वर्तमान में मोदी सभी सर्वेक्षणों के बादशाह

punjabkesari.in Friday, Dec 16, 2022 - 05:58 AM (IST)

गुजरात और हिमाचल प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे और दिल्ली में नगर पालिका चुनाव भी भविष्यवाणी के मुताबिक ही रहे। मोदी-शाह सरकार गुजरात में किसी की भी छवि खराब नहीं होने दे सकती। राज्य में राजनीतिक स्थान पर हावी पटेल समुदाय के लिए आरक्षण की मांग के कारण पिछली बार उन्हें शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा था। उस आंदोलन का नेतृत्व करने वाले दोनों नौजवान, हार्दिक पटेल और ओ.बी.सी. के बीच प्रभाव रखने वाले एक अन्य युवक भाजपा में चले गए हैं। इसके साथ ही दोनों ने भाजपा का हाथ मजबूत किया है। इसी बात ने अकेले ही भाजपा के समर्थन आधार में भारी अंतर पैदा कर दिया। कांग्रेस का इस चुनाव में डाले गए कुल वोटों में हिस्सा 2017 के 40 प्रतिशत से गिर कर 26 प्रतिशत हो गया।

सत्ता संघर्ष में नए उतरे खिलाड़ी अरविंद केजरीवाल की ‘आप’ ने 13 प्रतिशत का कब्जा कर लिया जिसने इसे विधायिका में केवल 5 सीटें ही दीं लेकिन इस पार्टी ने राज्य में एक बड़ा पैर जमा लिया है। ‘आप’ गुजरात में सरकार बनाने के अपने सपनों से कोसों दूर है। उस स्तर पर आने में 2 दशक या उससे अधिक का समय लगेगा। गुजरात में ‘आप’ के बड़े पैमाने पर प्रचार के बावजूद यह कांग्रेस के पास भी नहीं पहुंच सकी जो वहां की मुख्य विपक्षी पार्टी बनी हुई है। जिस तरह से कांग्रेस अपना काम कर रही है उसे देखकर लगता है कि अगली बार वह अपना दर्जा भी खो देगी। अरविंद केजरीवाल व्यक्तिगत रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकल्प की पेशकश करने के अपने लक्ष्य के पास नहीं हैं।

भले ही वह अपनी चुनौती को 2029 तक के लिए स्थगित कर दें। 2024 में उनके पास कोई मौका नहीं है। वर्तमान में मोदी सभी सर्वेक्षणों के बादशाह हैं। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि मोदी 2024 में लोकप्रियता की लहर पर सवार होंगे। सद्भावना रखने वाले लोगों के लिए यह महसूस करना दुर्भाग्यपूर्ण है कि मोदी की लोकप्रियता एक नरसंहार, शुद्ध हिंसा से पैदा हुई थी जो गोधरा से निकलने वाली ट्रेन में 59 कार सेवकों की हत्या के बाद हुई थी। अगर पुलिस को एक दिन के लिए भी आंखें बंद करने का निर्देश नहीं दिया गया होता (वह एक दिन कई दिनों तक खिंच जाता) तो वह बहुत कम संभावना है कि मोदी उस ऊंचाई तक पहुंचते जिस पर वह अब गुजराती मानस में काबिज हैं।

सद्भावना के लोगों को घृणा हुई जब भाजपा राज्य और केंद्र के नेताओं ने बिलकिस बानो मामले में बलात्कारियों और मासूम महिलाओं और बच्चों के हत्यारों को दी गई आजीवन कारावास की सजा को माफ कर दिया। किसी ने सोचा होगा कि संवैधानिक शक्तियों के इस तरह के विकृत उपयोग के खिलाफ सार्वजनिक आक्रोश होगा। कम से कम रिहा किए गए दोषियों के स्वागत की कड़ी निंदा तो की जानी चाहिए थी। लेकिन गुजरात के लोगों की अंतरात्मा को कुछ भी परेशान नहीं करता था। शायद नेतृत्व ने अपने मतदाताओं के मिजाज को भांप लिया था। दोषियों की समय से पूर्व रिहाई और उनका किया गया स्वागत बहु-प्रतीक्षित चुनावी जीत हासिल करने का नुस्खा था। गुजरात के लोगों का अपना अलग सामूहिक व्यक्तित्व है।

