पाकिस्तान को एक करारा जवाब होगा सुदृढ़ और स्थिर जम्मू-कश्मीर

punjabkesari.in Wednesday, Aug 07, 2024 - 05:23 AM (IST)

5 अगस्त 2019, एक झटके में भारत के संविधान से अनुच्छेद 370 को हटा दिया गया तथा जम्मू-कश्मीर को दो संघ राज्य क्षेत्रों जम्मू एवं कश्मीर में विभाजित कर दिया गया। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने राज्य का भौगोलिक विभाजन किया और संपूर्ण देश में उनके इस कदम की सराहना की गई तथा पूरी घाटी को अभूतपूर्व सुरक्षा में लिया गया। 

5 अगस्त 2024, यह 5 अगस्त, 2019 की 5वीं वर्षगांठ थी और राज्य में सितंबर में विधानसभा चुनाव की संभावनाओं को तलाशा जा रहा है, विशेषकर इसलिए कि इस संघ राज्य क्षेत्र में बढ़ते आतंकवादी हमलों के चलते सुरक्षा परिदृश्य बिगड़ा है और इस वर्ष अब तक आतंकवादी हमलों में 50 से अधिक सुरक्षाकर्मी मारे गए हैं। संघ राज्य क्षेत्र में पाकिस्तान समर्थित संगठनों लश्कर-ए-तोयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिदीन व अन्य संगठनों द्वारा निरंतर संघर्ष जारी है, जिसमें आतंकवादियों ने अब तक शांत रहे जम्मू क्षेत्र को अपना खेल का मैदान बना दिया है और वहां पर वे बार-बार हमले कर रहे हैं। 

वस्तुत: पिछले दो माह में घात लगाकर हमले करने की घटनाएं नियमित रूप से घट रही हैं और ये हमले विशेषकर पीर पंजाल के दक्षिणी भाग में हो रहे हैं, जहां पर लंबे समय तक आतंकी घटनाएं देखने को नहीं मिली थीं। हाल के हमलों में सेना के 2 अधिकारी और 2 पाकिस्तानी आतंकवादी मारे गए, जिनमें से एक लश्कर-ए-तोयबा का विस्फोटक विशेषज्ञ था। उसके बाद पिछले सप्ताह राजौरी में सेना के काफिले पर हमला हुआ, जिसमें एक सैनिक घायल हुआ। 

अधिकारियों के अनुसार 600 से अधिक उच्च प्रशिक्षित विदेशी आतंकवादी कुपवाड़ा, डोडा, पुंछ और राजौरी की गलियों में छिपे हुए हैं। उनके पास अत्याधुनिक हथियार और संचार उपकरण हैं। बी.एस.एफ. प्रमुख और उप-प्रमुख को हाल ही में हटाया जाना सुरक्षा समस्या की गंभीरता को दर्शाता है। यही नहीं, आतंकवादियों ने संघ राज्य क्षेत्र में नागरिक प्रशासन और पुलिस में भी घुसपैठ कर दी है और इसका प्रमाण यह है कि 2 सिपाहियों सहित 8 सरकारी कर्मचारियों को इस मामले में निलंबित किया गया है। यही नहीं, स्थानीय जिहादी स्लीपर सैल सक्रिय हो गया है और उन्हें स्थानीय लोगों का समर्थन प्राप्त है क्योंकि स्थानीय लोग इस बात से नाराज हैं कि बाहरी लोगों को वहां भूमि खरीदने और बसने की अनुमति दी जा रही है। इससे यह आशंका पैदा हो रही है कि विधानसभा चुनावों में और विलंब हो सकता है। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने इस संबंध में समय सीमा निर्धारित की है। 

आज घाटी का राजनीतिक क्षेत्र ऐसा बन गया है कि इसे पहचाना नहीं जा सकता। यहां तक कि यहां की स्थिति समझने वाले क्षेत्रीय दलों नैशनल कांफ्रैंस और पी.डी.पी. के पास भी 2019 के बाद कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है और यही स्थिति भाजपा के स्थानीय नेताओं की है। नैशनल कांफ्रैंस के नई दिल्ली स्थित नेता सज्जाद लोन अपनी जमानत बचाने में भी सफल नहीं रहे। इससे भी चिंताजनक बात यह है कि इंजीनियर राशिद जैसे नेताओं के पुन: उभरने को किस तरह रोका जा सकता है, जो विधि विरुद्ध क्रियाकलाप अधिनियम के तहत जेल में थे और जिन्होंने जेल में रहकर नैशनल कांफ्रैंस के उमर अब्दुल्ला को हराया। इस तरह के नेता क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दलों के समीकरण बिगाड़ रहे हैं। 

ऐसी खबरें मिल रही हैं कि युवा और स्थानीय लोग इंजीनियर राशिद के साहसिक चुनावी कार्य से प्रभावित हैं। इन चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन भी संतोषजनक नहीं रहा और वह लद्दाख सीट हार गई, जबकि 2019 में उसने केवल यही सीट प्राप्त की थी। जम्मू की दो सीटों पर उसे 2019 की तुलना में कम वोट मिले हैं और यह सब तब हुआ जब संवैधानिक और प्रशासनिक रूप से सरकार हर कदम उठाने के लिए स्वतंत्र थी। वह किसी भी तरह का प्रयोग कर सकती थी और प्रतिरोध या विरोध को दबा सकती थी। 

