क्या भारत में मुस्लिम सचमुच असुरक्षित हैं

punjabkesari.in Friday, Aug 11, 2017 - 11:08 PM (IST)

जो व्यक्ति 10 वर्ष तक देश का उपराष्ट्रपति रहा हो, अर्थात राज्यसभा का भी अध्यक्ष रहा हो, वह यदि अपने कार्यकाल के अंतिम दिन अपने भारतीयपन को सिर्फ अपने मुस्लिमपन में सिकोड़कर ऐसा अफसाना लिख दे जो उम्र भर लोगों के मन में यह सवाल जिंदा रखे कि यह जनाब भारतीय थे या भारत में सबसे अलग-थलग सिर्फ एक मुस्लिम द्वीप, तो इससे बढ़कर विडम्बना और क्या होगी? यह बात अवश्य कहनी चाहिए कि श्री अंसारी ने राज्यसभा में अपने विदाई भाषण में ऐसा कुछ नहीं कहा, बल्कि एक पत्रकार के साथ टी.वी. साक्षात्कार में कई बार घुमा-फिराकर पूछे गए सवालों के जवाब में इस बात को स्वीकार किया कि मुस्लिम असुरक्षा की भावना से ग्रस्त हो रहे हैं। 

यह बात मुसलमानों को नागवार गुजरनी चाहिए। अगर कोई विरोध करे तो उनमें मुसलमान आगे होने चाहिएं और उन्हें बढ़कर कहना चाहिए कि हामिद अंसारी साहब ने जो कहा वह उनकी व्यक्तिगत असुरक्षा से जुड़ी बात हो सकती है लेकिन जिस देश में 15 करोड़ से ज्यादा मुसलमान हों और जो राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, वायुसेनाध्यक्ष, मुख्य चुनाव अधिकारी जैसे सैंकड़ों हजारों प्रमुख निर्णायक पदों से लेकर पुलिस, सेना तथा अन्यान्य क्षेत्रों में न केवल नायक बने हों, बल्कि इन सबके समानांतर देश के बॉलीवुड को अपनी उपस्थिति से इतना प्रभावित कर दिया हो कि बॉलीवुड को लोग खानवुड कहने लगें, उस देश में मुसलमानों को असुरक्षित बताना अपनी आत्मा के साथ छल करने जैसा होगा। 

जनाब हामिद अंसारी साहब ने कुछ ऐसा ही किया। मैं हमेशा उन्हें एक विद्वान तथा तमाम मतभेदों और मनभेदों से परे एक सिद्धांतनिष्ठ भारतीय के नाते देखने की कोशिश करता रहा। लेकिन देश का उपराष्ट्रपति अपने पद से मुक्त होने वाले दिन विराट, उदार एवं सर्वसमावेशी संदेश देने के बजाय संकीर्ण, मजहबी एवं साम्प्रदायिक राजनीति से गंधाता वक्तव्य दे दे तो इसे उस देश के साथ छल ही कहा जाएगा, जिस देश ने उस व्यक्ति को जीवन के शिखर पदों एवं इज्जत से नवाजा हो। जनाब हामिद अंसारी ने कहा कि इस देश में मुसलमान असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। 

यह असुरक्षा का बोध कहां से महसूस हुआ उन्हें? जिस देश में 5 लाख हिंदू अपने ही स्वतंत्र देश में शरणार्थी बना दिए गए हों, जहां वे लाखों हिन्दू अपने घर और गांव में 15 अगस्त न मना पा रहे हों, जहां कश्मीर से बंगाल और बंगाल से केरल तक हिन्दू विचारधारा में विश्वास रखने वाले लोगों पर मरणांतक हमले किए जा रहे हों, जहां हिन्दुओं की जनसंख्या घटाव पर हो और मुस्लिमों की जनसंख्या बढ़ रही हो वहां असुरक्षा की भावना हिन्दुओं में होनी चाहिए या मुसलमानों में? 

