अमरीका की भारत के साथ दोस्ती महज दिखावा

punjabkesari.in Monday, Sep 26, 2022 - 05:51 AM (IST)

अमरीका फर्स्ट की पॉलिसी के तहत अमरीका अपने हितों की रक्षा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। अमरीका को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसी दूसरे देश पर इससे क्या फर्क पड़ता है। बेशक अमरीकी नीति से प्रभावित होने वाला देश उसके मित्रों की सूची में ही क्यों न शामिल हो। कहने को अमरीका भारत को अपना दोस्त बताता है।

उसकी यह नीति दरअसल मुंह में राम बगल में छुरी वाली है। अमरीका ने पाकिस्तान को एफ-16 लड़ाकू जैट बेड़े के रख-रखाव के लिए 450 मिलियन अमरीकी डालर की सहायता की मंजूरी दी है। कहने को यह राशि आतंकवाद को रोकने के लिए दी गई है, जबकि अमरीका इस बात को अच्छी तरह जानता है कि पाकिस्तान किसी और को नहीं बल्कि भारत को ही अपना दुश्मन नम्बर एक समझता है। यह निश्चित है कि जब कभी युद्ध के दौरान पाकिस्तान एफ-16 युद्धक विमान का उपयोग भारत के खिलाफ ही करेगा।

पाकिस्तान यह बात साबित भी कर चुका है। पुलवामा हमले के बाद भारत की ओर से सीमा पार के आतंकी कैम्पों के खिलाफ की गई कार्रवाई पर जवाबी हमला करने के लिए पाकिस्तान ने एफ 16 का उपयोग किया था। मौजूदा सैन्य सहायता को लेकर भारत ने अमरीका के समक्ष तगड़ा विरोध दर्ज कराया है। यह बात दीगर है कि भारत के इस विरोध के बावजूद अमरीका इतनी बड़ी कमाई आसान से नहीं छोड़ेगा। यही अमरीका की नीति रही है। इसी वजह से विरोध के बावजूद पाकिस्तान को मिलने वाली सैन्य सहायता के रद्द होने की संभावना क्षीण है।

अमरीका यह भी बखूबी जानता है कि पाकिस्तान ही आतंकियों का पोषक रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित करते हुए पाकिस्तान से उसके खिलाफ कार्रवाई करने को कहा है। गौरतलब है कि मसूद अजहर भारतीय संसद और पुलवामा हमले का मुख्यारोपी है। वह पाकिस्तान में छिपे रह कर लंबे समय से भारत के खिलाफ आतंकी कार्रवाई को अंजाम दे रहा है। कश्मीर में पाकिस्तान की ओर से की जाने वाली आतंकी कार्रवाई इस बात का प्रमाण है।

इसके बावजूद अमरीका पाकिस्तान को सैन्य मदद देने को आमादा है। इससे साफ जाहिर है कि अमरीका भारत के साथ जिस सहयोग की भावना का दंभ भरता है, वह खोखली है। सवाल जब अपने हितों का हो तो अमरीका युद्ध छेडऩे, कमांडो कार्रवाई और ड्रोन हमले से भी नहीं चूकता। अफगानिस्तान और ईराक में युद्ध, अफगानिस्तान में ओसामा बिन लादेन और अल जवाहिरी का मारा जाना इसका प्रमाण है। यह पहला मौका नहीं है जब अमरीका ने मौकापरस्ती दिखाई हो। इससे पहले भी अमरीका अपने आॢथक हितों को साधने के लिए भारत की बाजू मरोड़ता रहा है।

साल 1980 में पाकिस्तान को तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने पहली बार एफ -16  लड़ाकू विमान दिए थे। हालांकि भारत ने तब भी इन विमानों को दिए जाने पर गहरी नाराजगी जताई थी, पर अमरीका ने इसे दरकिनार कर दिया। इससे अमरीका को करोड़ों डालर की आय हो रही थी। यह बात भी दीगर है कि पाकिस्तान पहले से ही कंगाली के हालात से जूझ रहा है। पाकिस्तान में बाढ़ ने भयंकर तबाही मचाई हुई है। इसके बावजूद भारत से दुश्मनी निकालने के लिए वह बर्बादी की हद तक जा सकता है।

भले ही सैन्य सामग्री खरीदने के लिए उसे कर्जे पर कर्जा क्यों न लेना पड़े। इस दुश्मनी की भावना की वजह से घरेलू हालात से निपटने के बजाय पाकिस्तान का सारा ध्यान भारत के नुक्सान पर रहता है। अमरीका ने इससे पहले ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद भारत के कू्रड ऑयल आयात करने पर भी भारी नाराजगी जताई थी, जब कि ईरान भारत को सस्ता तेल मुहैया करा रहा था। अमरीका ने भारत को इसका विकल्प मुहैया नहीं कराया, बल्कि भारत से रिश्ते बिगडऩे की धमकी दी थी। भारत ने भी अमरीकी धमकी को नजरंदाज कर दिया।

अमरीका फर्स्ट नीति की सुरक्षा करने के लिए अपने हितों पर आंच आने पर किसी भी हद तक जा सकता है। अमरीका की भारत के साथ दोस्ती महज दिखावा भर है। अमरीका अपने स्वार्थ के लिए कभी भी इस दोस्ती की कुर्बानी दे सकता है। अमरीकी मोटरसाइकिल हार्ले डेविडसन को भारत में निर्यात करने के लिए अमरीका ने भारत पर टैक्स कम करने का पूरा दबाव बनाया था। अमरीका अपने हितों को सर्वोपरि रख कर चाहता है कि भारत आंख बंद करके उसका पिछलग्गू बना रहे।  यह निश्चित है कि अमरीका चाहे जितनी भारत की उपेक्षा करे पर मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में उसकी भारत को साधे रखना मजबूरी होगी।-योगेन्द्र योगी


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News