आज स्थिति यह है कि घाटी सुरक्षित है और वहां पर पर्यटन खूब फल-फूल रहा है। वहां 21.3 मिलियन से अधिक पर्यटक पहुंच चुके हैं। नि:संदेह घाटी में आर्थिक और शासन के क्षेत्र में लाभ और सुधार हुआ है। सेवा प्रदाय में सुधार हुआ है। एक हजार से अधिक लोक सेवाओं का डिजिटलीकरण किया गया है। 6 हजार करोड़ रुपए से अधिक की निवेश की बड़ी परियोजनाएं पूरी होने वाली हैं। तथापि जैसा कि एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी का कहना है कि आर्थिक और प्रशासनिक उपायों के परिणाम प्राप्त करने के लिए धैर्य की आवश्यकता है। इसके साथ-साथ हमें आतंकवादी रोधी कार्रवाई में तेजी लानी होगी और युवाओं के कट्टरपंथ को रोकने के लिए कदम उठाने होंगे। 

दृष्टि से लोगों ने चुनाव में विश्वास व्यक्त किया और इसका प्रमाण यह है कि राज्य में हिसारहित मतदान हुआ और 35 बूथों में सर्वाधिक 58.6 प्रतिशत मत पड़े। फिर भी यह कहना जल्दबाजी होगी कि घाटी में चेरी के फूल खिल रहे हैं। स्पष्टत: राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए एक सोची-समझी रणनीति की आवश्यकता है और इसे एक निर्धारित समय में पूरा किया जाना चाहिए। केन्द्र को यह समझना होगा कि जम्मू-कश्मीर मुद्दे के समाधान में स्थानीय लोगों की भागीदारी भी होनी चाहिए क्योंकि वे इसमें मुख्य हितधारक हैं और प्रशासन में लोगों की भागीदारी के माध्यम से अलगाव की भावना को समाप्त किया जा सकता है। 

कुल मिलाकर केन्द्र सरकार को दोहरी रणनीति अपनानी होगी। एक ओर लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करना होगा और उनके घावों पर मरहम लगाना होगा, युवाओं को अलगाववाद से बचाना होगा और इसके लिए रोजगार के अवसर सृजित करने होंगे तथा विकास कार्यों को आगे बढ़ाना होगा। साथ ही आतंकवादियों का मुकाबला कड़ाई से करना तथा उनका सफाया करना होगा। 

गृह मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार सरकार कश्मीर घाटी की उपेक्षा नहीं कर सकती किंतु साथ ही हमें जम्मू क्षेत्र को भी सुरक्षित बनाना होगा और इसके लिए एक नया सुरक्षा तंत्र बनाना होगा। इस क्षेत्र में सुरक्षा बलों की तैनाती को तर्कसंगत बनाया जा रहा है। आतंकवादी घाटी और जम्मू क्षेत्र की जीवन रेखा राजमार्गों को निशाना बना सकते हैं, इसलिए स्थानीय पुलिस के साथ राजमार्गों पर सी.आर.पी.एफ. की तैनाती भी की गई है। देखना यह है कि क्या जम्मू-कश्मीर की जनता विकास के वायदों से संतुष्ट होती है, क्योंकि विकास कश्मीरियों की शिकायत नहीं रही। उनकी शिकायत भारतीय सुरक्षा बलों की अस्वीकार्य कठोरता रही है और इसके चलते सरकार लोगों का दिल नहीं जीत पाई। 

सभी दलों की बड़ी-बड़ी छात्र इकाइयां हैं तथा उन्हें अपनी छात्र इकाइयों के शिष्टमंडलों को जम्मू-कश्मीर में भेजना चाहिए और उन्हें वहां कश्मीर के युवाओं के साथ समय बिताना चाहिए। पाकिस्तान और उसके एजैंटों के उकसावे के बावजूद राज्य के लोगों के साथ भावनात्मक एकता स्थापित की जानी चाहिए। हालांकि वहां अनेक खराब तत्व हैं, किंतु आशा की जाती है कि कश्मीरी मित्रता को नहीं ठुकराएंगे या उसका प्रत्युत्तर ङ्क्षहसा के रूप में नहीं देंगे। इसका एक समाधान, जैसा कि प्रधानमंत्री ने स्वयं कहा है कि राज्य में स्थिति सामान्य होने के बाद जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा और इससे वहां के लोगों को अपने मुख्यमंत्री और विधायकों को चुनने का अवसर मिलेगा। भारत सरकार को विश्वास है कि कश्मीरियों को मुख्य धारा में लाने के उसके प्रयास सफल होंगे। भारत सरकार ने राज्य सरकार की नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण लागू किया है और इससे राज्य में चल रही विसंगति समाप्त हुई है। 

हमें इस बात को ध्यान में रखना होगा कि सुदृढ़ और स्थिर जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान के लिए एक करारा जवाब होगा और बहुलवादी हिन्दू भारतीय समाज और यहां फल-फूल रहे लोकतंत्र के लिए एक सौगात होगी। मोदी को भारत के राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने तथा कश्मीरियों को सही मायनों में यह अहसास कराने, कि वे भारत के हैं, के लिए हर संभव कदम उठाने चाहिएं और कश्मीरियों को भी संकीर्ण भावना से ऊपर उठकर इस बात का स्वागत करना चाहिए और यह तभी संभव हो सकता है जब घाटी में सामान्य स्थिति की बहाली हो।-पूनम आई. कौशिश
 


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