अडानी-श्रीलंका : मोदी की चुप्पी

punjabkesari.in Tuesday, Mar 07, 2023 - 05:45 AM (IST)

गौतम अडानी के बारे में हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को लेकर नए रहस्योद्घाटन लगभग रोज ही हो रहे हैं। इस बार का संसद का सत्र भी इसी मामले का शिकार होने वाला है, क्योंकि विपक्ष के पास इसके अलावा कोई बड़ा मुद्दा है ही नहीं। वैसे एक मुहावरा  है कि ‘भागते चोर की लंगोटी ही काफी।’ अब अंग्रेजी के ‘हिंदू’ अखबार में श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी की एक भेंटवार्ता छपी है। उसमें साबरी ने दावा किया है कि श्रीलंका की सरकार के साथ अडानी के कोलंबो बंदरगाह और विद्युत परियोजना के जो सौदे हुए हैं, वे ऐसे ही हैं जैसे कि दो सरकारों के बीच होते हैं।

यह कथन बहुत मायने रखता है। पता नहीं, यह बोलते हुए साबरी को इस बात का ध्यान रहा या नहीं कि अडानी और हमारी सरकार के संबंधों को लेकर यहां बड़ा बावेला उठ खड़ा हुआ है। साबरी ने श्रीलंका के भयंकर आर्थिक संकट के समय भारत द्वारा दी गई प्रचुर सहायता के लिए मोदी सरकार का बड़ा आभार माना है, लेकिन उन्होंने मोदी और अडानी को एक-दूसरे का पर्याय बना दिया है। कोई आश्चर्य नहीं कि अब भारत के विपक्षी नेताओं के हाथ एक छड़ी लग जाए, जिससे वे मोदी सरकार पर प्रहार कर सकें।

अभी तक तो हमारा विपक्ष सिर्फ अडानी की खाली तूती बजा रहा है, जिसका असर शेयर मार्कीट पर तो पड़ा है लेकिन वह जनता के कानों में नहीं गूंज पा रही है। श्रीलंका के विदेश मंत्री साबरी ने यह भी कहा है कि अडानी के शेयरों में हालांकि 140 बिलियन डॉलर का पतन हो गया है लेकिन उन्हें अडानी समूह की कार्यक्षमता पर पूरा भरोसा है। साबरी शायद कहना यह चाह रहे हैं कि अडानी में उनका भरोसा इसलिए है कि भारत सरकार में उनका भरोसा है।

दूसरे शब्दों में भारत सरकार और अडानी को वह एक ही सिक्के के दो पहलू समझ रहे हैं। जैसा उत्साह श्रीलंका ने अडानी की परियोजनाओं के बारे में दिखाया है, वैसा ही उत्साह इसराईल  ने भी दिखाया है। हमारा विपक्ष इसराईल से हुए अडानी के सौदे को प्रधानमंत्री की इसराईल यात्रा का ही परिणाम बताता है। इसराईल का हाइफा बंदरगाह सामरिक दृष्टि से पश्चिम एशिया का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। अडानी ने उसे 1.2 बिलियन डॉलर में खरीद लिया है।

इस तरह के कई सौदे अडानी समूह ने देश और विदेश में किए हैं। हमें देखना यह है कि क्या इन सौदों से भारत का कोई नुक्सान हुआ है? यदि नहीं हुआ है तो विपक्ष द्वारा खाली-पीली शोर मचाने का कोई औचित्य नहीं है। देश में आज तक एक भी सरकार ऐसी नहीं हुई है  जिसने भारतीय उद्योगपतियों के साथ पूर्ण असहयोग का रास्ता अपनाया हो। सरकारें असहयोग करेंगी तो देश की हानि ही होगी।

उनके सहयोग का वित्तीय फायदा उन्हें जरूर मिलता है। इसके बिना भी राजनीति चल नहीं सकती। यदि अडानी समूह ने कोई कानून विरोधी कार्य किया है या उसके किसी काम से देश या जनता की हानि हुई है तो वह दंड का भागीदार अवश्य होगा। यदि अडानी समूह ने फर्जीवाड़ा किया है तो वह भुगतेगा, लेकिन इसमें मोदी क्या करें? मोदी कुछ बोलते क्यों नहीं? मोदी की चुप्पी विपक्ष की आवाज को बुलंद कर रही है। -डा. वेदप्रताप वैदिक


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