क्या आजादी के 70 वर्ष बाद भी देश के उपराष्ट्रपति पद पर रहे व्यक्ति को अपने देश के नागरिकों के बारे में विराट भारतीयता के दृष्टिकोण से सोचना चाहिए या सिर्फ हिन्दू मुसलमानों के दायरों से? हामिद अंसारी देश के मुस्लिम उपराष्ट्रपति या भारतीय उपराष्ट्रपति? यदि उन्हें वास्तव में ऐसा महसूस हो रहा था कि कुछ घटनाओं के कारण मुसलमानों के एक वर्ग में असुरक्षा का बोध जागृत हुआ है और यह बात ईमानदारी से मान ली जाए तो भी उनकी दृष्टि की स्वतंत्रता तो तब मानी जाती जब उन्हें हिन्दुओं पर हो रहे आघात की भी चिंता हुई होती। जब गाय को अपनी मां के समान मानने वाले हिन्दुओं को आहत करने के लिए कश्मीर से केरल तक क्रूर और बर्बर मुस्लिम गुट गाय का सिर काट कर बाजार में उसका जलूस निकाल रहे थे, उस समय देश के उपराष्ट्रपति को सामाजिक एकता एवं असुरक्षा की चिंता क्यों नहीं हुई?

जब कश्मीर से हिन्दुओं को जेहादियों ने अपमानित एवं भीषण अत्याचारों का शिकार बनाकर अपने घरों से बाहर निकल कर जम्मू में तम्बुओं में रहने पर विवश किया, उस पर उन्हें चिंता, दुख या संताप क्यों नहीं हुआ? क्या हामिद अंसारी साहब बताएंगे कि शाहरुख खान, सलमान खान, आमिर खान, सैफ अली खान, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, मोहम्मद कैफ, कैटरीना कैफ और वगैरह-वगैरह खान किस किस्म की असुरक्षा से ग्रसित हैं? जब तक हामिद अंसारी साहब उपराष्ट्रपति रहे तब तक उन्हें मुसलमान सुरक्षित महसूस होते रहे। जिस दिन उन्होंने गद्दी छोडऩी थी उस दिन उन्हें मुसलमान असुरक्षित महसूस होने लगे। यह क्या करतब है? 

मुसलमानों को जरूरत है एक ऐसे नेतृत्व की जो उन्हें अब्दुल कलाम की राह पर ले चले न कि जिन्ना की राह पर। उन्हें अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य, आगे बढऩे के रास्ते और स्वाभिमानी भारतीयता का रास्ता चाहिए। गरीबी का कोई मजहब नहीं होता। बदहाली और अशिक्षा हिन्दू या मुसलमान नहीं होती। जब भूख लगती है तो उस भूख का नाम हिन्दू या मुसलमान नहीं होता। गंगा अपने किनारे पर रहने वालों से उनका मजहब पूछकर पानी नहीं देती। गंगा का पानी उतना ही हिन्दुओं को मिलता है जो गंगा को मां मानते हैं और उतना ही उन मुसलमानों को मिलता है जो गंगा के प्रति मां जैसी इज्जत का भाव रखते हैं। अगर हामिद अंसारी साहब को कुछ सीखना है तो वह प्रसिद्ध शायर (मैं उन्हें मुस्लिम शायर नहीं कह रहा हूं क्योंकि वह मेरे लिए एक सच्चे हिन्दुस्तानी हैं) मुनव्वर राणा साहब की इन पंक्तियों से सीखें: 

तेरे आगे अपनी मां भी मौसी जैसी लगती है,तेरी गोद में गंगा मैया अच्छा लगता है। मुसलमानों को डराकर, हौव्वा दिखाकर भेड़ों की तरह हांकने वाले तथाकथित मुस्लिम नेताओं ने अपनी जिंदगी में ऐश की, तमाम शोहरतें और पदों के सम्मान बटोरे लेकिन क्या वे यह बता पाएंगे कि उन्होंने अपने मुस्लिम समुदाय के लिए क्या किया? क्या कोई ऐसे मुस्लिम नेता मिलेंगे जो सारे हिन्दुस्तान, सारे हिन्दुस्तानियों, हिन्दुस्तान के सारे जमातों और तमाम मजहबों को मानने वाले नागरिकों के सुख-दुख के बारे में एक हिन्दुस्तान की ऊंचाई से सोचते हों और जिन्हें बशारत अहमद का दुख भी उतना ही सताता हो जितना भारत कुमार का?    


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News