ढींडसा की ‘सक्रियता’ से बादल दल परेशान

punjabkesari.in Thursday, Jan 02, 2020 - 03:38 AM (IST)

वरिष्ठ अकाली नेता सुखदेव सिंह ढींडसा अपने फैसले कि दिसम्बर माह का अंतिम सप्ताह श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के परिवार की अद्वितीय शहादतों को समॢपत होने के कारण वह उन महान शहादतों के प्रति नतमस्तक हैं, जिसके चलते वह अपनी राजनीतिक सक्रियता उसके पश्चात अर्थात नव वर्ष के प्रारम्भ से ही शुरू कर सकेंगे, के अनुसार ही अपनी राजनीतिक सक्रियता आरम्भ करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। 

उधर टकसाली अकाली मुखियों के सम्मेलन की सफलता से ‘बौखलाए’ शिरोमणि अकाली दल (बादल) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने व्यंग्य करते हुए कहा कि शिरोमणि अकाली दल की पीठ में छुरा घोंपने वाले कभी टकसाली नहीं कहलवा सकते। उनके इस व्यंग्य पर प्रतिक्रिया देते हुए जहां टकसाली अकालियों ने कहा कि उन्हें अपने टकसाली होने के लिए सुखबीर सिंह बादल के प्रमाणपत्र की कोई जरूरत नहीं है, वहीं नवगठित ‘जागो’ जत्थेबंदी के अध्यक्ष मनजीत सिंह जी.के. ने कहा कि ‘अकाली’  होने की परिभाषा उस बादल परिवार का वफादार होना नहीं जिसका उद्देश्य अकाली दल के नाम पर पंथक हितों और अधिकारों की बलि दे केन्द्रीय मंत्रिमंडल में अपने परिवार के लिए एक कुर्सी सुरक्षित करवाना ही हो। उनके अनुसार असली अकाली वह है जो पंथक हितों और अधिकारों के लिए समर्पित हो और स्थापित धार्मिक मर्यादाओं, परम्पराओं और मान्यताओं का पालन व रक्षा करने के प्रति वचनबद्ध हो। 

ढींडसा का सम्मान
माना जाता है कि अगले कुछ दिनों में सुखदेव सिंह ढींडसा दिल्ली से अपनी राजनीतिक सक्रियता शुरू करने जा रहे हैं। मिली जानकारी के अनुसार इस उद्देश्य के लिए राजधानी में उनके सम्मान में एक विशेष स्वागत समारोह का आयोजन किया जा रहा है जिसमें दिल्ली के प्रमुख सिख नागरिकों की ओर से ढींडसा का स्वागत-सम्मान किया जाएगा। बताया जा रहा है कि दिल्ली के बाद हरियाणा और पंजाब में भी ऐसे ही समारोह आयोजित किए जाएंगे। माना जाता है कि इन समारोहों में जहां ढींडसा अपनी भविष्य की रणनीति की विस्तृत जानकारी देंगे वहीं शिरोमणि अकाली दल (बादल) से संबंधित चले आ रहे कई वरिष्ठ और कनिष्ठ अकाली मुखी एवं कार्यकत्र्ता ढींडसा के नेतृत्व में एकजुट होकर पंथक हितों-अधिकारों के लिए जूझने का प्रण करेंगे। इन समारोहों के आयोजन में जुटे अकाली मुखियों का मानना है कि इन समारोहों की सफलता बादल परिवार के शिरोमणि अकाली दल की चूलें हिला कर रख देगी। 

जी.के. भारी पडऩे जा रहा है
राजधानी दिल्ली की सिख राजनीति से जुड़े चले आ रहे राजनीतिज्ञों का मानना है कि सुखबीर सिंह बादल का मनजीत सिंह जी.के. विरोधी साजिश का शिकार हो पहले उन्हें दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष पद से हटाना और फिर उन्हें शिरोमणि अकाली दल (बादल) से भी बाहर कर देना उनकी न केवल एक बहुत बड़ी राजनीतिक भूल थी, अपितु एक प्रकार से उनके प्रति अहसान-फरामोशी भी थी। उनका कहना है कि ऐसा करते हुए सुखबीर यह भूल गए कि मनजीत सिंह जी.के. ही थे जिन्होंने लगभग 13 वर्ष बाद 2013 में दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी की सत्ता पर शिरोमणि अकाली दल (बादल) की वापसी करवा उसके लिए दिल्ली से उखड़े अपने पांव फिर से जमाने का अवसर पैदा किया। 

