तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए बड़ी ‘चुनौती’

punjabkesari.in Saturday, Sep 21, 2019 - 02:07 AM (IST)

आने वाले समय में हरियाणा, महाराष्ट्र तथा झारखंड में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इन चुनावों में जहां कांग्रेस की साख दाव पर होगी, वहीं भारतीय जनता पार्टी की जीत इसे ताकत के शिखर पर ले जाएगी। अब देखना यह है कि क्या कांग्रेस अपनी उस बची-खुची साख को बचा सकेगी, जिसे पिछले लोकसभा चुनावों में चोट पहुंच चुकी है। 

इस चोट के बाद अभी तक कांग्रेस अपने पांवों पर खड़ी नहीं हो सकी है। इस हार की रोशनी में राहुल गांधी ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। राहुल गांधी ने यह इस्तीफा लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को मिली पराजय की जिम्मेदारी अपने सिर लेते हुए दिया था। पार्टी ने उनसे इस्तीफा वापस लेने के लिए कई निवेदन किए मगर उन्होंने किसी की बात नहीं मानी। इसी दौरान ही पार्टी के जिम्मेदार नेताओं ने भी अपने पदों से इस्तीफे दे दिए ताकि राहुल पार्टी का पुनर्गठन कर सकें मगर राहुल गांधी इसके लिए भी राजी न हुए। 

लोकसभा चुनावों में हार से संकट
इस तरह 2019 के लोकसभा चुनावों में हार होने से कांग्रेस में संकट पैदा हो गया। राहुल गांधी द्वारा अपना इस्तीफा वापस न लेने पर पार्टी ने सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनाया है। मगर लोकसभा चुनावों के बाद पार्टी में उत्पन्न नेतृत्व के संकट ने पार्टी को काफी हद तक कमजोर किया है। इसके साथ ही जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं, उनमें कांग्रेस का स्थानीय नेतृत्व भी कमजोर है। यह नेतृत्व कई धड़ों में बंटा होने के कारण आम कांग्रेस कार्यकत्र्ता तथा समर्थक निराश हैं। ऐसे लगता नहीं कि कांग्रेस इन चुनावों में अपनी खोई हुई जमीन पर दोबारा काबिज हो सकेगी। 

मगर दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी में लोकसभा चुनावों की विजय ने एक नया उत्साह पैदा किया है। इसके कार्यकत्र्ता तथा समर्थक भविष्य के लिए आशावादी हैं। इसके अतिरिक्त जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, उनमें भारतीय जनता पार्टी सत्ता में है और वहां के मुख्यमंत्री भी जनता के विश्वास के पात्र बने हुए हैं। पार्टी की सफलता इसी विश्वास पर निर्भर है। इस तरह वर्तमान राजनीतिक माहौल से भाजपा में उत्साह बना हुआ है, जो कांग्रेस में देखने को नहीं मिलता। इन चुनावों में यदि भाजपा जीत प्राप्त करती है तो 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद यह लगातार दूसरी जीत होगी। 

राज्य इकाइयां आपस में उलझीं
जहां तक कांग्रेस का संबंध है, महाराष्ट्र, झारखंड तथा हरियाणा विधानसभा चुनावों में पार्टी के आसार रोशन नहीं हैं। इसका एक कारण यह है कि इन राज्यों की कांग्रेस इकाइयां आपस में उलझी हुई हैं। बेशक सोनिया गांधी ने पार्टी की कमान सम्भाल ली है मगर पार्टी की आंतरिक स्थिति पर काबू पाने में उन्हें समय लग रहा है। इसके साथ ही कई कांग्रेसी भाजपा की ओर पलायन कर चुके हैं। इस पलायन को रोकने की ओर भी सोनिया गांधी को ध्यान देना होगा। काफी हिचकिचाहट के बाद उन्होंने हरियाणा कांग्रेस के ढांचे में फेरबदल किया है। अशोक तंवर को हटा कर पूर्व केन्द्रीय मंत्री कुमारी शैलजा को प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष बनाया गया है। 

पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा जो बगावत पर उतर आए थे और उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर अपनी अलग पार्टी बनाने का संकेत भी दिया था, को शांत करने के लिए उन्हें कांग्रेस विधायक दल का नया नेता बनाया गया है। इस तरह हुड्डा अब विधानसभा में विपक्ष के नेता होंगे। सोनिया गांधी ने इस तरह फेरबदल करके पार्टी में एकता लाने का प्रयास किया है मगर पार्टी सूत्रों के अनुसार अभी भी पार्टी में ‘सब अच्छा’ नहीं। दूसरी ओर भाजपा मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में चुनाव लडऩे जा रही है। खट्टर की खूबी यह है कि उन्होंने पार्टी में एकता बनाई हुई है, जोकि भाजपा की जीत का माध्यम बन सकती है। जहां तक अन्य छोटी पार्टियों का संबंध है, वे तिनका-तिनका हुई पड़ी हैं। 

झारखंड में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सामाजिक पैठ बना ली है जबकि कांग्रेस इस मामले में पिछड़ी हुई है। भाजपा 2014 तथा 2019 में क्रमवार विधानसभा तथा लोकसभा चुनावों में विजयी रही है जबकि 2019 में कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा, राष्ट्रीय जनता दल व बाबू लाल मरांडी की कारगुजारी निराशाजनक रही है। 2019 के लोकसभा चुनावों में इन दलों को कोई सफलता नहीं मिली थी। दूसरी ओर भाजपा ने लोकसभा की 14 में से 12 सीटें जीती थीं। झारखंड में अब कांग्रेस को एक और झटका लगा है, जब इसके प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अजय कुमार पार्टी को अलविदा कह गए हैं। इससे मुख्यमंत्री रघुबर दास के रास्ते का एक अन्य रोड़ा साफ हो गया है। 

महाराष्ट्र में स्थिति कांग्रेस के अनुकूल नहीं। कांग्रेस की सहयोगी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) की हालत पतली है। यह इस समय धड़ेबंदी की शिकार है और इसमें जाब्ते की कमी है। इसके अध्यक्ष शरद पवार की पार्टी पर पकड़ ढीली पड़ रही है। इसके अतिरिक्त कांग्रेस तथा राकांपा के बीच सीटों का बंटवारा भी तय नहीं हो सका है। दूसरी ओर सत्ताधारी भाजपा की सहयोगी शिवसेना बेशक आए दिन भाजपा की आलोचना करती रहती है, मगर चुनावों में यह भाजपा के साथ ही रहेगी। इसलिए दोनों पार्टियों में सीटों का बंटवारा भी शीघ्र हो जाएगा। 

प्रधानमंत्री मोदी का प्रभाव
तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में यदि भारतीय जनता पार्टी जीतती है तो इससे स्वाभाविक तौर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का प्रभाव बढ़ेगा। इसके साथ ही नरेन्द्र मोदी तथा अमित शाह, जिन्हें लोकसभा चुनावों में जीत का निर्माता कहा जाता है, का नेतृत्व भी स्थापित हो जाएगा। इसके साथ कमजोर हो रही अर्थव्यवस्था का चुनावों पर प्रभाव का भी पता लग जाएगा। इस समय जो हालात हैं, गाडिय़ों की बिक्री कम हो गई है, रेलवे के माध्यम से माल ढुलाई भी घट गई है। 

पैट्रोलियम पदार्थों के इस्तेमाल में भी कमी आई है। इस सबसे पता चलता है कि देश की अर्थव्यवस्था कमजोर पड़ रही है। इसके बावजूद भी यदि भाजपा जीतती है तो यह नरेन्द्र मोदी के प्रभाव का ही नतीजा होगा। इसके साथ ही भाजपा के मुख्यमंत्रियों की कारगुजारी भी पार्टी के काम आएगी। भाजपा के पास धन है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसा संगठन है, जबकि विरोधी हर पक्ष से कमजोर हैं।-बचन सिंह सरल
 


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