बाजवा शांति प्रक्रिया बहाली के प्रमुख समर्थक हो सकते हैं

punjabkesari.in Wednesday, Apr 07, 2021 - 02:10 AM (IST)

गम्भीर आर्थिक संकट के बावजूद भारत से चीनी और कपास के आयात पर प्रतिबंध नहीं हटाने का एक राजनीतिक निर्णय लेते हुए पाकिस्तान सरकार की सेना के जनरल और राजनेताओं के मन में सदैव शासन करने वाले ‘कश्मीर फोबिया’ की धारणा को फिर से परिभाषित किया गया है।

पाकिस्तान में लोगों की बरबादी और आर्थिक अवसाद की गम्भीरता को नजरअंदाज किया गया है। जिसने इस देश को मुश्किल में डाल दिया है। पाकिस्तान सरकार ने भारत से कपास तथा 5 लाख मीट्रिक टन सफेद चीनी के आयात के मुद्दे पर यू-टर्न ले लिया है जिसका असर संयुक्त अरब अमीरात (यू.ए.ई.) द्वारा दो पड़ोसियों के बीच शांति प्रक्रिया शुरू करने के प्रयासों पर पड़ सकता है।

पाकिस्तान ने अनुच्छेद 370 और 35-ए के निरस्त होने के बाद 5 अगस्त 2019 को भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार स्थगित करने का निर्णय लिया था। व्यापार को रद्द करने के प्रभावी कारणों में से एक पुलवामा आतंकी हमला बताया जाता है जिसके बाद भारत ने पाकिस्तानी आयात पर 200 प्रतिशत टैरिफ लागू किया था और पाकिस्तान का सबसे पसंदीदा राष्ट्र (एम.एफ.एन.) का दर्जा रद्द कर दिया था। एक सरसरी नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि पाकिस्तान को भारत का निर्यात 60 प्रतिशत गिरकर 816.62 मिलियन अमरीकी डालर हो गया और 2019-20 में इसका आयात 97 प्रतिशत घटकर 13.97 मिलियन अमरीकी डालर हो गया। भारत का पाकिस्तान के साथ व्यापार अधिशेष है जो निर्यात की तुलना में कम आयात है। व्यापार हमेशा से ही राजनीति से जोड़ा गया है जिससे हमेशा ही आम लोगों के हितों को नुक्सान पहुंचा है।

पाकिस्तान मदद की तलाश में भारत की ओर असहाय व दयनीय स्थिति में अपने आपको देख रहा था। आॢथक समन्वय समिति (ई.सी.सी.) ने 30 जून तक 5 लाख टन सफेद चीनी और भारत से कपास का आयात  करने की मंजूरी दी थी। दुनिया भर में एक अच्छा संकेत गया था। निकट भविष्य में बातचीत की शुरूआत की उम्मीद फिर से जागृत हुई थी। विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान द्वारा आतंकवादियों को संरक्षण दिए जाने वाले संगठनों सहित भारत विरोधी ताकतें कभी भी भारत के साथ संबंधों को सामान्य होने की अनुमति नहीं देंगी। क्योंकि ऐसी ताकतों को अशांति और अस्थिरता सबसे ज्यादा पसंद है।

पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कैबिनेट ने निर्णय को स्थगित कर दिया है। जब तक भारत 5 अगस्त 2019 के फैसले को उलट नहीं देता तब तक पाकिस्तान सरकार के लिए इस पूर्व शर्त के बिना संबंधों को सामान्य करना आसान नहीं होगा। प्रधानमंत्री इमरान खान के अनुसार भारत के साथ संबंधों में उस समय तक मधुरता नहीं आएगी जब तक कि भारत 5 अगस्त 2019 के अपने निर्णय को पलट नहीं देता। विशेषज्ञ मानते हैं कि व्यापार और वाणिज्य गतिविधियों के लिए दरवाजे अनिश्चितकाल के लिए बंद रहेंगे क्योंकि भारत के लिए संसद में कानून पारित करने के बाद जम्मू-कश्मीर के बारे में संवैधानिक स्थिति को बदलना आसान नहीं।

यहां तक कि पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने स्वीकार किया है कि भारत के साथ संबंधों तथा व्यापार को आगे बढ़ाने के लिए एक धारणा बन रही है। यू.ए.ई. के प्रयासों के कारण दोनों पक्षों द्वारा संघर्ष विराम की घोषणा की गई। यह एक विरोधाभास है कि सेना खुले तौर पर यू.ए.ई. की शांति पहल का समर्थन कर रही थी। इस बीच पाकिस्तान सरकार के निर्णय से कुछ समय के लिए शांति प्रक्रिया बाधित हो सकती है। मगर जनरल बाजवा ने कहा कि पाकिस्तान की इच्छा है कि अतीत को भूला दिया जाए और आगे बढ़ा जाए। मगर ऐसा प्रतीत होता है कि फिलहाल कुछ क्षणों के लिए यह सब बातें टूट गई हैं। विश्लेषकों का मानना है कि यू.ए.ई. अपने ईमानदार प्रयासों को पीछे नहीं छोड़ सकता जोकि पाकिस्तान द्वारा युद्धविराम की घोषणा करने के निर्णय के लिए जिम्मेदार था।

राजनयिक रहस्योद्घाटन के मुताबिक यू.ए.ई. का वर्तमान शांति प्रक्रिया प्रोजैक्ट एक पहल के रूप में सबसे अधिक दु:साहसी लगता है जो भारत और पाकिस्तान की बातचीत पर केन्द्रित है। पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने भारत के साथ शांति की पहल की जो इस देश में चुनी हुई सरकार को नियंत्रित करने वाली सेना के रूप में सार्थक प्रतीत होती है। यह दो दशक पहले जनरल परवेज मुशर्रफ की भूमिका के अनुरूप है।

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान को सेना की कठपुतली के तौर पर जाना जाता है। नियमों को संशोधित कर बाजवा को 3 वर्षों के लिए दूसरा सेवा विस्तार दिया गया है जो 29 नवम्बर 2019 से 28 नवम्बर 2022 तक प्रभावी रहेगा। इसलिए बाजवा भारत के साथ शांति प्रक्रिया बहाली के प्रमुख समर्थक हो सकते हैं क्योंकि उनके पास अपार शक्तियां हैं। यह बाजवा ही थे जिन्होंने सबसे पहले बयान दिया कि कट्टर प्रतिद्वंद्वी भारत और पाकिस्तान दोनों को ‘‘अतीत को दफनाना चाहिए और सहयोग को बढ़ाना चाहिए।’’ नई दिल्ली के झुकाव से अप्रत्याशित संयुक्त युद्ध विराम की घोषणा का अनुसरण किया गया।

जनरल बाजवा ने चतुराई से एक अनुकूल माहौल बनाने के लिए भारत पर बोझ डाल दिया ताकि क्षेत्रीय चतुरता को खत्म करने के लिए वाशिंगटन को भी एक प्रभावी भूमिका अदा करने के लिए शामिल किया जा सके। बाजवा ने यह भी जानबूझ कर उल्लेख किया कि पाकिस्तानी सशस्त्र सेना ने देश पर 73 वर्षों के अस्तित्व के आधे वर्षों तक राज किया है। यू.ए.ई. के शेख अब्दुल्ला बिन जायद की भारत की यात्रा ने यह स्पष्ट कर दिया कि युद्ध विराम के लिए इस देश ने दोस्ताना भूमिका अदा की है।-के.एस. तोमर


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