गडकरी कांड : लोकतांत्रिक प्रणाली में ‘जवाबदेही’ जरूरी

punjabkesari.in Tuesday, Mar 03, 2015 - 04:47 AM (IST)

(पूनम आई. कौशिश) ‘‘वे बहुत महत्वपूर्ण लोग हैं...देखना उन्हें कोई तकलीफ न हो, पूरा आराम मिले।’’ देखने में यह एक आम निर्देश लगता है किन्तु इसने राजनीतिक दिल्ली में हलचल पैदा कर दी है और इसका कारण जिन लोगों के आराम के लिए यह निर्देश दिया गया वे हैं केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी। यह एक बार पुन: राजनेताओं, व्यवसायियों और पत्रकारों की सांठगांठ को दर्शाता है। या यूं कहें पूंजीपतियों का पक्ष लिया जाता है जिसमें स्वार्थी दोस्ती और पारिवारिक संबंध सरकारी निर्णयों और सौदों को प्रभावित करते हैं तथा इनसे एक-दूसरे को लाभ मिलता है। यह हमारी 21वीं सदी की देश की राजनीति है।

एस्सार ग्रुप के व्हिसल ब्लोअर द्वारा कम्पनी के आंतरिक पत्र को सार्वजनिक करने से राजनीति में हलचल पैदा हो गई है कि किस प्रकार गडकरी और उनके परिवार के सदस्यों को 7 से 9 जुलाई 2013 के बीच नाइस से उड़ान में फ्रैंच रिवेरा लाया गया जहां पर उन्होंने दुनिया की आलीशान याच में 2 रातें बिताईं। यह बताता है कि किस प्रकार कम्पनियां मंत्रियों, राजनेताओं, नौकरशाहों और पत्रकारों को खुश करती हैं, उन्हें उपहार देती हैं और उनकी सुख-सुविधाओं का ध्यान रखती हैं और बदले में अपने व्यावसायिक हितों को आगे बढ़ाती हैं।

गडकरी का बचाव है कि उस समय वह सार्वजनिक जीवन में नहीं थे तो फिर समस्या कहां है? गडकरी का कहना है, ‘‘मैं नॉर्वे में व्यक्तिगत छुट्टियां बिताने गया था। यात्रा के सभी टिकटों और होटल के बिलों का मेरे द्वारा भुगतान किया गया। मैं रूइया परिवार को 25 सालों से जानता हूं। इसलिए उन्होंने मुझे आमंत्रित किया और इसमें कोई हितों का टकराव नहीं है क्योंकि उस समय न तो मैं भाजपा अध्यक्ष था, न ही मंत्री और न ही सांसद। और अब आगे मैं ऐसा नहीं करूंगा क्योंकि अब मैं एक मंत्री हूं।’’

किन्तु मूल प्रश्न यह है कि सार्वजनिक व्यक्ति न होने के बावजूद पार्टी के पदानुक्रम में वह बहुत ही महत्वपूर्ण व्यक्ति थे। गडकरी ने यहां तक कहा कि वह इस याच पर एक अध्ययन दौरे के संबंध में गए थे किन्तु वह किसे बेवकूफ बना रहे हैं? क्या वह भूल गए कि एक सार्वजनिक व्यक्ति के रूप में उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए था कि उनके सार्वजनिक कत्र्तव्यों और निजी हितों के बीच कभी भी हितों का टकराव न हो? किन्तु केवल गडकरी को ही दोष क्यों दें? कांग्रेस के तत्कालीन कोयला मंत्री जायसवाल, वरिष्ठ कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह और मोतीलाल वोरा, पूर्व सांसद लागुरी और भाजपा के वरुण गांधी ने एस्सार गु्रप में नौकरी के लिए उम्मीदवारों के नाम भेजे। वस्तुत: कम्पनी की ईमेलों से पता चलता है कि 200 पद वी.आई.पी. लोगों द्वारा भेजे गए प्रत्याशियों के लिए आरक्षित किए गए थे और उनका अलग से डाटा बैंक बनाया गया था। आप इसे धनाढ्य तंत्र कहें या चोर तंत्र किन्तु सच्चाई यह है कि सभी नेता ऐसा कर रहे हैं और उन्हें ऐसा करने में कुछ भी गलत नहीं दिखाई देता। इस खेल का नाम ही लेन-देन है।

आज नेताओं को रिश्वत देना आम बात हो गई है और देश में सफलता का निर्धारण कानून के शासन द्वारा निर्धारित नहीं होता है अपितु एक व्यवसायी की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि सरकार ने उसे क्या दिया है और इसका प्रभाव यह है कि आज सबसे निचले स्तर पर गांवों में तैनात कर्मचारी और पुलिसकर्मी भी यह अपेक्षा करते हैं कि लोगों का काम करने के लिए उनकी मुट्ठी गर्म की जाए। पूंजीपतियों का पक्ष लेने के अनेक उदाहरण हैं, 2-जी स्पैक्ट्रम घोटाला, आदर्श सोसायटी घोटाला और कोयला घोटाला इत्यादि। कोयला घोटाले में कोयला ब्लॉक यू.पी.ए. के मंत्रियों, कांग्रेसी नेताओं और उसके सहयोगी दलों के सांसदों के परिवारों और मित्रों तथा पार्टी के घनिष्ठ लोगों को आबंटित किए गए तथा नीरा राडिया टेप्स बताते हैं कि उद्योगपतियों, मीडिया, नेताओं और बाबुओं के बीच किस प्रकार की सांठगांठ है। हैरानी की बात यह है कि 2011 में राज्यसभा के 62 सांसदों के विभिन्न कम्पनियों में हित थे जिनमें उन्हें सवैतनिक निदेशक भी बनाया गया था।

