सिसोदिया के सफेद दामन पर एक छोटा-सा दाग रह जाएगा
punjabkesari.in Friday, Mar 10, 2023 - 06:03 AM (IST)

‘आप’ नेता मनीष सिसोदिया फिलहाल सी.बी.आई. की हिरासत में हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह अब थोड़ी चैन की सांस लेंगे। दिल्ली की गरीब आबादी के बीच मनीष की लोकप्रियता ने अधिक सम्पन्न लोगों के बीच मोदी की लोकप्रियता को पार कर लिया है। यह ‘डबल इंजन’ के लिए शुभ संकेत नहीं था। ऐसा लगता है कि मनीष के आऊट होने से ‘आप’ की मशीन धीमी हो जाएगी और ऐसी ही यह मंशा है।
दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने शिक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित किया था। इन दो विषयों पर किसी भी सरकार फिर चाहे वह केंद्र में हो या राज्यों में, को विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए। ‘आप’ ने दोनों क्षेत्रों में विशेष तौर पर शिक्षा में बहुत अच्छा काम किया था। शिक्षा को मनीष सिसोदिया ने संभाला था। मगर अब उनकी जगह ‘आप’ थिंकटैंक आतिशी मार्लेना लेंगी जो अब इसका ध्यान रखेंगी।
मोदी और शाह को भाजपा में डबल इंजन की सरकारों को सलाह देनी चाहिए कि शिक्षा और स्वास्थ्य के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में ‘आप’ की उपलब्धियों का अनुसरण करें। वर्तमान में वे बहुसंख्यक पूर्वाग्रहों को भड़काने और भाजपा को बनाए रखने के लिए अल्पसंख्यकों को कोसने में व्यस्त हैं। मतदाताओं की भावी पीढिय़ां निश्चित रूप से ऐसी विभाजनकारी राजनीति को त्याग देंगी। शिक्षा और स्वास्थ्य में क्रांति सभी पीढिय़ों को अपील करेगी।
मुझे हमेशा से ही यह संदेह रहा है कि आजादी के बाद दशकों तक सत्ता में रही कांग्रेस पार्टी की सरकार के बाद की सरकारें शायद नहीं चाहती होंगी कि जनता पूरी तरह से साक्षर हो। अशिक्षित लोग आंख बंद कर उन लोगों द्वारा बताई गई बातों का पालन करते हैं जिनके पास बांटने के लिए उपहार हैं। अनादिकाल से धार्मिक कट्टरपंथियों द्वारा एक समान सिद्धांत को अपनाया गया है। पढ़े-लिखे व्यक्ति वास्तव में शिक्षित नहीं हो सकते हैं लेकिन वे टैलीविजन पर समाचार सुनते हैं।
उनमें से कई अपने दैनिक अस्तित्व से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी राय बनाने का निर्णय लेते हैं। राजनेता उनके समर्थन को हल्के में नहीं ले सकते। धर्म और जाति मतदाताओं को प्रभावित करते हैं और वे कारक बने रहेंगे लेकिन पक्ष और विपक्ष पर विचार किए बिना डाले गए वोट कम हो जाएंगे जब लोग पढ़ और लिख सकेंगे। नेता लोग जिस झुंड मानसिकता को तरजीह देते हैं उसकी चमक फीकी पड़ जाएगी।
कम से कम मेरे लिए यह स्पष्ट नहीं है कि मनीष सिसोदिया पर कानून के तहत किन अपराधों का आरोप लगाया जा रहा है। पुलिस के साथ सहयोग नहीं करने वाला अभियुक्त निश्चित रूप से किसी भी कानून के तहत अपराधी नहीं है। पुलिस को लगता है कि अदालतें आरोपी की चुप्पी या सवालों के जवाब देने से इंकार करने का अनुमान लगा सकती हैं लेकिन उसे कुछ ऐसा स्वीकार करने के लिए मजबूर नहीं कर सकती जो बाद में उसे किसी अपराध में फंसा सकती हैं।
