हमास के खिलाफ युद्ध तर्कसंगत परंतु निर्दोष नागरिकों का क्या कसूर?

punjabkesari.in Monday, Oct 16, 2023 - 03:25 AM (IST)

आतंकवादी संगठन ‘हमास’ द्वारा इसराईल पर हमले को आज 9 दिन होने को आए हैं। इस दौरान इसराईल और फिलिस्तीन के बड़ी संख्या में लोग मारे गए हैं। हमास के इसराईल में हमले से 1300 लोग मारे गए और इसराईल के हमले में करीब 2670 फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं और हजारों की तादाद में घायल हुए हैं। जिनमें से 60 प्रतिशत बच्चे और महिलाएं हैं। 

‘हमास’ के हमलों के बाद इसराईल अब भूमि, वायु और समुद्र द्वारा जवाबी कार्रवाई करने जा रहा है। इस घटनाक्रम में जर्मनी सहित समूचे यूरोप के अलावा अमरीका, इंगलैंड, फ्रांस, कनाडा तथा भारत आदि देशों ने इसराईल के साथ एकजुटता दिखाते हुए इसराईल के साथ खड़े होने की बात कही है। अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ‘आई स्टैंड विद इसराईल’ कहा है। वहीं अमरीका ने अपना दूसरा विमान वाहक भी इस क्षेत्र में भेज दिया है। जबकि ‘हमास’ ने सैंकड़ों इसराईली महिलाओं, पुरुषों और बच्चों को बंधक बना कर रखा हुआ है। इसराईल के समर्थक देशों में जर्मनी का उल्लेख इसलिए जरूरी है क्योंकि जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने यहूदियों पर सर्वाधिक अत्याचार किए और हिटलर के यातना शिविरों में 60 लाख यहूदियों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी परंतु हमास को सबक सिखाने के लिए बेकसूर फिलिस्तनियों को क्यों सजा दी जा रही है? 

आखिर इस इलाके में उनके घर और परिवार हैं, छोटे-छोटे बच्चे हैं, वे कहां जाएंगे? बम गिरा कर तमाम इमारतें ध्वस्त कर दी गई हैं और यह सारी कार्रवाई संयुक्त राष्ट्र की युद्ध संहिता के विरुद्ध है जिनमें नागरिक आबादी पर हमले करने पर रोक लगाई गई है। 10 लाख फिलिस्तनियों जिनमें बच्चे, महिलाएं और वृद्धों के साथ-साथ अस्पतालों में भर्ती सैंकड़ों घायल भी शामिल हैं, को 24 घंटे में उत्तरी गाजा खाली करने का आदेश दिया गया था। भले ही इसराईल ने उन्हें चेतावनी दे दी थी परंतु वे जाएंगे कहां? दक्षिण की ओर मिस्र है, जो उन्हें अपने यहां आने नहीं दे रहा। हालांकि संयुक्त राष्ट्र के 1948 के फैसले के अनुसार इस स्थान पर दोनों का बराबर-बराबर अधिकार है परंतु फिलिस्तीन ने इसे स्वीकार नहीं किया। दूसरी ओर बेशक इसराईल ने दो राष्ट्रों का सिद्धांत स्वीकार कर लिया था परंतु इसमें उन्होंने अपना हिस्सा अधिक रख लिया जबकि फिलिस्तीन का कम है। हाल ही में सऊदी अरब, कतर, संयुक्त अरब अमीरात आदि के साथ इसराईल के समझौतों से लगता था कि इनसे इस क्षेत्र में शांति की स्थापना में सहायता मिलेगी परंतु अब ये सब मुश्किल दिखाई दे रहा है। 

