जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों को मुस्तैद करने के साथ-साथ क्षेत्र की सड़कें सुधारना भी जरूरी

punjabkesari.in Thursday, Jul 25, 2024 - 05:12 AM (IST)

जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान के पाले हुए आतंकवादियों द्वारा हिंसा और रक्तपात लगातार जारी है और इन आतंकवादियों के कब्जे से विभिन्न देशों के हथियार बरामद हो रहे हैं। कुछ दिन पूर्व कुपवाड़ा जिले के केरन सैक्टर में मारे गए पाकिस्तानी आतंकवादियों के कब्जे से पहली बार आस्ट्रिया में बनी ‘बुलपंप असाल्ट राइफल स्टेयर ए.यू.जी.’ बरामद की गई। इस तरह की राइफलों का इस्तेमाल अफगानिस्तान में नाटो देशों की सेनाएं करती थीं।पहले तो ये आतंकवादी अधिकांशत: कश्मीर घाटी को ही निशाना बनाते थे परंतु अब इन्होंने लम्बे समय से शांत रहे जम्मू क्षेत्र में भी पिछले लगभग 3 वर्षों से हमले शुरू कर दिए हैं। 

2021 से 2023 तक पुंछ और राजौरी तक सीमित आतंकवादियों ने जम्मू संभाग के अधिकांश जिलों में हमले किए हैं और अब पिछले 2 वर्षों से अपनी बदली हुई रणनीति के अंतर्गत सेना की नई यूनिटों को निशाना बना रहे हैं तथा हर जिले में नई यूनिट पर हमला करके फरार हो जाते हैं। उल्लेखनीय है कि जम्मू क्षेत्र में अक्तूबर, 2021 के बाद से अब तक सेना के 40 तथा भारतीय वायुसेना के 1 जवान सहित कम से कम 50 सुरक्षा कर्मी अपने प्राणों का बलिदान दे चुके हैं। इसी बीच पता चला है कि जम्मू क्षेत्र में 20 वर्ष पूर्व सेना ने जिस आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद तथा लश्कर-ए-तैयबा के स्थानीय नैटवर्क को नकारा कर दिया था, वह अब पूरी ताकत के साथ एक बार फिर जम्मू के 10 में से 9 जिलों में सक्रिय हो गया है। पहले आतंकवादियों के मददगार उनका सामान ढोने का काम करते थे और अब  वे गांवों में भोजन, गोला-बारूद और हथियार आदि उपलब्ध करवा रहे हैं। 

कश्मीर के मुकाबले में जम्मू डिवीजन अधिक पर्वतीय होने के साथ-साथ यहां के दूर-दराज इलाकों में सड़क संपर्क कमजोर होने तथा सुदूरवर्ती इलाकों में सड़कों की हालत खराब होने का आतंकवादी लाभ उठा रहे हैं। सामरिक विशेषज्ञों के अनुसार, इस क्षेत्र की खस्ताहाल सड़कें आतंकवादियों की चुनौती का सामना करने में बड़ी बाधाओं में से एक हैं। राजौरी और पुंछ जिलों के बीच नैशनल हाईवे 144-ए तथा वैकल्पिक ‘डिफैंस रोड’ अत्यंत बुरी हालत में हैं। जब थाना मंडी से ‘बफलियाज’ तक और आगे ‘सूरनकोट’ तक पट्टी खोदी जा चुकी थी, ‘बार्डर रोड्स आर्गेनाइजेशन’ द्वारा यह काम करने के लिए रखा गया प्राइवेट ठेकेदार उस समय बीच में ही काम छोड़ कर चला गया। 

गत वर्ष 21 जून को पुंछ जिले में ‘बफलियाज’ तथा ‘डेरा की गली’ के बीच आतंकवादियों ने सेना के 2 वाहनों पर हमला किया था। ‘बफलियाज’ तथा ‘डेरा की गली’, जहां सुरक्षा बलों के कैम्प हैं, से हमले की जगह मुश्किल से 5 किलोमीटर दूर थी लेकिन ‘डिफैंस रोड’ की खस्ता हालत के कारण वहां से सहायता पहुंचने में 40 मिनट लग गए। इसी प्रकार ‘सूरनकोट’ और ‘थाना मंडी’ से 15-20 किलोमीटर की दूरी तय करके सहायता पहुंचाने में 50 से 100 मिनट का समय लग गया और तब तक आतंकवादी शहीद सैनिकों के हथियार लूट कर भाग चुके थे। हाल ही में सेना ने जम्मू क्षेत्र में अब तक का सबसे बड़ा तलाशी अभियान शुरू किया है और सुरक्षा बलों को डोडा एवं कठुआ जिलों की पीर पंजाल श्रेणी के 120 वर्ग किलोमीटर में फैले

जंगलों में उतारा गया है। इसके बावजूद पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा अपनी गतिविधियां जारी हैं। हालांकि 23 जुलाई को पुंछ जिले में कृष्णा घाटी बटाल सैक्टर  में एल.ओ.सी. पर आतंकवादियों की घुसपैठ को भारतीय सेना के जवानों ने नाकाम कर दिया परंतु इस कार्रवाई के दौरान एक लांस नायक सुभाष चंद्र शहीद हो गए। जुलाई के महीने में जम्मू क्षेत्र में बलिदान देने वाले वह 10वें भारतीय सैनिक थे। इसी बीच उत्तरी कश्मीर में कुपवाड़ा के ‘कोवुत’ में 24 जुलाई को आतंकवादियों से मुठभेड़ में राष्ट्रीय राइफल्स के एन.सी.ओ. दिलावर सिंह शहीद हो गए।चूंकि यहां सक्रिय आतंकवादी उच्च प्रशिक्षित और अत्याधुनिक उपकरणों से लैस हैं, अत: इनका सफाया करने के लिए जहां सुरक्षा बलों को अधिकतम मुस्तैदी बरतने की आवश्यकता है, वहीं इस क्षेत्र की सड़कों को भी पहल के आधार पर ठीक करने की जरूरत है ताकि इनकी खस्ता हालत आतंकवादियों के विरुद्ध अभियान में बाधा न बने।—विजय कुमार   


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