सिसोदिया के खिलाफ एक और शिकायत यह है कि उन्हें एक ही समय में कई मोबाइल फोनों का इस्तेमाल करने की आदत थी और उन्होंने अपने द्वारा किए गए कॉल के डाटा को डिलीट कर दिया। फिर से इस तरह की प्रथाओं से निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं लेकिन कानून में यह कहां निर्धारित किया गया है कि एक समय में एक निश्चित संख्या से अधिक फोन का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता और कॉल का रिकार्ड रखने की आवश्यकता है।
सच को सामने लाने में खोजी पत्रकार माहिर होते हैं। वे उन रिमांड आवेदनों को पकडऩे में कामयाब होते हैं जो आमतौर पर गिरफ्तार किए गए व्यक्ति से सच्चाई को उजागर करने के लिए अदालत से कुछ दिनों का रिमांड देने के लिए आधार का खुलासा करते हैं। सिसोदिया के मामले में जनता को अभी तक उनकी गिरफ्तारी के कारणों के बारे में पता नहीं चला है।
लोगों को जो बताया गया है वह यह है कि जिस आदमी (मनीष) की वे प्रशंसा करते हैं यहां तक कि प्यार भी करते हैं वह 100 करोड़ रुपए के बड़े घोटाले में शामिल है।
आबकारी मंत्री के रूप में उन्होंने निर्णय लेने की प्रक्रिया में मंत्रिपरिषद और उप राज्यपाल को शामिल किए बिना अपने दम पर निर्णय लिए। उन्होंने जांचकत्र्ताओं को ‘साऊथ ग्रुप’ के रूप में जाने जाने वाले लाइसैंसधारियों के एक समूह को लाभान्वित करने के लिए नीति को बदल दिया जिसमें तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की बेटी और एक एम.पी. उसके सदस्य हैं। ‘साऊथ ग्रुप’ द्वारा अर्जित किए जाने वाले थोक विक्रेताओं के लाभ को 5 से बढ़ाकर 12 प्रतिशत कर दिया गया था।
मनीष को इस फैसले के बारे में बताने के लिए कहा गया था लेकिन मीडिया के मुताबिक वह संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए। भले ही मनीष सिसोदिया साऊथ ग्रुप या किसी ऐसे ग्रुप से मिले हों जो अपने आप में उन्हें अपराध में शामिल नहीं करेगा जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि बातचीत से उन्हें व्यक्तिगत रूप से फायदा हुआ है। उनके कार्यालय, घर, बैंक और उनके बैंक लॉकरों पर छापे मारे गए हैं और वे खाली निकले।
पार्टी को रिश्वत मिल सकती है। यह तय है कि सभी राजनीतिक दलों को अपना कारोबार चलाने के लिए पैसों की जरूरत होती है। केंद्र में भाजपा के पास चुनावी बांड्स हैं लेकिन कर्नाटक में उदाहरण के लिए भाजपा सरकार के कुछ मंत्रियों पर ठेकेदारों द्वारा मानक 15 प्रतिशत के बजाय अनुबंधों से 40 प्रतिशत की कटौती की मांग करने का आरोप लगाया गया है (मुम्बई नगर निगम में आंकड़ा कम है)।
अधिक से अधिक नगर सेवकों वाली पाॢटयों को अधिक लाभ होता है। ठेकेदारों द्वारा भाजपा के खिलाफ आरोप लगाए गए हैं। कर्नाटक में हाल ही में उसके एक प्रमुख विधायक की गिरफ्तारी और उनके बेटे के घर से कुछ करोड़ रुपए की बरामदगी से नेताओं को बल मिला है। यदि रिश्वत स्वीकार कर ली जाती है और फिर पार्टी के खजाने में जमा कर दी जाती है तो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत एक अपराध माना जाएगा। पैसे की प्राप्ति को साबित करने के लिए सबूत जुटाना आसान नहीं हो सकता है।
हमारे देश में लोग उन लोगों को भी माफ कर देते हैं जिन्होंने भ्रष्ट आचरण पर अपना वजन कम किया है। वे मनीष को भी माफ कर देंगे भले ही पैसा उनके व्यक्तिगत खाते में नहीं बल्कि पार्टी में गया हो लेकिन उनकी प्रतिष्ठा वाले सफेद दामन पर एक छोटा-सा दाग रह जाएगा। -जूलियो रिबैर(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)