भारत-पाक में आखिर किसका बेहतर है बासमती चावल

punjabkesari.in Sunday, Jun 20, 2021 - 06:28 AM (IST)

बासमती चावल की एक बेहतरीन किस्म है। इसकी पहचान को लेकर दो दशक पहले विवाद अमरीका की एक कंपनी राइसटेक और भारत-पाक के बीच सामने आया था। भारत और पाकिस्तान ने इस विवाद में एक साथ खड़े होकर अमरीका की कंपनी को मिले पेटेंट वापस करने को मजबूर किया था। लेकिन, इस बार बासमती चावल के टैग को लेकर भारत और पाकिस्तान आमने-सामने हैं। 

दरअसल, हुआ यूं कि भारत ने अपने बासमती चावल को जी.आई. टैग हेतु यूरोपियन यूनियन यानी ई.यू. में अर्जी दी, इसकी जानकारी 11 सितंबर 2020 को यूरोपियन यूनियन द्वारा आधिकारिक प्रकाशित जर्नल से सामने आई। बताया जाता है कि इस जर्नल के प्रकाशित होने से पहले बासमती को जी.आई. टैग दिए जाने को लेकर आंतरिक मूल्यांकन हो चुका था।

जैसे ही यूरोपियन यूनियन द्वारा जर्नल प्रकाशित किया गया, इसमें उल्लेखित बासमती जी.आई. टैग की खबर ने पाकिस्तान में हलचल मचा दी। क्योंकि बासमती के दो बड़े उत्पादक मुल्कों में भारत के साथ पाकिस्तान शुमार है। ऐसे में, यदि भारत को बासमती का जी.आई. टैग मिलता है, तो इसका मालिकाना हक प्राप्त होगा। इसके साथ ही भारत उसके बाजार को हड़प लेगा, इस बात का डर पाकिस्तान को सता रहा है। 

बता दें कि पाकिस्तान पिछले कुछ वर्षों में यूरोप में चावल के बड़े निर्यातक के रूप में उभरा है। इसलिए पाकिस्तान इसके विरोध में खड़ा हो गया है। इसी के मद्देनजर 5 अक्तूबर 2020 को पाकिस्तान ने इस बात का ऐलान कर दिया कि वो भारत के दावे का पुरजोर विरोध करता है। उसके बाद 7 दिस बर 2020 को पाकिस्तान ने यूरोपियन यूनियन में भारतीय दावे के विरुद्ध नोटिस भी दे दिया। 

किस तकनीक का नाम है जी.आई. टैग?
ऐसे में, आम-आदमी के मस्तिष्क में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर क्या है जी.आई.टैग? दो दशक पहले विवाद, अब फिर विवाद क्यों? जी.आई. टैग किस तकनीक का नाम है? यह किसी मुल्क के लिए कितना जरूरी है? किन-किन उत्पादों को मिलता है जी.आई. टैग? 

आइए, हम विस्तार से इसके बारे में जानते हैं। दरअसल, जी.आई. टैग इस बात की जानकारी देता है कि फलां चीज किस मुल्क में या किस जगह पैदा होती है। जाहिर-सी बात है किसी चीज के साथ मुल्क या स्थान विशेष का नाम जुड़ने से उसकी सर्वश्रेष्ठता सिद्ध होती है। उदाहरण के तौर पर, दार्जिलिंग की चाय एवं कोलंबिया की कॉफी। जी.आई. टैग का पूरा नाम प्रोटैक्टेड जियोग्राफिकल इंडीकेशन है, जो एक तरह से कहें तो कॉपीराइट की भांति ही है। 

बासमती चावल में भारत का पक्ष मजबूत
बासमती चावल के जी.आई. टैग को लेकर भारत-पाक आमने-सामने हैं। ऐसे में, सवाल उठता है कि बासमती चावल का असल में दावेदार कौन है? पाकिस्तान के विरोध के बाद बासमती चावल को लेकर भारत को मिलने वाले जी.आई. टैग की राह अब मुश्किल हो चली है। बता दें कि बासमती चावल दोनों मुल्कों की अर्थव्यवस्था के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है।

भारत दुनिया का करीब 65 फीसदी बासमती निर्यात करता है, जबकि बचे हुए मार्कीट पर पाकिस्तान का कब्जा है। आंकड़े बताते हैं, 2019-20 में भारत ने कुल 44.5 लाख टन बासमती 31 हजार करोड़ में बेचा था। वहीं, संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक पाकिस्तान 2.2 बिलियन डॉलर कीमत का चावल निर्यात करता है। इस बीच पाकिस्तानी मीडिया संस्थान डॉन के मुताबिक पाकिस्तान 800 मिलियन से एक बिलियन डॉलर कीमत तक का बासमती निर्यात करता है। आंकड़ों से यह साफ जाहिर होता है कि भारत की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अधिक पहुंच है। भारत अधिकतर खाड़ी देशों को बासमती निर्यात करता है, जबकि खाड़ी देशों में पाकिस्तानी बासमती की मांग और पहुंच बहुत कम है। 

भारतीय सीड्स एक्ट, 1966 में बासमती की 29 किस्में उल्लेखित हैं। हालांकि, आज देशभर में 33 तरह के बासमती उगाए जाते हैं। आज भारत के कई राज्यों को जीआई टैग हासिल हैं। भारत सरकार की एग्रीकल्चर एंड प्रोसैस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डिवैल्पमैंट अथॉरिटी ने मई, 2010 में हिमालय के इर्द-गिर्द बसे सात राज्यों ज मू-कश्मीर, पंजाब,  हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली और उत्तर प्रदेश को जीआई टैग दिया था। यदि पाकिस्तान इस पर भी अपनी राजनीति करता है, तो दोनों मुल्कों के आपसी संबंधों को स्वाभाविक तौर पर कमजोर करेगा। इसलिए यह समझते हुए कि यह एक औद्योगिक मसला है, जिसे जल्द सुलझाया जाना चाहिए।?-अली खान


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