भारतीय रेलों में दुर्घटनाएं कमजोर ढांचे व मतभेदों का परिणाम

punjabkesari.in Saturday, Dec 17, 2016 - 12:18 AM (IST)

जापानी रेलें ‘शून्य दुर्घटना’ के साथ प्रतिदिन लाखों लोगों को उनकी मंजिल तक पहुंचा रही हैं परंतु भारतीय रेलों में यात्रा करना जोखिम से भरपूर होता जा रहा है और आजादी के बाद से अभी तक इसमें कोई सुधार नहीं हुआ।

किसी भी बड़ी दुर्घटना के बाद सरकारें तात्कालिक उपाय के रूप में आनन-फानन में मृतकों के आश्रितों को आॢथक मुआवजा और नौकरी आदि की लोक-लुभावन घोषणाएं करके मामला रफा-दफा समझ लेती हैं।

इसके साथ ही जांच आयोगों के गठन और दोषियों को कठोरतम दंड देने जैसी घोषणाएं भी की जाती हैं। गत 20 नवम्बर को कानपुर के निकट राजेंद्र नगर-इंदौर एक्सप्रैस दुर्घटना में 150 से अधिक लोगों की मृत्यु के बाद भी केंद्र और राज्य सरकारों का रवैया ऐसा ही रहा है और पीड़ित परिवारों को अनुग्रह राशि देने तथा दुर्घटना की जांच के लिए 12 सदस्यीय टीम का गठन कर दिया गया है जिसकी रिपोर्ट अभी तक नहीं आई।

इस बीच तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुदीप बंदोपाध्याय के नेतृत्व वाली संसदीय समिति ने संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में इस दुर्घटना को ‘रेल पटरियों पर सुरक्षा मापदंडों की पूर्णत: असफलता का परिणाम’  बताया है।

भारतीय रेलों में प्रयुक्त 85 प्रतिशत डिब्बे लचीली माइल्ड स्टील से निर्मित पुराने ‘इंटैगरल कोच फैक्टरी’ (आई.सी.एफ.) के बने हैं। ये डिब्बे ‘एंटी टैलीस्कोपिंग प्रणाली’ से लैस न होने और स्टील की तुलना में भारी होने के बावजूद आघात सहने में कमजोर होने के कारण दुर्घटना की स्थिति में एक के ऊपर एक चढ़ते चले जाते हैं और मौत का पिंजरा सिद्ध होते हैं।

वर्तमान में रेलवे द्वारा प्रयुक्त 63,000 यात्री डिब्बों में सिर्फ 8000 डिब्बों में ही ङ्क्षलक हाफ मैन बुश (एल.एच.बी.) लगे हुए हैं। इसी कारण संसदीय समिति ने भारतीय रेलवे को अपनी रेलगाडिय़ों में पारंपरिक आई.सी.एफ. डिब्बों के स्थान पर समयबद्ध रूप में एल.एच.बी. डिब्बे लगाने का सुझाव देते हुए कहा है कि ‘‘यदि इस दुर्घटनाग्रस्त गाड़ी में एल.एच.बी. डिब्बे लगे हुए होते तो जान-माल की बहुत कम क्षति होती।’’

समिति के अनुसार 2015-16 के दौरान देश में (छोटी-बड़ी) 107 रेल दुर्घटनाओं से स्पष्टï है कि रेलवे के बुनियादी ढांचे में व्याप्त त्रुटियों को तत्काल दूर करने की कितनी अधिक आवश्यकता है।

समिति ने रेलवे बोर्ड में एक अलग सुरक्षा कोष स्थापित करने और एक सदस्य (सेफ्टी) नियुक्त करने का सुझाव भी दिया है जो पूर्णत: रेल यात्रियों की सुरक्षा को यकीनी बनाने के प्रति समॢपत हो। रेलवे बोर्ड तथा क्षेत्रीय और डिवीजनल कार्यालयों के पुनरीक्षण का सुझाव भी दिया गया है।

रेलवे में सुरक्षा मापदंडों की उपेक्षा और अंतरविभागीय मतभेदों तथा प्राथमिकताओं के गलत निर्धारण पर भी ङ्क्षचता व्यक्त की गई है तथा रेलवे में सुरक्षा संबंधी बुनियादी ढांचे का व्यापक स्तर पर पुनर्गठन करके इसमें एक अलग या पूर्णकार विभाग कायम करने का सुझाव दिया है जिसका एकमात्र काम अपने क्षेत्र में सब प्रकार की सुरक्षा प्रदान करना हो।

सेफ्टी कैटेगरी स्टाफ’ की भारी कमी से भी रेलवे में सुरक्षा प्रभावित हो रही है। रेल विभाग में 2.3 लाख पद खाली हैं। पश्चिम रेलवे मजदूर यूनियन के सचिव अजय सिंह के अनुसार, ‘‘एक तो रेल पटरियों का रख-रखाव करने वाला स्टाफ कम है और ऊपर से बड़ी संख्या में ट्रैक मैनों को रेलवे के वरिष्ठï अधिकारियों ने अपने बंगलों में निजी काम पर लगा रखा है।’’

यही नहीं, रेलवे को पुराने पड़ चुके रेल डिब्बों, खस्ता हाल रेल पटरियों और अन्य बुनियादी ढांचे तथा संसाधनों और रिजर्व तथा विकास फंड में लगातार कमी के अलावा भारी भ्रष्टïाचार का सामना भी करना पड़ रहा है।

इंदौर-पटना रेल दुर्घटना की जांच के लिए गठित 12 सदस्यीय टीम की रिपोर्ट आने से पहले संसदीय समिति द्वारा पेश उक्त रिपोर्ट में रेलगाडिय़ों में सुरक्षा से संबंधित मुद्दों की किसी भी रूप में उपेक्षा नहीं की जा सकती।

विशेष रूप से रेलवे के बुनियादी ढांचे में भारी त्रुटियों के अलावा समिति द्वारा रेलवे में विभिन्न विभागों के बीच मतभेदों का होना ङ्क्षचता का एक नया विषय है। इससे स्पष्टï है कि रेलवे के विभिन्न विभागों में आपसी तालेमल का अभाव है जिससे रेलवे की दशा सुधारने के प्रयासों को आघात ही लग रहा है।

सरकार देश में 160 कि.मी. से 200 कि.मी. प्रतिघंटा गति वाली तीव्रगामी (सैमी हाई स्पीड) रेलगाडिय़ां चलाने की योजना बना रही है जोकि अच्छी बात है परंतु इससे पूर्व इसे वर्तमान में चल रही गाडिय़ों में सुधार करके सुरक्षा मजबूत करने की ओर ध्यान देना चाहिए।     —विजय कुमार 


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