ये क्या कर रहे! ये क्या हो रहा है! एक दल से दूसरे दल में जाने का खेल

punjabkesari.in Saturday, Jun 19, 2021 - 05:05 AM (IST)

भारतीय राजनीति का कुछ ऐसा माहौल बन गया है कि हमारे नेतागण अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए एक दल से दूसरे दल में आने-जाने में कोई संकोच नहीं करते जो दो सप्ताह के निम्र उदाहरणों से स्पष्ट है : 

* 4 जून को विधायक सुखपाल खैहरा ने अपने 2 अन्य विधायक साथियों के साथ फिर कांग्रेस का दामन थाम लिया है। वह 2015 में पार्टी छोड़ कर ‘आम आदमी पार्टी’ में चले गए थे। 2019 में उन्होंने ‘आम आदमी पार्टी’ से त्यागपत्र देकर ‘पंजाबी एकता पार्टी’ बना ली थी जिसका 17 जून को उन्होंने कांग्रेस में विलय कर दिया।
* 5 जून को ‘बसपा’ के पूर्व विधायक जी.एम. सिंह ने मायावती पर जमीनी नेताओं का अपमान और उपेक्षा करने का आरोप लगाते हुए पार्टी से त्यागपत्र दे दिया। संभवत: अब वह सपा में शामिल होकर राजनीति करेंगे।

* 8 जून को उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यमंत्री डा. रमाशंकर राजभर सहित ‘बसपा’ के 35 वर्तमान एवं पूर्व पदाधिकारियों व सदस्यों ने बसपा के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव राम अचल राजभर को पार्टी से निकाले जाने के विरोध में पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से सामूहिक त्यागपत्र दे दिया। 

* 9 जून को पूर्व केंद्रीय मंत्री तथा उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद ने पार्टी नेतृत्व द्वारा उन्हें स मानजनक भूमिका न देने तथा सोनिया गांधी को पत्र लिखने वाले ‘ग्रुप-23’ में शामिल होने पर उत्तर प्रदेश की राजनीति से क्रियात्मक रूप से बाहर कर दिए जाने के विरुद्ध रोष स्वरूप कांग्रेस को अलविदा कह दी और भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। 

* 11 जून को भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकुल राय अपने बेटे शुभ्रांशु के साथ तृणमूल कांग्रेस में लौट आए। वह ममता बनर्जी के साथ अनबन के चलते नवंबर, 2017 में भाजपा में शामिल हो गए थे। अपनी वापसी पर मुकुल राय ने कहा, ‘‘मौजूदा हालात में कोई भी व्यक्ति भाजपा में नहीं रहेगा।’’
* 12 जून को तेलंगाना राष्ट्र समिति के वरिष्ठï नेता और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री ई. राजेंद्र ने पार्टी और विधायक पद से इस्तीफा देने के बाद 14 जून को अपने अनेक समर्थकों के साथ भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया। 

* 18 जून को असम से 4 बार के ïिवधायक रूपज्योति कुरमी ने पार्टी नेतृत्व पर युवा नेताओं की अनदेखी करने के विरुद्ध रोष स्वरूप कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया। रूपज्योति कुरमी का कहना है कि राहुल गांधी नेतृत्व करने में असमर्थ हैं। अगर वह शीर्ष पर रहेंगे तो पार्टी आगे नहीं बढ़ेगी। रूपज्योति कुरमी के 21 जून को भाजपा में शामिल होने की संभावना है।  
* 18 जून को पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में तृणमूल कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में गए 350 कार्यकत्र्ताओं ने दोबारा पार्टी में वापसी के लिए पार्टी कार्यालय के बाहर 4 घंटे धरना दिया और भाजपा में जाने की गलती स्वीकारी। इन पर गंगाजल छिड़क कर शुद्ध करने के बाद उन्हें दोबारा पार्टी में शामिल कर लिया गया। एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाने-आने का यह खेल कितने निचले स्तर तक पहुंच चुका है, इसका ताजा उदाहरण 17 जून को सामने आया। 

इसी वर्ष 6 अप्रैल को हुए विधानसभा चुनाव में आदिवासी नेता और ‘जनाधिपथ्य राष्ट्रीय पार्टी’ (जे.आर.पी.) की अध्यक्ष सी.के. जानू को ‘राजग’ में शामिल होकर चुनाव लडऩे के लिए 10 लाख रुपए रिश्वत देने के आरोप में केरल भाजपा प्रमुख के. सुरेंद्रन के विरुद्ध मामला दर्ज किया गया है। इसी बीच त्रिचूर पुलिस ने अदालत में दायर बयान में कहा है कि चुनावों से तीन दिन पूर्व हाईवे पर डकैती के दौरान लूटी गई रकम भाजपा की थी। पुलिस ने इस संबंध में आर.एस.एस. के ए.के. धर्मराजन नामक कार्यकत्र्ता  द्वारा दायर याचिका को चुनौती दी है जिसमें उसने अदालत से पुलिस द्वारा जब्त की गई उक्त राशि जारी करने का आदेश देने का आग्रह किया था। 

उक्त घटनाक्रमों से जहां राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा अपनी वफादारियां भूल स्वार्थपूॢत के लिए एक दल से दूसरे दल में पाला बदलने के रुझान का खुलासा होता है वहीं इससे राजनीतिक दलों द्वारा चुनावों में उ मीदवारों की खरीद-फरो त के इस्तेमाल का पता चलता है। निश्चय ही लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए यह शुभ संकेत नहीं। इससे मूल पार्टी के नेतृत्व द्वारा अपने सदस्यों की उपेक्षा, उनकी बात न सुनने आदि के कारण एक दल से दूसरे दल में जाने के खेल को बढ़ावा मिल रहा है। अत: राजनीतिक पाॢटयों के नेतृत्व का कत्र्तव्य है कि वे इस बात को सुनिश्चित करें कि पार्टी में कर्मठ वर्करों की अनदेखी न हो, उनकी आवाज सुनी जाए तभी दल-बदली व राजनीतिक पार्टियों में टूटन रुकेगी।—विजय कुमार
 


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