डिजाइन क्षेत्र में नेतृत्व के लिए चाहिए एक ठोस नीति

punjabkesari.in Monday, Aug 19, 2024 - 05:36 AM (IST)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 78वें स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में डिजाइन की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर किया, जो कि भारत की  जरूरतों को पूरा करने के साथ ही उसकी वैश्विक पहचान को भी मजबूत कर सकता है। मोदी की विशेषता है कि वे अक्सर अनदेखे क्षेत्रों को प्रमुखता देते हैं। उन्होंने डिजाइन को महत्व देते हुए भारत के उभरते डिजाइन क्षेत्र की आवश्यकता को रेखांकित किया और इसे देश के भविष्य के लिए आवश्यक बताया। उनका बयान, ‘डिजाइन इन इंडिया, डिजाइन फॉर द वल्र्ड’ भारत की बदलती आर्थिक और रणनीतिक आकांक्षाओं को दर्शाता है। 

जब देश $5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य तय कर रहा है, डिजाइन से जुड़े इनोवेशन और रणनीतियां और भी महत्वपूर्ण हो जाती हैं। इस महत्वाकांक्षी आर्थिक लक्ष्य को पूरा करने के लिए अब राष्ट्रीय डिजाइन पॉलिसी 2.0 का निर्माण आवश्यक हो गया है। 2007 में लागू की गई मूल राष्ट्रीय डिजाइन पॉलिसी एक महत्वपूर्ण कदम थी, जिसका उद्देश्य डिजाइन को आर्थिक और सामाजिक विकास का उत्प्रेरक बनाना था। इस नीति ने विभिन्न क्षेत्रों में डिजाइन को शामिल करके प्रतिस्पर्धा बढ़ाने, इनोवेशन  को प्रोत्साहित करने और डिजाइन शिक्षा और अनुसंधान के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करने की कोशिश की। नीति का केंद्रीय बिंदू था डिजाइन को राष्ट्रीय विकास के लिए एक रणनीति के रूप में मान्यता देना और भारतीय प्रोडक्ट्स को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का बनाना। 

नई डिजाइन पॉलिसी को ‘आत्मनिर्भर भारत’, ‘मेक इन इंडिया’, ‘स्किल इंडिया’, ‘डिजिटल इंडिया’, ‘स्मार्ट सिटी मिशन’, ‘आयुष्मान भारत’ जैसी पहलों के साथ समन्वित किया जा सकता है। इससे डिजाइन की क्रिएटिविटी का उपयोग कर इन नीतियों को उपयोगकत्र्ताओं के लिए अधिक प्रभावी बनाया जा सकेगा। भारत की पहली राष्ट्रीय डिजाइन पॉलिसी, 2007 में आई थी जो डिजाइन को आर्थिक और सामाजिक प्रगति के एक चालक के रूप में उपयोग करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम थी। इसका उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों में डिजाइन को शामिल करके प्रतिस्पर्धा को बढ़ाना, इनोवेशन को बढ़ावा देना और डिजाइन शिक्षा और अनुसंधान के लिए समर्थनकारी वातावरण तैयार करना था। इसमें डिजाइन थिंकिंग को राष्ट्रीय एजैंडे में शामिल करने और विभिन्न उद्योगों में डिजाइन सिद्धांतों को लागू करने पर जोर दिया गया। इसका लक्ष्य भारत को एक वैश्विक डिजाइन हब के रूप में स्थापित करना था। 

पिछले कुछ दशकों में भारत की आर्थिक स्थिति में महत्वपूर्ण बदलाव आया है। ‘मेक इन इंडिया’ पहल ने भारत को वैश्विक निर्माण केंद्र में बदल दिया है और विदेशी निवेश को आकर्षित किया है। ‘आत्मनिर्भर भारत’ नीति का उद्देश्य आयात पर निर्भरता कम करना और घरेलू इनोवेशन और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना है। ये नीतियां भारत की निर्माण क्षमताओं को मजबूत करने और बाहरी स्रोतों पर निर्भरता कम करने की दिशा में एक बदलाव को दर्शाती हैं। भारत को वैश्विक स्तर पर नेतृत्व की दिशा में पहुंचने के लिए, इसे 2007 की राष्ट्रीय डिजाइन पॉलिसी को अपडेट और पुनरावलोकन करने की आवश्यकता है। वैश्विक बाजारों की गतिशीलता और तेजी से तकनीकी प्रगति के चलते एक समकालीन दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो वर्तमान लक्ष्यों के साथ मेल खाता हो। 

वैश्विक अनुभव बताते हैं कि डिजाइन नीतियों का राष्ट्रीय विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। दक्षिण कोरिया, जापान और यू.के. इस संदर्भ में महत्वपूर्ण उदाहरण हैं। कोरिया डिजाइन सैंटर के अनुसार, डिजाइन से जुड़ा उद्योग दक्षिण कोरिया की जी.डी.पी.में लगभग 3 प्रतिशत का योगदान करता हैं। 2018 की डिजाइन काऊंसिल रिपोर्ट के अनुसार, यू.के. की डिजाइन अर्थव्यवस्था की वैल्यू $85.2 बिलियन थी, जो कि उनकी जी.डी.पी. का 7.5 प्रतिशत है। डिजाइन की मदद से यू.के. ने भी मैक लॉरेन, डायसन, जैगुआर जैसे कई वैश्विक ब्रांड तैयार किए हैं। जापान की डिजाइन नीतियां भी इनोवेशन  पर जोर देती हैं, जिससे उन्हें होंडा, टोयोटा, सोनी, मित्सुबिशी जैसे कई वैश्विक ब्रांडों को स्थापित करने में सफलता मिली है। वैश्विक डिजाइन नेतृत्व को बढ़ाने के लिए अब भारत को भी राष्ट्रीय डिजाइन पॉलिसी 2.0 को तैयार करना होगा ताकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर के ब्रांड्स का निर्माण करने के साथ-साथ देश की अन्य चुनौतियों जैसे शहरी योजना, स्वास्थ्य देखभाल और पर्यावरणीय स्थिरता का भी समाधान किया जा सके। 

उपयोगकत्र्ता-केंद्रित समाधान तैयार करके, भारत को ‘अमृत काल’ की दिशा में ले जाया जा सकता है। यह दृष्टिकोण सुनिश्चित करेगा कि भारत न केवल वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धी बने बल्कि इनोवेशन और डिजाइन में भी नेतृत्व कर भविष्य के लिए एक नया मानक स्थापित करे।-मिहिर भोले
 


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