एक सज्जन, अहिंसक लोग ज्यादातर समय अपने सिर को बहीखातों में दफन किए होते हैं। उन लोगों का दिमागी डर होता है जो अपने अगले भोजन के लिए संघर्ष करते हैं लेकिन यहां तक कि चाकू और बंदूक का इस्तेमाल करने से भी नहीं हिचकिचाते। गुजराती अपने शारीरिक नुक्सान से बचने के लिए सेना और पुलिस के वर्दीधारी पुरुषों पर भरोसा करते हैं लेकिन अब वे विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के नेतृत्व वाले हिंदुत्व और उसके अग्रिम पंक्ति के सैनिकों का अधिक से अधिक समर्थन करने लगे हैं। हमारे देश के गृह मंत्री अमित शाह ने एक चुनावी भाषण में घोषणा की थी कि सरकार ने 2002 में बदमाशों को सबक सिखाया था। तब से उन्होंने साम्प्रदायिक ङ्क्षहसा का ऐलान कर दिया।

यह आज के साधारण गुजराती की सोच का सार है। चुनाव से पहले उस ‘सच्चाई’ की याद मतदाताओं को मतदान केंद्रों तक ले जाने के लिए पर्याप्त है। हिमाचल में मुस्लिम मतदाताओं का प्रतिशत बहुत कम है। उनके वोट अंतिम परिणाम के लिए अप्रासंगिक हैं। मतदाता उस पैट्रन में मतदान करना जारी रखते हैं जिसके वह आदी थे। इन चुनावों में भाजपा के पास आंतरिक कलह का उचित हिस्सा था। अब जबकि शिमला में कांग्रेस ने भाजपा की जगह ले ली है तो इसे 2027 में उसी भाग्य की उम्मीद करनी चाहिए। अगर कांग्रेस इतने लम्बे समय तक टिकी रह सके।  2027 तक इसकी समस्या अपने झुंड को साथ रखने की होगी। महाराष्ट्र में भाजपा की सहयोगी शिवसेना के शिंदे गुट ने अपने विधायकों को खुश रखने का अनोखा तरीका अपनाया है।

इसने निर्भय योजना के तहत पुलिस थानों को दिए गए वाहनों, जोकि महिलाओं को वासना से बचाने के लिए दिए गए थे, को वापस ले लिया है और उन्हें शारीरिक नुक्सान से बचाने के लिए प्रत्येक विधायक को स्थानांतरित कर दिया है। शिंदे गुट का हर विधायक अब एक समय में 5 पुलिस कर्मियों की 24 घंटे सुरक्षा रखता है जो उन्हें संभावित हमलों से बचाते हैं। क्या कोई नहीं जानता है कि इस गुट के करीब 40 विधायक हैं। 40 विधायकों में से प्रत्येक के लिए 5 पुलिस कर्मियों  के होने का मतलब 200 पुलिसकर्मी सुरक्षा में लगाए गए हैं। पुलिस कर्मियों को उनके सामान्य गश्त से हटा दिया जाएगा और विधायकों को खुश रखने के लिए प्रति नियुक्त किया जाएगा। सरकारी खजाने की लागत और एक खस्ताहालत पुलिस थाने की पीड़ा का कोई महत्व नहीं रह गया है।

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा गंभीर रूप से धूम मचा रही थी। चुनावी बुखार के दौरान वह हवा से दूर थे लेकिन परिणाम घोषित होने और नए मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति के बाद भी चैनल उन्हें वापस फोकस में नहीं ला सके। अगर 2024 में उन्हें नरेंद्र मोदी का सामना करने के लिए कांग्रेस पार्टी का उम्मीदवार बनना है तो उन्हें न केवल अलग-अलग ताकतों में शामिल होना होगा जो अब विपक्षी जगह में मौजूद हैं। उन्हें अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, के. चंद्रशेखर राव, नीतीश कुमार को यह विश्वास दिलाने की जरूरत है कि राहुल तैयार हैं और नेतृत्व करने में सक्षम है। अगर वह ऐसा नहीं कर पाते तो 5 अलग-अलग पी.एम. वेटिंग में निकल आएंगे। -जूलियो रिबैरो (पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)


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