पंजाब में बाढ़ से तबाही का कारण ‘प्रशासनिक लापरवाही’

punjabkesari.in Tuesday, Sep 03, 2019 - 03:18 AM (IST)

कोई संदेह नहीं कि पूरा पंजाब इस समय बाढ़ की मार के नीचे है और वह भी बिन बारिश। इधर कैप्टन सरकार ने बाढ़ की रोकथाम के लिए न केवल पूरा जोर लगाया हुआ है बल्कि केन्द्र सरकार से कम से कम 100 करोड़ रुपए का बाढ़ राहत पैकेज भी मांग रही है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह एक ओर, राजस्व मंत्री दूसरी ओर तथा तीसरी ओर सभी मंत्री, विधायक, सांसद व अन्य छोटे-बड़े नेता अपने-अपने हलकों में दौरे कर राहत कार्यों की निगरानी कर रहे हैं। 

कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने तो इसे तुरंत प्राकृतिक आपदा घोषित कर दिया है और इसलिए अपने खजाने से भी राहत कार्यों के लिए कुछ मदद दी है। इसमें दो राय नहीं कि इससे फिलहाल जानी नुक्सान का तो काफी बचाव है लेकिन माली और विशेषकर फसलों का बहुत नुक्सान हुआ है। भारत-पाकिस्तान के साथ लगती सीमा के नजदीकी, विशेषकर रोपड़, जालंधर तथा कपूरथला के बहुत से गांव खाली करवा कर लोगों को राहत कैम्पों में भेजा गया है। यह बड़ी दुखदायी स्थिति है विशेषकर उन लोगों के लिए जिनको हर वर्ष बाढ़ के समय अपना घर-बार तथा पशु छोड़ कर राहत कैम्पों में शरण लेनी पड़ती है। 

हर वर्ष ऐसा ही होता है तो भी यहां दो प्रश्र पैदा होते हैं। पहला, इस बार बाढ़ का आना तथा तबाही कोई नई बात नहीं, हर वर्ष ऐसा ही होता है। लेकिन सरकार इसे प्राकृतिक आपदा मान लेती है यह सरासर गलत है। सही अर्थों में यह कुदरती तबाही नहीं बल्कि मनुष्य तथा समकालीन सरकारों की ओर से दिखाई गई लापरवाही के कारण है। दूसरा, यदि भरपूर बारिश हो तो फिर बाढ़ का आना समझ भी आता है। इस बार तो बरसात पंजाब में ठीक तरह से पड़ी ही नहीं। मैं कोई मौसम विज्ञानी तो नहीं पर पंजाब की कम से कम 60 प्रतिशत आबादी इस राय से सहमत होगी कि जितनी चाहिए थी, इस बार उतनी बारिश हुई ही नहीं। सावन के महीने में कुछ शहरों या क्षेत्रों में बारिश हुई है, जिससे कुछ दिनों तक पूरे क्षेत्र जल-थल हो गए। देखा जाए तो जरूरत अनुसार बारिश नहीं हुई। 

अब भाद्रपद महीना भी लगभग आधा गुजर चुका है और इसमें जितनी बारिश हुई, वह तो आप मुझसे भी बेहतर जानते हो। अत: यदि पंजाब इस बार बिन बारिश के भी बाढ़ में डूब गया है तो यह केवल और केवल ऊपर पहाड़ों से आए पानियों के कारण है। यह बाढ़ भाखड़ा डैम प्रबंधकों द्वारा झील का अतिरिक्त पानी छोडऩे और वह भी लोगों को बिना सतर्क किए छोडऩे से आई है। उनसे पूछना बनता है। चलो मान लेते हैं कि यह प्रकृति का नियम है कि पानी हमेशा निचाई की ओर जाता है। कड़वा सच यह भी है कि इस पानी की निकासी का यदि पहले दिन से ही उचित प्रबंध किया जाए तो इतना पानी तो पंजाब के दोनों दरिया ब्यास तथा सतलुज व अन्य नदी-नाले ही सम्भाल सकते हैं। हमने इन दरियाओं तथा नदी-नालों की ओर पूरी तरह से पीठ फेर ली है। 

