‘मोगा कांड’ जैसी त्रासदियां क्या रुक सकती हैं

punjabkesari.in Thursday, May 07, 2015 - 12:39 AM (IST)

(किरण बेदी): क्या हम निर्भया और मोगा जैसे कांडों की पुनरावृत्ति रोक सकते हैं? निर्भया मामले में एक युवती को सामूहिक दुष्कर्म के बाद चलती बस में से फैंक दिया गया था और मोगा मामले में 14 वर्षीय किशोरी से पहले छेड़छाड़ की गई और फिर उसे बस से बाहर धकेल दिया गया। दोनों ही मामलों में पीड़ितों की मौत हो गई। दोनों ही मामलों में व्यापक जनाक्रोश पैदा हुआ। दोनों ही मामलों में वक्त की सरकार को धूल चाटनी पड़ी। 

कानून और इसकी प्रक्रियाओं में परिवर्तन की सिफारिश करने के लिए न्यायमूर्ति वर्मा समिति स्थापित की गई थी। मोगा मामले में उप मुख्यमंत्री को राज्य में चल रही अपनी बसों की फ्लीट को सड़कों से उतारना पड़ा और यहां तक कि इस परिवहन कम्पनी को अपने कोष में से मृतक के परिजनों को 25-30 लाख रुपया हर्जाना भी देना पड़ा। जहां तक मुझे याद है ताजा इतिहास में यह उदाहरण प्रथम है। 
 
मैं यह सवाल करना चाहती हूं कि क्या इस प्रकार की त्रासदियां रोकी जा सकती हैं? इस प्रश्र का उत्तर देने के लिए हमें इनके मूल कारणों की पहचान करनी होगी। जब तक जड़ को ठीक नहीं किया जा सकता, सभी अन्य बातें केवल अल्पकालिक प्रतिक्रियाएं बनकर ही रह जाएंगी, जैसा कि हमारे सामने अब हो रहा है। यह प्रतिक्रिया तब होती है, जब नुक्सान पहले ही हो चुका होता है, जैसा कि निर्भया और मोगा छेड़छाड़ मामले में हुआ। 
 
छेड़छाड़ करने वाले आखिर जन्म से तो ऐसे होते नहीं। बड़े होकर ही वे ऐसे बनते हैं। वे ऐसे किस प्रकार और क्यों बनते हैं? यही मूलभूत प्रश्र है जिनको संबोधित होना जरूरी है। लेकिन ऐसे प्रश्र पूछने वाले लोग अधिक नहीं हैं। जितनी भी ऐसी घटनाएं हो रही हैं, वे राजनीतिक तोहमतबाजी में उलझ कर रह जाती हैं। 
 
हमें यह सवाल बिना झिझक पूछना चाहिए कि ऐसे बिगड़ैल तत्वों की परवरिश के लिए जिम्मेदार कौन है? उनको किस प्रकार के वातावरण में बड़े होने का मौका मिला? दूसरे लोगों और खास तौर पर महिलाओं का सम्मान न करने की बात उन्हें किसने सिखाई? उन्हें अच्छा व्यवहार न सिखाने का दोषी कौन है? वे कैसे स्कूलों में पढ़ते रहे हैं? उनके अध्यापक उनको कौन-सी शिक्षा नहीं दे पाए? 
 
कौन-सी बात उन्होंने अपने अध्यापकों से नहीं सीखी? क्या वे पढऩे के लिए जाते थे या सिर्फ टाइम-पास के लिए? क्या वे अपनी पढ़ाई के प्रति गंभीर थे? या क्या उन्होंने पढ़ाई बीच में छोड़ दी अथवा फेल हो गए थे? स्कूल और अभिभावकों ने तब क्या कदम उठाए? उनके दोस्त कैसे लोग थे? क्या वे रात देर से घर लौटते थे? क्या उन्होंने छोटी आयु में ही नशीली दवाइयों और शराब का सेवन शुरू कर दिया था।
 
जो लड़का बड़ा होकर छेड़छाड़ करने वाला बना, क्या घर में उसका पिता उसके सामने ही शराब या अन्य मादक द्रव्यों का सेवन किया करता था? क्या इस लड़के ने किशोरावस्था में ही आवारागर्दी शुरू कर दी थी? ऐसा होने पर अभिभावकों ने क्या किया था? क्या वह लड़कियों से छेड़छाड़ किया करता था और क्या उसके माता-पिता को इसकी कोई शिकायत मिली थी? क्या उसके अभिभावकों के बीच पारिवारिक हिंसा होती थी? क्या वह अपनी आंखों से महिलाओं का अपमान होते देखता था? क्या उसकी बहनें हैं? यदि वह शादीशुदा है तो अपनी पत्नी से कैसा व्यवहार करता है? 
 
