भविष्य में भूकम्प से निपटने की तैयारी जरूरी

punjabkesari.in Saturday, May 09, 2015 - 12:43 AM (IST)

(डा.राजीव पत्थरिया): मौसम की तरह भूकम्प जैसी बड़ी आपदा की भविष्यवाणी तो नहीं की जा सकती परन्तु इसके संकेतों को जानकर इससे निपटने की तैयारी जरूर हो सकती है। भविष्य में भूकम्प की दृष्टि से हिमालय क्षेत्र अति-संवेदनशील माने जा रहे हैं जिनमें से हिमाचल प्रदेश भी एक है। हिमाचल का क्षेत्र 1905 में भयंकर भूकम्प के कारण आई तबाही का मंजर पहले भी देख चुका है। 

दुनिया के जाने-माने भूकम्प विशेषज्ञ प्रो.रोजर विल्हेम ने गत 500 वर्षों में हिमालय क्षेत्र में आए भूकम्प के बारे में अपने अध्ययन के बाद साफ कहा है कि हिमालय क्षेत्र के नीचे इंडो-यूरेशियन प्लेट के नीचे की ऊर्जा ठीक प्रकार से मुक्त नहीं हुई है। जिस कारण भविष्य में कभी भी बड़ा विनाशकारी भूकम्प आ सकता है जिसकी तीव्रता 9 से 10 रिएक्टर स्केल की होगी। वहीं पिछले कुछ सालों में हिमालय क्षेत्र में जो भूकम्प के झटके आए हैं उनमें से अनेकों बार उनका क्षेत्र यहां के चंबा, कांगड़ा, कुल्लू, किन्नौर, लाहौल-स्पीति और शिमला जिले रहे हैं। 
 
वर्ष 2006 से लेकर अब तक इन सभी जिलों में 3.8 से 4.8 रिएक्टर के झटके महसूस किए जा चुके हैं। जबकि हिमाचल और जम्मू-कश्मीर की सीमा जब भूकम्प का केन्द्र रहा है तो उनकी तीव्रता 5 रिएक्टर तक आंकी गई है। यानी कि भविष्य में जब भी भूकम्प जैसी बड़ी आपदा आती है तो उसका प्रभाव हिमाचल   प्रदेश में ज्यादा होगा। क्योंकि जिस हिन्दूकुश यानी हिमालय क्षेत्र की प्लेट  का जिक्र प्रो.रोजर विल्हेम सहित अन्य विशेषज्ञों ने अपने अध्ययनों  में किया है वह अफगानिस्तान से लेकर नेपाल तक है और इसी प्लेट के ऊपर भारत के हिमालयी राज्य जैसे हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड भी आते हैं। 
 
हिमाचल प्रदेश भूकम्प की दृष्टि से अति-संवेदनशील जोन 5 में शामिल है। लेकिन यहां की सरकारें इस खतरे को भांपते हुए भी इससे निपटने के लिए प्रदेश के लोगों को तैयार कर पाने में पूरी रुचि नहीं ले पाई हैं। वैसे भी  4 अप्रैल, 1905 में कांगड़ा में जो भूकम्प आया था उसकी तीव्रता 7.8 रिएक्टर थी और उसमें 19800 लोग मारे गए थे। 
 
कांगड़ा भूकम्प के 100 साल पूरे होने पर भारत सरकार के भूकम्प संवेदनशीलता सलाहकार व आई.आई.टी. रूड़की के सिविल अभियांत्रिकी विभाग के प्रमुख प्रो.आनंद स्वरूप आर्य ने तब हिमाचल प्रदेश खासकर कांगड़ा और इसके आस-पास के जिलों का दौरा कर भविष्य में ऐसे भूकम्प आने पर एक परिकल्पना रिपोर्ट तैयार की थी। क्योंकि यह अवधारणा रही है कि 100 साल बाद भूकंप की पुनरावृत्ति होती है हालांकि इसका कोई ठोस वैज्ञानिक आधार नहीं है परन्तु रिपोर्ट के अनुसार अगर 1905 वाले भूकम्प की पुनरावृत्ति होती है तो कांगड़ा जिला और इसके साथ लगते क्षेत्रों में 3 लाख घर ध्वस्त होंगे और 4 लाख के करीब लोगों की जानें उसमें  जा सकती हैं। 
 