पंजाब के दरिया तथा नदी-नाले
पंजाब के दोनों दरियाओं तथा अन्य नदी-नालों का कभी दौरा करके देखें, इनके किनारों पर घास, बूटी, छोटे-छोटे पौधे तथा अन्य इतना कुछ उगा हुआ है कि किनारे तो दलदल बने हुए हैं और वे पानी को झेल ही नहीं सकते बल्कि पानी का बहाव इनके ऊपर से बह कर किनारों से बाहर आ जाता है। सही अर्थों में यही बाढ़ का पानी है जो जान-माल का नुक्सान करता है। मूल मुद्दा यह है कि यदि समय पर इन दरियाओं, नदी-नालों तथा नहरों, सूओं के किनारे बरसात से पहले साफ कर लिए जाएं तो पानी अधिक नुक्सान करने में सक्षम नहीं रहता। महज 30 वर्ष पहले तक हर नहर, सूए तथा नाले पर इस काम के लिए बेलदारों की ड्यूटी होती थी। इस काम में फंड तथा मेहनत लगती है। 

इधर क्या राजनीतिज्ञ और क्या अफसर, किसी के पास न तो इतना समय है कि इस काम की ओर ध्यान दिया जाए और न ही उनकी कोई रुचि है। हां, इस काम पर शुरू में थोड़े पैसे खर्चने की बजाय बाद में बाढ़ राहत कार्यों पर करोड़ों रुपए खर्चे जाते हैं। इनमें से कुछ रुपए शासकों तथा अफसरशाहों के पल्ले भी पड़ जाते हैं। शायद यही वजह है कि बारिश पड़े या नहीं, हर साल बाढ़ आनी ही है। यदि हर वर्ष बाढ़ आनी है तो फिर क्यों नहीं इसके लिए समय पर ठोस प्रबंध किए जाते? मौके पर आधे-अधूरे कदम उठाना ‘बूहे आई जंज, विन्नो कुड़ी दे कन्न’ वाली कहावत जैसा है। 

पाठकों को स्मरण होगा कि मौसम विभाग ने इस बार बारिशों से पहले ही यह भविष्यवाणी कर दी थी कि देश के कुछ क्षेत्रों में कम बारिश होगी। अब जब जितनी बारिश पडऩी थी पड़ चुकी है और अधिकतर आशा भी नहीं दिखाई देती तो पंजाब इस क्षेत्र में शामिल हो गया है। वैसे पिछले दिनों में मौसस विभाग ने लोगों को यह कहकर सतर्क कर दिया कि आगामी दिनों में भारी बारिशें होंगी। वे बारिशें तो नहीं हुईं मगर पंजाब बाढ़ की मार में सहज ही आ गया है। अनुमान लगा लें आगामी कितने दिन या हफ्ते बाढ़़ राहत कार्यों में ही गुजर जाएंगे। अधिकतर सरकारी मशीनरी इसी ओर लगी हुई है। नुक्सान हुई फसलों की गिरदावरी होगी। जिन गांवों में लोगों के घर ढह गए हैं, उनके नुक्सान की पूर्ति होगी। जो गांव खाली करवाए गए हैं वहां के लोगों को वापस उनके घर ले जाने के प्रबंध करने पड़ेंगे। 

प्रशासन की पैदा की हुई स्थिति
दूसरी ओर यदि बाढ़ से पहले ही उचित कदम उठा लिए जाएं तो शायद न तो इतना नुक्सान हो और न ही इतने लम्बे-चौड़े प्रबंध करने पड़ें। दूसरे शब्दों में यह प्रशासन की खुद की पैदा की हुई स्थिति अधिक है। आप दरियाई पानियों तथा सिंचाई विभाग के माहिरों की इस संबंध में राय ले लो, वे उपरोक्त की पुष्टि करेंगे। वास्तव में इस सब के लिए हमारा राजनीतिक तथा प्रशासनिक ढांचा जिम्मेदार है। बेशक आजमा कर देख लो यदि दरियाओं, नदी-नालों, नहरों तथा सूए आदि के किनारे सरकंडों आदि से साफ-सुथरे रखे जाएं तो बाढ़ से होने वाले नुक्सान का खतरा बहुत कम हो जाएगा। बांधों से भी जब अतिरिक्त पानी छोड़ा जाना होता है, यदि कुछ समय पूर्व लोगों को सतर्क कर दिया जाए तो अधिक बेहतर होगा।-शंगारा सिंह भुल्लर
 


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