किरण बेदी कई मामलों में ‘केजरीवाल से बेहतर’

punjabkesari.in Monday, Jan 19, 2015 - 05:01 AM (IST)

(विनीत नारायण) जिसका अंदाजा था वही हुआ। आखिर किरण बेदी भाजपा में शामिल हो ही गईं। अब विरोधी हमला कर रहे हैं कि कल तक भाजपा पर आम आदमी पार्टी की नेता बन कर भाजपा पर हमला बोलने वाली किरण बेदी ने उसी भाजपा का दामन क्यों थाम लिया। यह हमला बेमानी है। अन्ना हजारे के आंदोलन के दौर से ही किरण बेदी भाजपा की तरफ अपना झुकाव दिखाती आ रही थीं। नरेन्द्र मोदी की प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी की घोषणा के बाद तो किरण ने उनका खुल कर समर्थन किया। जरूरी नहीं कि पूरी जिंदगी एक व्यक्ति एक विचार और एक मूड को लेकर बैठा रहे। जिन शरद पवार ने सोनिया गांधी के विदेश मूल को लेकर पार्टी छोड़ी थी वह ही 10 वर्ष तक सोनिया गांधी के नेतृत्व में यू.पी.ए. की सरकार चलवाते रहे।

किरण बेदी के भाजपा में शामिल होते ही कई मीडिया कर्मियों ने मुझसे फोन पर इस घटना की प्रतिक्रिया पूछी। मेरा मानना है कि किरण बेदी जैसी कार्यकुशल अधिकारी की सक्रिय भूमिकाओं से दिल्ली की आम जनता हमेशा प्रभावित रही है। मुझे 1980 का वह दौर याद है जब किरण बेदी उत्तर पश्चिम दिल्ली की डी.सी.पी. थीं। तब मैंने दिल्ली दूरदर्शन के लिए एक टी.वी. सीरीज ‘पुलिस और लोग’ प्रस्तुत की थी। उन दिनों किरण युवा महिला होने के बावजूद आधी रात को घोड़े पर गश्त करती थीं। बाद में दिल्ली की ट्रैफिक पुलिस में रहते हुए उन्होंने वी.आई.पी. गाडिय़ों को गलत पार्किंग से उठवा कर ‘क्रेन बेदी’ होने का खिताब हासिल किया।

जिन दिनों 1993-96 में मैंने जैन हवाला कांड उजागर किया और भ्रष्टाचार के विरुद्ध भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषण और मैं देश भर में जनसभाएं संबोधित कर रहे थे उन्हीं दिनों 1996 में किरण बेदी, के.जे. एल्फोंज और जी.आर. खैरनार भी हमारे साथ जुड़े और हमने कई जनसभाएं साथ-साथ संबोधित कीं। तब किरण के साथी अधिकारी किरण से बहुत जलते थे। वे कहते थे कि किरण जैसे लोग अपने छोटे से काम का बहुत ढिंढोरा पीटते हैं। दूसरी तरफ ये लोग बहुत महत्वाकांक्षी हैं, सरकारी नौकरी में रह कर राजनीतिक भविष्य तैयार कर रहे हैं। पर महत्वाकांक्षी होना कोई गलत बात नहीं है। अनेक उदाहरण हैं जब अनुभवी प्रशासनिक अधिकारी राजनीति में भी कुशल प्रशासक सिद्ध हुए हैं।

दूसरी तरफ मुकाबले में केजरीवाल जैसा व्यक्ति है जिसकी कथनी कुछ और, करनी कुछ और। इसी कॉलम में पिछले 4 वर्षों में केजरीवाल के झूठ, फरेब और राजनीतिक महत्वाकांक्षा पर मैंने दर्जनों लेख लिखे हैं। तब भी, जब अन्ना और केजरीवाल का भ्रष्टाचार के विरुद्ध तथाकथित जन आंदोलन अरबों रुपए की आर्थिक मदद से अपने शिखर पर था, मैंने राजघाट पर इनके खिलाफ खुले पर्चे तक बंटवाए थे क्योंकि मैं इनकी गद्दारी का धोखा खा चुका था और मुझे इन पर कतई भरोसा नहीं था।

किरण बेदी जाहिरान केजरीवाल से कई मामलों में बेहतर हैं। केजरीवाल तो हल्ला मचा कर,करोड़ों रुपया प्रचार में खर्च करके, एक मुद्दा उठाते हैं और फिर बड़ी बेहयाई से उसे छोड़ कर भाग जाते हैं। फिर वह चाहे बनारस का संसदीय क्षेत्र हो, जंतर-मंतर का धरना, जनता दरबार या मुख्यमंत्री का पद। कहीं भी ठहर कर कोई भी काम नहीं किया। ऐसा ही मानना उनके टाटा स्टील व आयकर विभाग के सहयोगियों का भी है। अब दिल्ली की जनता तय करेगी कि वह काम करने वाली किरण बेदी को चुनेगी या भगौड़े केजरीवाल को।

हो सकता है कि भाजपा के पुराने कार्यकर्त्ताओं में अमित भाई शाह के इस निर्णय को लेकर कुछ रोष हो। वह जाहिरान किरण बेदी को बाहरी उम्मीदवार मानते होंगे। पर उन्हें यह याद रखना चाहिए कि आज की भाजपा अडवानी जी की भाजपा से भिन्न है। आज नरेन्द्र भाई मोदी एक मिशन लेकर देश बनाने निकले हैं। उन्हें हर उस कर्मठ व्यक्ति की जरूरत है जो उनके इस मिशन में सहयोग कर सके। अगर केवल संघ और भाजपा से जुडऩे का पुराना इतिहास मांगेंगे तो वह देश के लाखों योग्य लोगों की सेवाएं लेने से वंचित रह जाएंगे।

उधर अमित भाई शाह उस नेपोलियन की तरह हैं जो फ्रांस की सेना के सिपाही से उठ कर फ्रांस का राजा बना, जिसके शब्दकोष में असंभव नाम का शब्द ही नहीं था। जो सोता भी घोड़े पर ही था। अमित भाई चुनाव के हर युद्ध को जीतने के लिए लड़ रहे हैं। वह श्रीराम के लक्ष्मण हैं जो अग्रज की सेवा में 14 वर्ष तक वनवास में खड़े रहे। अपना सुख त्यागा ताकि बड़े भैया को सुख दे सके। जब श्रीराम अवध के राजा बने तब भी लक्ष्मण उसी तरह से सेवा में जुटे रहे।

अब नरेन्द्र भाई को देश बनाने के लिए जो समय चाहिए, वह तभी मिल पाएगा जब संगठन और चुनाव की समस्याओं से अमित भाई शाह उन्हें दूर रखें और खुद ही इनसे जूझते रहें। ऐसे में पार्टी कार्यकर्त्ताओं को अपने दल के नेता के निर्णय में पूर्ण विश्वास होना चाहिए, तभी लड़ाई जीती जाएगी।    


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