कई कम्पनियों में उनकी शेयरधारिता इस सीमा तक थी कि वे कम्पनी को नियंत्रित करते थे। वे कम्पनियों को पैसे के बदले परामर्श और पेशेवर सलाह देते थे। हैरानी की बात यह है कि वे संसद की उन स्थायी समितियों के सदस्य थे जिनसे उनके व्यावसायिक हित जुड़े हुए थे और इसका मुख्य कारण यह है कि इस खेल के कोई नियम नहीं हैं। नैतिकता और नैतिक मूल्य अब महत्वपूर्ण नहीं रह गए हैं और यह कोई बड़ी बात नहीं है कि इसमें हितों के टकराव की बू आती है। प्रश्न यह भी उठता है कि राजनेता के सार्वजनिक और व्यक्तिगत जीवन को अलग करने वाली रेखा कौन-सी है? यदि वे व्यक्तिगत जीवन में अनैतिक हैं तो क्या वे सार्वजनिक जीवन में नैतिक हो सकते हैं? क्या उनके निजी जीवन से जनता को कोई सरोकार है? क्या राजनीति अत्यधिक व्यक्तिगत बन गई है या क्या नेताओं को अपने कार्यों की मीडिया द्वारा सघन संवीक्षा की अपेक्षा करनी चाहिए? क्या हमारी अपने नेताओं से अवास्तविक अपेक्षाएं हैं?

मुद्दा यह नहीं है कि गडकरी ने अविवेकपूर्ण कार्य किया है किन्तु इससे यह बात पुन: रेखांकित होती है कि हमारे नेताओं को आम लोगों से ऊपर रहना चाहिए ताकि उनका सम्मान किया जा सके और वे मानवीय कमजोरियों के सामने आसानी से न झुकें। गडकरी और उनकी जमात के लोग भूल गए हैं कि यदि कोई व्यक्ति सार्वजनिक जीवन में प्रवेश कर जाता है और वह जनता के प्रति उत्तरदायी होता है तो उसे अपनी निजता की कीमत चुकानी पड़ती है। आम लोगों को अपने नेता के बारे में सब कुछ जानने का हक है क्योंकि उनके वेतन का भुगतान जनता द्वारा किया जाता है और वे अपने नेताओं के बारे में सुविज्ञ निर्णय लेना चाहते हैं किन्तु केवल गडकरी ही नहीं अपितु हमारे नेतागण जवाबदेही का विरोध करते हैं और वे कानून द्वारा शासन करते हैं। वे सुशासन के सिद्धांतों का पालन नहीं करते। 

गडकरी प्रकरण की त्रासदी यह है कि इस प्रकरण के खुलने से हमारे नेताओं के दृष्टिकोण में कोई अंतर नहीं आया है, न ही उनमें कोई पश्चाताप की भावना है और आज भी उनकी मनमर्जी जारी है। वे कोई भी कानून बना सकते हैं, किसी भी नियम को तोड़ सकते हैं, किसी भी आदेश को बदल सकते हैं, किसी भी अधिकारी का स्थानांतरण कर सकते हैं और आंकड़ों में हेराफेरी कर सकते हैं। वे सब कुछ मुफ्त में चाहते हैं। छुट्टियां, पैसा, मनोरंजन आदि। वस्तुत: निरंतर जनता और मीडिया की पैनी नजरों में रहना प्रसिद्धि की कीमत है। यदि हमारे नेता सत्ता के विशेषाधिकारों और पद से जुड़ी प्रतिष्ठा का आनंद लेना चाहते हैं तो उन्हें पूर्ण सत्यनिष्ठा और ईमानदारी की कीमत चुकानी होगी। यदि कोई व्यक्ति छोटा-सा पक्ष भी लेता है तो फिर बड़े कार्यों के लिए उस पर कैसे विश्वास किया जा सकता है?

समय आ गया है कि हम पारदर्शी और स्पष्ट विनियामक ढांचा बनाएं और वास्तविक व्यवसायियों के हितों के साथ खिलवाड़ बंद करें और पूंजीपतियों का पक्ष लेना छोड़ दें। हमारे नेतागणों को इस ओर ध्यान देना होगा अन्यथा यह व्यावसायिक जगत में भी फैलता जा रहा है। फलत: अर्थव्यवस्था और राजनीतिक आदर्श भ्रष्ट होते जा रहे हैं।

देश की जनता चाहती है कि हमारी राजनीति और राजनेता स्वच्छ हों अन्यथा वे इस कार्य के पात्र नहीं हैं। हमें अपने नेताओं की वास्तविक चाल, चरित्र और चेहरे की प्रभावी जांच करनी होगी। हमारे नेताओं को इस सच्चाई को समझना होगा कि सत्ता के साथ जिम्मेदारियां भी जुड़ी हैं। ब्रिटेन की पूर्व प्रधानमंत्री माग्र्रेट थैचर ने राजनेताओं को चेतावनी देते हुए कहा था, ‘‘यदि व्यक्ति गैर-जिम्मेदारी से कार्य करें तो फिर एक जिम्मेदार समाज की स्थापना करना असंभव है और एक जिम्मेदार समाज के बिना एक जिम्मेदार राज्य नहीं हो सकता है।’’ जैसा कि मोदी बार-बार कहते हैं कि वह भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण करना चाहते हैं और उनके लिए लोकतंत्र सर्वोपरि है। अत: हमें अपने  सार्वजनिक चेहरों के निजी मुखौटे का पर्दाफाश करना होगा। लोकतांत्रिक व्यवस्था में जवाबदेही अपरिहार्य है। अन्यथा हमारे नेताओं को जनता का कोपभाजन बनने के लिए तैयार रहना चाहिए।


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