भ्रष्टाचार मिटाने में नाकाम रहे हैं राज्यों के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो

punjabkesari.in Monday, Aug 15, 2022 - 06:01 AM (IST)

कर्नाटक हाईकोर्ट के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को खत्म करने के आदेश के बाद देशभर में भ्रष्टाचार के खिलाफ राज्यों में कार्यरत ऐसे ब्यूरो पर सवालिया निशान लग गया है। हाईकोर्ट ने इस ब्यूरो को नकारा भ्रष्टाचार का संरक्षण देने वाला मानते हुए भंग करने के आदेश दिए हैं। संभव है कि कर्नाटक सरकार इस फैसले को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दे। 

यह भी संभव है कि अदालत इस फैसले पर रोक लगा दे या बदल दे। किन्तु इतना जरूर है कि इस फैसले ने राज्यों में भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए गठित ऐसे ब्यूरो के औचित्य पर सवालिया निशान लगा दिए हैं। ऐसा नहीं है कि सिर्फ कनार्टक में ही भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के औचित्य पर सवाल उठाया गया है बल्कि देश के ज्यादातर राज्यों के ब्यूरो का यही हाल है। 

राज्यों में कार्यरत भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो राजनीतिक विरोधियों को ठिकाने लगाने के अड्डे बन गए हैं। राज्य स्तरीय भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो का गठन राज्य सरकारें करती हैं। इनमें खास तौर पर क्षेत्रीय सत्तारूढ़ दल ब्यूरो में ऐसे पुलिस अफसरों को तैनात करते हैं जोकि उनकी उंगलियों पर नाच सकें। ब्यूरो का गठन भले ही भ्रष्टाचार मिटाने के लिए किया गया हो किन्तु हकीकत में इनका टार्गेट सरकार के इशारे पर तय होता है। खासतौर पर क्षेत्रीय सरकारें अपने विरोधियों को सबक सिखाने के लिए इसका इस्तेमाल करती रही हैं।

कर्नाटक का फैसला इसी बात का प्रमाण है। वैसे भी ब्यूरो की पकड़ में कभी भ्रष्टाचार के मगरमच्छ नहीं आते। इनकी पकड़ सिर्फ छोटी मछलियों तक रहती है ताकि सरकार को लगे कि वाकई ब्यूरो भ्रष्टाचार के खात्मे की दिशा में अग्रसर है। दशकों से चली आ रही है राज्यों के भ्रष्टाचार ब्यूरो की कार्यशैली में आम लोगों को यह भरोसा पूरी तरह उठ चुका है कि यह सरकारी विभाग भ्रष्टाचार को खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इसके विपरीत ब्यूरो सत्ताधारियों और वरिष्ठ अफसरों की अवैध कमाई का खुलासा करने के बजाय कार्रवाई के लिए सरकार का मुंह ताकता रहता है। 

ब्यूरो में पुलिस कर्मियों और अफसरों की तैनाती की जाती है। अलबत्ता तो ब्यूरो में पुलिस कर्मी जाने के इच्छुक नहीं रहते कारण साफ है वर्दी नहीं होने से वहां रौब-दाब और ऊपरी कमाई गायब रहती है। ऐसे में ब्यूरो के कार्मिक बेमन से अपनी ड्यूटी को अंजाम देते हैं उनकी कोशिश यही होती है कि किसी न किसी तरह जुगाड़ बिठा कर वापस पुलिस विभाग में चले जाएं। 

ऐसा नहीं है कि ई.डी. और सी.बी.आई. पर भेदभाव के आरोप नहीं लगे हों। इन दोनों केंद्रीय एजैंसियों पर भी कई बार भ्रष्टाचारियों को बचाने और केंद्र सरकार के इशारे पर कार्रवाई करने के आरोप लग चुके हैं। इसके बावजूद दोनों एजैंसियों ने कई राज्यों में कार्रवाई करके क्षेत्रीय दलों की सरकारों की भ्रष्टाचार के खिलाफ असलियत को जरूर उजागर किया है।-योगेन्द्र योगी
    


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News