उन्होंने ऐसी आपदा में 2 खरब से अधिक की सम्पत्ति और पशुधन के नुक्सान का भी आकलन किया था। तब उन्होंने ऐसे नुक्सान को कम करने के लिए भूकंप से बचाव आदि के लिए आवश्यक जागरूकता कार्यक्रम और भवन निर्माण कार्य करने वाले सभी लोगों को प्रशिक्षण देने का सुझाव दिया था। हालांकि उनके सुझाव पर उस समय कांगड़ा जिला में कुछ काम भी शुरू हुआ लेकिन वह केवल स्कूली बच्चों को भूकंप आने पर बचाव तक ही सिमट गया। 
 
प्रो.रोजर विल्हेम अब तक कई बार भारत आ चुके हैं और उन्होंने शहरों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में  कंक्रीट के हो रहे निर्माण को असुरक्षित बताया है। उनके अनुसार भारत के हिमालयी क्षेत्रों में प्राचीन शैली में लकड़ी और मिट्टी के जो मकान बनाए जाते थे वे भूकम्प के अलावा किसी और आपदा के आने की स्थिति में भी सुरक्षित थे। लेकिन अब कंक्रीट के जो मकान बन रहे हैं भूकम्प आने पर वही सबसे बड़ा खतरा बनेंगे। 
 
हिमाचल प्रदेश भूकम्प की दृष्टि से अति-संवेदनशील घोषित तो है लेकिन यहां पर आज भी सरकारी और निजी क्षेत्र में जो निर्माण कार्य हो रहे हैं उनमें भूकंपरोधी  तकनीकों का इस्तेमाल बहुत कम हो रहा है। सरकारी क्षेत्र में जो बड़ी इमारतें बन रही हैं उनमें तो इसका इस्तेमाल हो रहा है क्योंकि ऐसे भवनों के निर्माण में धन की कमी नहीं है। 
 
लेकिन स्वास्थ्य, शिक्षा, पशुपालन, पंचायत भवन व अन्य विभागों के गांवों में बनने वाले एक-दो कमरों में धन की कमी के चलते भूकंपरोधी तकनीक इस्तेमाल नहीं हो पा रही है। जबकि शहरी व योजना क्षेत्रों में नगर नियोजन विभाग के नियम लागू होने से वहां अब जो नए भवन बन रहे हैं उनका स्ट्रक्चर डिजाइन भी मंजूर किया जा रहा है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में जो कंक्रीट के भवन बन रहे हैं, वे भूकम्प की दृष्टि से सुरक्षित नहीं हैं। 
 
सरकार का भी ऐसे भवनों के निर्माण पर कोई नियंत्रण नहीं है। प्रदेश की राजधानी शिमला में बेतरतीब निर्माण बदस्तूर जारी है। राजधानी में जो निर्माण हुआ भी है, भूकंप जैसी बड़ी आपदा आने पर राहत कार्यों में उसके कारण ही बड़ी रुकावट भविष्य में बन सकती है।
 
अपने पड़ोसी राज्य उत्तराखंड का जिक्र करें तो वहां की सरकारों ने बहुत पहले ही भविष्य में आने वाले भूकम्प को लेकर सतर्कता दिखाई है। उत्तराखंड सरकार ने अलग से आपदा प्रबंधन विभाग का गठन किया है  तथा भूकंप सहित अन्य आपदाओं पर शोध व उनसे निपटने के लिए एक उच्च स्तरीय संस्थान का गठन भी किया है जो नियमित रूप से सरकारी और गैर-सरकारी क्षेत्र के लोगों को प्रशिक्षण प्रदान करता है। हिमाचल प्रदेश में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण कार्य कर रहा है जिसका नियंत्रण राजस्व विभाग के अधीन है। भविष्य में भूकंप को लेकर जो शोध हुए हैं उनके अनुसार अभी से हिमाचल प्रदेश सरकार को भी अलग से आपदा प्रबंधन विभाग का गठन करके सक्रिय रूप से लोगों को जागरूक करने में जुट जाना चाहिए। वहीं भूकंपरोधी निर्माण यहां की सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।      
 

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