंता जाहिर करते हुए चुनाव आयोग ने बांड के कैंसर और डिजिटल की अवैध घुसपैठ से पल्ला झाड़ लिया है। 

गेमिंग, कैसिनो, लॉटरी और सट्टेबाजी की डर्टी मनी-पुराने जमाने में भूमि, खनिज, शराब, रियल एस्टेट और ड्रग्स माफिया से नेताओं को फंडिंग मिलती थी लेकिन चुनावी बांड से डर्टी मनी के खेल में दो नए सैक्टरों के आगमन का खुलासा हुआ है। आई.पी.एल. का तड़का लगने के बाद क्रिकेट में ग्लैमर, सट्टेबाजी और हवाला के धंधे की बढ़त को सभी जानते हैं। आई.पी.एल. से जुड़ी इंडिया सीमैंट जैसी कम्पनी ने तमिलनाडु में ए.आई.ए.डी.एम.के. समेत कई पार्टियों को बांड से भरपूर चंदा दिया है लेकिन सबसे ज्यादा बवाल लॉटरी कम्पनी के रिकार्ड चंदे से हो रहा है। माॢटन सेंटियागो की फ्यूचर गेमिंग कम्पनी ने पिछले 5 सालों में पार्टियों को लगभग 1368 करोड़ रुपए का चंदा दिया है। मयांमार में मजदूरी करने वाला मार्टिन कई राज्यों में लॉटरी किंग के नाम से कुख्यात है। 

यू.पी.ए. शासनकाल में मार्टिन ने सिक्किम सरकार को हजारों करोड़ रुपए का चूना लगाया था। पिछले 15 सालों में आयकर विभाग, सी.बी.आई. और ई.डी. ने उसके भ्रष्ट कारोबार के खिलाफ कई मामले दर्ज किए हैं। संसद में 2017 में पेश सी.ए.जी. की रिपोर्ट में मार्टिन से जुड़ी फ्यूचर गेमिंग कम्पनी के काले कारनामों का विवरण दिया गया था। पिछले साल ई.डी. ने माॢटन की कुछ सम्पत्तियों की जब्ती की थी लेकिन चुनावी बांडों की बड़ी घूस से जाहिर है कि नेताओं की सरपरस्ती में मार्टिन जैसे लोगों का काला कारोबार दिन दूना रात चौगुना बढ़ रहा है। सनद रहे कि ऑनलाइन गेम की आड़ में गैर-कानूनी सट्टेबाजी के कहर से युवाओं और अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए केंद्र सरकार ने अभी तक कोई कड़ा-कानून नहीं बनाया। 

मार्टिन की कम्पनियों ने भाजपा और कांग्रेस के साथ-साथ टी.एम.सी., डी.एम.के. और माकपा जैसी क्षेत्रीय पाॢटयों को बड़े पैमाने पर चंदा दिया है। इन पाॢटयों से जुड़े बड़े वकीलों ने अदालत में तगड़ी दलीलों से माॢटन के काले कारोबार का बचाव किया। तमिलनाडु में डी.एम.के. सरकार के समय एडवोकेट जनरल ने माॢटन के पक्ष में केरल हाईकोर्ट में पैरवी की थी।

मार्टिन ने अब ऑनलाइन गेमिंग, कैसिनो और स्पोर्ट्स बैटिंग जैसे नए सैक्टरों के हाईवे पर मोटे मुनाफे की गाड़ी दौड़ा दी है। छत्तीसगढ़ में महादेव एप घोटाले में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज हुई है। लॉटरी और सट्टेबाजी के माफिया जब नेताओं को घूस दें तो बड़ा अपराध बन जाता है, लेकिन ये माफिया जब पाॢटयों को फंडिंग करें तो उन्हें टैक्स में छूट के साथ सरकारी सिस्टम में अवैध घुसपैठ का कानूनी कवच मिलना कितना सही है? अर्थशास्त्र की तर्ज पर राजनीति में भी बांड का मतलब निवेश है। इसलिए बांड से फंडिंग करने वाली दागी कम्पनियां राज्य और केंद्र की सरकारों से मनमाफिक रिटर्न हासिल कर रही हैं।

आपराधिक मामला दर्ज हो : नोटबंदी के पहले और बाद में दावा किया गया था कि इससे काले धन पर रोक लगेगी, लेकिन उसके बाद बड़े नोटों का पूरा पैसा बैंकों में वापस आ गया। उससे साफ है कि डिजिटल युग में बैंकिंग प्रणाली से कालेधन का संगठित इस्तेमाल हो रहा है। पचास फीसदी रकम हासिल करने वाली भाजपा ने गोपनीयता की आड़ में बांड का खुलासा करने से इंकार कर दिया है, जबकि दस फीसदी रकम पाने वाली कांग्रेस ने चुनाव आयोग के पाले में गेंद डाल दी है। सपा, टी.एम.सी. और जे.डी.यू. जैसी पार्टियां करोड़ों रुपए के चुनावी बांड के स्रोत को बता नहीं रही हैं। दूसरी तरफ बसपा ने चुनावी बांड से रकम हासिल करने की बजाय कालेधन के नकदी चंदे से पार्टी की तिजोरी भरना बेहतर समझा। इसलिए नकद हो या बांड, पार्टियों को मिल रहा पैसा अवैध होने के साथ आपराधिक भी है। 

अधिकांश विधायक और सांसद करोड़पति और अरबपति हैं, इसके बावजूद उन्हें डर्टी मनी के चंदे की जरूरत क्यों है? चुनावी बांड के चंदे बारे पाॢटयों के सांसदों की संख्या के अनुसार भी एक रिसर्च की गई है। उसके अनुसार भाजपा को 20 करोड़, कांग्रेस को 27 करोड़, बी.जे.डी. को 70 करोड़, टी.एम.सी. को 71 करोड़, डी.एम.के. को 71 करोड़, टी.डी.पी. को 110 करोड़ और बी.आर.एस. को 200 करोड़ रुपए प्रति सांसद का औसतन चुनावी बांड से चंदा मिला है। इनफोसिस जैसी दिग्गज आई.टी. कम्पनी ने पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा की जे.डी.एस. पार्टी को सिर्फ एक करोड़ रुपए का बांड से चंदा दिया है। दिलचस्प बात यह है कि भारत की टॉप-10 लिस्टेड कम्पनियों में सिर्फ 2 कम्पनियों ने ही चुनावी बांड से चंदा दिया है। 

कई पार्टियों के पास कोरियर से करोड़ों रुपए के चुनावी बांड पहुंच गए जिसका विवरण उनके पास नहीं था। दूसरी तरफ 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के दावों के बीच स्टार्टअप कम्पनियों में चुनावी चंदे का सूखा दिख रहा है। झारखंड में सीता सोरेन मामले में हालिया फैसले के अनुसार विधायकों और सांसदों की सभी तरह की घूसखोरी को सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक बना दिया है। गंदे चंदे से राजनीति का धंधा करने वाले नेताओं को विधानसभा, लोकसभा और सरकार में जगह नहीं मिलनी चाहिए। इसलिए आपराधिक फंडिंग देने वाली कम्पनियों और लेने वाली पाॢटयों के खिलाफ चुनाव आयोग को भ्रष्टाचार का मामला दर्ज कराने की जरूरत है।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)
 


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