2 वर्ष की चुप्पी के बाद फिर गरजे ‘के.सी.आर.’

punjabkesari.in Monday, May 05, 2025 - 05:47 AM (IST)

अलग तेलंगाना राज्य की स्थापना के लिए सफल संघर्ष करने वाले नेता के.चंद्रशेखर राव लगभग 2 वर्ष के बाद एक बार फिर से अपने पुराने गरजने वाले तेवर में दिखाई दिए। तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री और भारत राष्ट्र समिति (बी.आर.एस.) के अध्यक्ष के.सी.आर. ने हाल ही में अपना 2 वर्षीय एकांतवास तोड़ा। नवंबर 2023 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद के.सी.आर. ने खुद को सार्वजनिक कार्यक्रमों से दूर कर लिया था। इसके चलते उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनावों में भी दूरी बना ली थी। जमीन से जुड़े और संघर्षशील नेता का यूं अचानक खुद को सार्वजनिक जीवन से अलग कर लेना किसी के भी गले नहीं उतरा। के.सी.आर. 2 बार लगातार प्रभावशाली बहुमत से तेलंगाना के मुख्यमंत्री बने। इस दौरान उन्होंने तेलंगाना का बहुत तेजी से विकास किया। उनकी इस मेधा को देखकर दुनिया की मशहूर और बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने तेलंगाना में भारी निवेश किया। के.सी.आर. ने व्यवस्थित शहरीकरण और निरंतर बिजली और पानी की आपूर्ति सुनिश्चित कर शहरी विकास को तीव्र गति प्रदान की, जिससे भवन निर्माण उद्योग को बहुत बढ़ावा मिला। 

आज हैदराबाद में जमीनों के भाव सबसे ज्यादा हैं। किसानों, महिलाओं, युवाओं और दलितों के लिए उन्होंने अनेक लाभकारी योजनाएं चालू कीं। सिंचाई के क्षेत्र में कालेश्वरम जैसी अति महत्वाकांक्षी योजना के प्रति दुनिया भर का ध्यान आकॢषत किया। इस सबके दौरान उनके विपक्षियों और आलोचकों ने उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। जिनकी परवाह किए बिना के.सी.आर. एक जुनूनी की तरह अपने अभियान में जुटे रहे। पर उनसे एक भारी चूक हो गई। उन पर ये आरोप लगे कि वे खुद को जनता और अपनी पार्टी के कार्यकत्र्ताओं से दूर रखते थे। शायद इसलिए 2023 में उन्हें जनता का समर्थन नहीं मिला और हार का सामना करना पड़ा। जिस तरह उन्होंने हैदराबाद से 60 किलोमीटर दूर यदाद्रीगिरीगुट्टा के इलाके में भगवान लक्ष्मी नृसिंह देव का नक्काशीदार ग्रेनाइट पत्थर का पहाड़ के ऊपर एक अत्यंत भव्य मंदिर बनवाया है, वह अकल्पनीय है। गौरतलब है कि इस मंदिर का सारा निर्माण कार्य आगम, वास्तु और पंचरथ शास्त्रों के सिद्धांतों पर किया गया है। जिनकी दक्षिण भारत में खासी मान्यता है। के.सी.आर. की सनातन धर्म में गहरी आस्था है। 

इस मंदिर के चारों ओर उन्होंने तिरुपति जैसा सुंदर वैदिक नगर रातों-रात स्थापित कर दिया। जहां उत्तर भारत के मंदिरों का तेजी से बाजारीकरण होता जा रहा है, वहीं के.सी.आर. ने मंदिर के परिसर और उसके आस-पास फल-फूल, मिठाई, कलाकृतियों या खान-पान की एक भी दुकान नहीं बनने दी। क्योंकि उससे मंदिर की पवित्रता भंग होती। ये सारी व्यावसायिक गतिविधियां पहाड़ी की तलहटी में चारों ओर बसे नव-निर्मित नगर में ही होती हैं। तेलंगाना राज्य को बनवाने के बाद के.सी.आर. नए राज्य के मुख्यमंत्री बन कर ही चुप नहीं बैठे। उन्होंने किसानी के अपने अनुभव और दूरदृष्टि से सी.ई.ओ. की तरह दिन-रात एक करके, हर मोर्चे पर ऐसी अद्भुत कामयाबी हासिल की है कि इतने कम समय में तेलंगाना भारत का सबसे तेजी से विकसित होने वाला प्रदेश बन गया है। मैंने खुद तेलंगाना के विभिन्न अंचलों में जाकर तेलंगाना के कृषि, सिंचाई, कुटीर व बड़े उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य और समाज कल्याण के क्षेत्र में जो प्रगति देखी वह आश्चर्यचकित करने वाली है। मुझे आश्चर्य इस बात का हुआ कि दिल्ली में 4 दशक से राजनीतिक पत्रकारिता करने के बावजूद न तो मुझे के.सी.आर. की इन उपलब्धियों का  कोई अंदाजा था और न ही के.सी.आर. के बारे में सामान्य से ज्यादा कुछ भी पता था।

बीते सप्ताह के.सी.आर. ने अपनी पार्टी की रजत जयंती के उपलक्ष्य में वारंगल जिले के एलकथुर्थी गांव में एक विशाल रैली का आयोजन किया। इस रैली में अपार जनसमूह के आने से यह बात सामने आई कि जिन वोटरों ने 2 बरस पहले के.सी.आर. को विधानसभा और लोकसभा चुनावों में नकार दिया था वे अब फिर लौट कर के.सी.आर. के झंडे तले खड़े हो गए हैं। जबकि पड़ोसी राज्य कर्नाटक में कांग्रेस ने अपने काफी वादे पूरे किए हैं। इस रैली में के.सी.आर. कांग्रेस पर जमकर बरसे। के.सी.आर. ने रैली में जनता से पूछा कि क्या अपने वादों के मुताबिक कांग्रेस सरकार ने आपको डबल पैंशन दी, क्या छात्रों को मुफ्त स्कूटी दी, किसानों के कर्ज माफ किए, इस पर जनता का जोर-शोर से जवाब था ‘नहीं’। 

इस जनसभा में के.सी.आर. ने कांग्रेस को ‘तेलंगाना का नंबर एक खलनायक’ करार दिया। हालांकि वे स्वयं दशकों तक कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे पर इस रैली में उन्होंने आरोप लगाया कि 1956 में  कांग्रेस ने तेलंगाना को आंध्र प्रदेश के साथ जबरन मिला दिया था, जिसके खिलाफ  तेलंगाना की जनता ने लंबा संघर्ष किया। इसके अलावा, उन्होंने भाजपा के हिंदुत्व एजैंडे का जवाब देते हुए भगवान राम का उल्लेख किया और कहा कि उनकी प्रेरणा ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ थी जिसने उन्हें तेलंगाना आंदोलन शुरू करने के लिए प्रेरित किया। यह उनके हिंदू वोट बैंक को जोडऩे की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।-विनीत नारायण
 


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