जो सवाल ऊपर पूछे गए हैं, इनमें से कई सारे प्रश्रों से निपटने की अवहेलना संभावी बिगड़ैलों को जन्म देती है। सभी पुरुष एक जैसे नहीं होते। अनेक नेक इन्सान दूसरों के रक्षक भी बनते हैं। बिगड़ैलों और रक्षकों में यह फर्क केवल अलग-अलग तरह की परवरिश के कारण ही आता है। इसलिए महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों को रोकने की मूलभूत जिम्मेदारी माता-पिता और अध्यापकों के हाथों में ही है। उन्हें संभावी बिगड़ैलों की नई पीढ़ी को बेलगाम छोडऩे का काम तत्काल रोकना होगा। 
 
एक बार यदि हम बेहतर इंसानों का सृजन कर लेते हैं तो महिलाओं व अबलाओं तथा लाचार लोगों को किसी प्रकार की बेइज्जती अथवा चोट  का सामना नहीं करना पड़ेगा। यानी कि उपरोक्त प्रश्रों का उत्तर यह है कि इन्सानों की बेहतर नस्ल सृजित की जाए। 
 
लेकिन असली चुनौती यह है कि  सड़कों, गलियों, घरों और बसों में पहले ही करोड़ों उचक्के और बदमाश दनदनाते फिरते हैं। हमारे सहकर्मियों और सहयात्रियों के रूप में भी वे विद्यमान होते हैं। हमें ऐसे लोगों को नए सांचे में ढालने के लिए काम करना होगा। ऐसे लोगों के भी अपने घर और परिवार होते हैं। इसलिए क्यों न उनके अभिभावकों व पत्नियों को हस्तक्षेप के लिए प्रेरित किया जाए? यहां तक कि उनके बच्चों तथा भाई-बहनों का भी सहयोग लिया जाना चाहिए और वे सभी मिलकर ऐसा सशक्त सामाजिक ‘दबाव समूह’ बन सकते हैं, जो बिगड़ैलों को भद्र व्यवहार करने और कभी लक्ष्मण रेखा न लांघने को मजबूर कर सकता है। 
 
घरों में बिगड़ैलों के बुजुर्ग भी होते हैं। हर परिवार को यह प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि वे कभी भी किसी महिला की बेइज्जती करने के भागीदार नहीं बनेंगे और इस संकल्प की शुरूआत अपने घर-परिवार से ही करें। उसके बाद नियोक्ताओं की बारी आती है। कार्यस्थलों पर उन्हें ऐसे लोगों को अच्छी तरह प्रशिक्षित करना होगा और उन्हें कड़ी चेतावनी देनी होगी कि कभी भी गलत कार्यों में संलिप्त न हों। रोजगार देने से पूर्व ही आवेदकों के चरित्र और अतीत का सत्यापन होना चाहिए तथा महिलाओं के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए उनको अनिवार्यता रिफ्रैशर प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। मादक द्रव्यों और नशीली दवाइयों की आदत पर लगातार नजर रखी जानी चाहिए क्योंकि हिंसक व्यवहार के लिए चीजें गंभीर रूप में जिम्मेदार हैं। 
 
मोगा कांड रोका जा सकता था, यदि मुठ्ठी भर अन्य यात्रियों ने भी हस्तक्षेप किया होता। हर रोज की प्रार्थनाओं, सामुदायिक लंगरों और कार सेवा करने का क्या तुक है यदि हम अपनी आंखों के सामने मुश्किल में फंसे किसी इन्सान की सहायता करने को तैयार नहीं? यहां तक कि निर्भया मामले में भी पीड़िता सामूहिक दुष्कर्म के बाद लंबे समय तक दिल्ली की सड़क पर नग्र पड़ी रही। लोग आ-जा रहे थे, लेकिन कोई भी रुका नहीं। 
 
हमें अच्छे नागरिकों वाले गुण सीखने होंगे। इस समय न तो हमें यह शिक्षा दी जाती है और न ही हम सीखने को तैयार हैं। यह शिक्षा छोटी आयु से ही दी जानी चाहिए, तभी लोग बेहतर इंसान बन सकेंगे, जो किसी को पीड़ा भी नहीं पहुंचाएंगे और संकट में फंसे किसी व्यक्ति की पीड़ा के प्रति संवेदनहीन भी नहीं होंगे।  

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