पिछले 30 वर्षों से कहा जा रहा है कि दोनों पक्षों, इसराईल तथा फिलिस्तीन के नेताओं को बिठाकर इस समस्या का निपटारा किया जाए परंतु न तो अमरीका और न ही कोई अन्य देश इनके बीच समझौते में रुचि रखता है। यही कारण है कि जब समझौते की बात होती भी है तो सब देश मिल कर बातचीत की मेज पर बैठने को तैयार नहीं होते और बातचीत की अनुपस्थिति में मौतें दोनों तरफ हो रही हैं। उल्लेखनीय है कि फिलिस्तीन सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है। यहां पहले जूडास और फिलिस्तीनी रहते थे। मिस्रियों के यहां आने के परिणामस्वरूप यहां से यहूदियों को 2000 वर्ष पूर्व यह स्थान छोड़ कर जाना पड़ गया और वे यूरोप में जाकर बस गए। तीसरी शताब्दी में रोमनों के ईसाई बन जाने पर यहां ईसाई धर्म आ गया।  इसके बाद 741 ईस्वी से यहां इस्लाम आ गया। इसी स्थान पर ईसा मसीह पैदा हुए, यहीं यहूदी धर्म कायम हुआ और इस्लाम धर्म में मक्का के बाद सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान रखने वाली अल-अक्सा मस्जिद भी यहीं है। कहा जा सकता है कि यह स्थान विश्व के तीन महान धर्मों का उद्गम स्थल है। 

प्रथम विश्व युद्ध के बाद जब ओटोमान साम्राज्य टूटा और फ्रांस, इटली तथा ब्रिटेन ने इस पूरे बड़े इलाके को, जो पहले फिलिस्तीन था और तुर्की को भी कवर करता था इसको बांट दिया। तुर्की आजाद होकर अलग देश बन गया और इसराईल वाला हिस्सा इंगलैंड के पास था। इंगलैंड ने बेलफास्ट डैकलरेशन में कहा था कि यहूदी यहां आकर रहें हम उन्हें रहने देंगे परंतु दूसरे विश्व युद्ध से पहले इंगलैंड ने यहूदियों से वायदा किया था कि यदि आप हमारा साथ देंगे तो हम यहां जनमत संग्रह करवाएंगे परंतु द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद उन्होंने इसमें अधिक रूचि नहीं ली। इस समस्या का कोई न्यायसंगत समाधान निकाले बगैर ही अंग्रेज मई 1948 में यह इलाका छोड़ गए और उस समय काफी लड़ाई झगड़े की स्थिति थी। बाद में संयुक्त राष्टï्र के चार्टर के अनुसार इस क्षेत्र का सीमांकन किया गया परंतु उसे न इस्लामिक देशों ने स्वीकार किया और न ही इसराईल ने। 

एमनेस्टी इंटरनैशनल और वैगनरस इंवैस्टीगेटर का कहना है कि इसराईल द्वारा गाजा सिटी पर व्हाइट फास्फोरस का स्प्रे किया जा रहा है। बेशक हमास को सजा देना जरूरी है परंतु इस बात से कोई भी इंकार नहीं कर सकता परंतु नागरिक आबादी की हत्या करना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता। हमले जारी रख कर इसराईल ‘हमास’ और ‘हिजबुल्ला’ को फिर से अपने संगठन को आगे बढ़ाने तथा और मजबूत करने का मौका दे रहा है। इसके साथ ही यह कहना भी अनुचित न होगा कि यदि यह युद्ध हफ्ता-डेढ़ हफ्ता और जारी रहा तो हो सकता है कि इसराईल के साथ नया-नया समझौता करने वाले मुस्लिम देश हैं, समझौता तोडऩे की कोशिश कर सकते हैंं और या फिर इसराईल के साथ चलने से इन्कार कर सकते हैं। ऐसे में क्या स्थिति 10 वर्ष पीछे चली जाएगी या क्या कोई देश मध्यस्थता करवाने के लिए आगे आएगा! निश्चित तौर पर तब तक फिलिस्तीन का जानी और माली नुक्सान हो चुका होगा। इसराईल के खुफिया प्रमुख ने शनिवार को कहा कि इस युद्ध का अंतिम नतीजा सम्पूर्ण जीत ही होगी। 


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