उन्होंने कहा कि फिर 2017 में जब शिरोमणि अकाली दल (बादल) पंजाब विधानसभा के चुनावों में शर्मनाक हार का शिकार हो नमोशी का सामना करने पर मजबूर हो रहा था, उस समय भी जी.के. ने ही अपने और अपने पिता ज. संतोख सिंह के किए कार्यों के सहारे दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनवों में रिकार्ड जीत हासिल कर पार्टी अध्यक्ष की झोली में डाल उसे नमोशी से बाहर निकाला था। ऐसे में मनजीत सिंह जी.के. को अपमानित कर गुरुद्वारा कमेटी के अध्यक्ष पद से हटाते और दल से बाहर करते हुए सुखबीर सिंह बादल भूल गए कि जो जी.के. 13 वर्ष बाद दिल्ली में उनके दल के पांव जमाने के लिए आधार बन सकता है, वह उन पांवों को दिल्ली में से उखाड़ भी सकता है। इस बात का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि बीते लगभग एक वर्ष से भ्रष्टाचार के नाम पर जी.के. पर लगातार हमले किए और करवाए जा रहे हैं, इसके बावजूद उनके पांवों में डगमगाहट नहीं लाई जा सकी। इसके विरुद्ध वह लगातार दल और गुरुद्वारा कमेटी पर उनकी सत्ता के लिए चुनौती बनते चले जा रहे हैं। 

‘सिरमौर’ सिख इतिहासकार
दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष मनजिन्द्र सिंह सिरसा, जो आजकल सिख इतिहास से संबंधित ‘विलक्षण’ खोजों के चलते चर्चा में हैं, की नित नई खोजों के सामने आने से ‘उत्साहित’ हो शिरोमणि अकाली दल दिल्ली के महासचिव हरविन्द्र सिंह सरना ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष गोबिंद सिंह लौंगोवाल से मांग की है कि वह अकाल तख्त के जत्थेदार तक पहुंच कर सिरसा को उनकी ‘विलक्षण’ खोजों के लिए ‘पंथ रत्न’ का सम्मान दिलवाएं। उनका कहना है कि हाल ही में सिरसा ने अपनी ‘अद्वितीय खोज’ के सहारे खुलासा किया है कि लक्खी शाह वणजारा, जो श्री गुरु तेग बहादुर जी की शहादत के बाद उनका धड़ अपने घर ले आए थे, ने गुरु साहिब के धड़ का दही से लेप कर वहां स्थित एक हजार साल पुराने कुएं के जल से स्नान कर अंतिम संस्कार किया था, जबकि सिख इतिहासकारों की अभी तक यही मान्यता चली आ रही है कि लक्खी शाह वणजारा गुरु साहिब के धड़ को उनके शहीदी स्थान चांदनी चौक से उठा बहुत तेजी से अपने घर की ओर चल पड़ा था ताकि सरकारी सैनिकों को उसका पता चलने से पहले ही वह उसका संस्कार कर दे। अपने घर पहुंचते ही उसने सामान इकट्ठा कर उस पर गुरु साहिब के धड़ को सजाया और आग लगा दी। जैसे ही धड़ का पूरी तरह संस्कार हो गया तब जाकर उसने आग-आग का शोर मचाया। सरना का कहना है कि इसी प्रकार  सिरसा ने सिख इतिहास से संबंधित और भी कई ऐसे महत्वपूर्ण खुलासे किए हैं जिनके लिए वह सम्मान के हकदार तो बनते ही हैं। सिख इतिहासकारों का मानना है कि ऐतिहासिक खोजों के लिए ‘पंथ रत्न’ का तो नहीं परन्तु ‘सिरमौर सिख इतिहासकार’ का सम्मान तो उन्हें मिलना ही चाहिए। 

...और अंत में
बीते रविवार को दिल्ली में श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के प्रति समॢपत नगर कीर्तन का आयोजन किया गया। गुरुद्वारा रकाबगंज (आरम्भता) से फतह नगर (समाप्ति) के स्थान तक के सारे रास्ते में श्रद्धालुओं की ओर से स्वागती स्टाल लगाए गए थे जिन पर नगर कीर्तन के साथ ही सिख मुखियों का भी स्वागत किया जा रहा था। ऐसे ही एक स्टाल का वीडियो वायरल हुआ देखा गया जिसमें शिरोमणि अकाली दल दिल्ली के अध्यक्ष परमजीत सिंह सरना को सिरोपा की बख्शीश कर सम्मानित किया गया। उसके कुछ देर बाद ही सरना और आयोजकों के बीच कोई बातचीत हुई, जिसके बाद सरना मंच से नीचे उतरते दिखाई दिए। इस पर  सिरसा ने प्रतिक्रिया देते हुए उन्हें अपमानित कर मंच से उतारा जाना बताया, जबकि सरना के समर्थकों का कहना था कि मंच पर विचार प्रकट करने के मुद्दे पर मतभेद होने के कारण  सरना स्वयं ही मंच से उतर आए।-न काहू से दोस्ती न काहू से बैर जसवंत सिंह ‘अजीत’
 


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