अनेकता में एकता की अभूतपूर्व मिसाल है ‘हमारा भारत महान’

punjabkesari.in Monday, Aug 15, 2022 - 04:13 AM (IST)

स्वतंत्रता दिवस पर हमारे पाठकों को हार्दिक बधाई। जिस साहस, त्याग और हिम्मत से यह आजादी हमने पाई थी, उसी साहस और सूझबूझ से हम सब भारतीयों ने इसे संजो कर सुरक्षित भी रखा है-चाहे वह सीमा पार से पाकिस्तान और चीन के साथ युद्ध हो या आर्थिक चुनौतियां, सूखा और अकाल अथवा देश भर में हर ओर व्याप्त तंगी। यह हमारे लिए पीछे मुड़ कर देखने का एक अवसर भी है कि इन वर्षों के दौरान हमारी उपलब्धियां क्या रही हैं और अभी हमारे लिए क्या पाना बाकी है। 

ऐसा नहीं है कि भारत को एक लोकतांत्रिक प्रणाली लागू करने में कठिनाई आई हो। छठी शताब्दी ईसा पूर्व में ही भारत में 22 जनपद थे जिनमें से अधिकांश में गणतांत्रिक शासन प्रणाली थी। भारत में पंचायती राज प्रणाली भी इसी का प्रमाण है कि भारत में निर्वाचित लोकतंत्र नया नहीं है। ऐसा ही एक उदाहरण है, जब 27 दिसंबर, 1911 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन के दूसरे दिन गुरुदेव रबींद्र नाथ टैगोर लिखित कविता ‘जन गण मन’ पढ़ी गई थी। ब्रिटिश सम्राट जार्ज पंचम अपनी पत्नी के साथ भारत के दौरे पर आए हुए थे तथा इस गीत को लेकर विवाद भी उठा था कि क्या यह गीत उन्होंने अंग्रेजों की प्रशंसा में तो नहीं लिखा? 

इस बारे रबींद्र नाथ टैगोर ने नवम्बर, 1937 में स्पष्ट किया था कि,‘‘कोई भी ‘जार्ज’ किसी का भाग्य विधाता नहीं हो सकता। भारत में भाग्य विधाता के केवल दो ही अर्थ हैं-देश की जनता या फिर सर्वशक्तिमान ऊपर वाला। वह जो लोगों को रास्ता दिखाता है।’’बहरहाल, जिस समय देश स्वतंत्र हुआ, हमारे सामने चार बड़ी चुनौतियां थीं। देश जात-पात, धर्म (देश का विभाजन इसी आधार पर हुआ था), भाषाई (किसी अन्य देश या महाद्वीप में इतनी भाषाएं नहीं हैं) व लैंगिक असमानता (महिलाओं को कोई अधिकार नहीं थे) जैसी समस्याओं से घिरा था। उस समय की देश की हालत देख कर विश्व की बड़ी शक्तियों का मानना था कि भारत बहुत समय तक अपना अस्तित्व कायम नहीं रख पाएगा। 

इंगलैंड के प्रधानमंत्री चॢचल ने भी कहा था कि भारत में लोकतंत्र चलेगा नहीं। जब 31 जनवरी, 1948 को भारतीय स्वतंत्रता के मुख्य सूत्रधार गांधी जी की हत्या कर दी गई, तब एक अंग्रेज उच्चाधिकारी माईकल डार्लिंग ने कहा कि, ‘‘कहना मुश्किल है कि भारत का भविष्य क्या होगा और शायद दो या तीन वर्ष में हमें इसे संभालने के लिए वापस जाना पड़ेगा।’’ डा. अम्बेदकर के नेतृत्व में संविधान सभा ने हमें एक ऐसी कानून व्यवस्था दी जिसने सभी को समानता और स्वतंत्रता प्रदान की। यह एक गरीब और बड़े पैमाने पर अशिक्षित देश के लिए एक बड़ा कदम था। भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के समय लाखों लोग बेघर हुए और इतने बड़े विस्थापन की विश्व में कोई उदाहरण नहीं मिलती। 

भारत की स्वतंत्रता के आसपास ही विश्व के जो अन्य देश पाकिस्तान, श्रीलंका, म्यांमार आदि स्वतंत्र हुए, सबका बुरा हाल है और किसी भी देश में भारत जैसा मुखर लोकतंत्र नहीं है, परंतु और बहुत कुछ पाना बाकी है। आज भी देश में जातिवाद, साम्प्रदायिकता, सीमा पार तथा आंतरिक आतंकवाद, घरेलू ङ्क्षहसा, महिलाओं पर अत्याचार जैसी समस्याएं रह-रह कर सिर उठा कर भारत की प्रगति में बाधा डाल रही हैं। दूसरी ओर हमारे सामने उपलब्धियां भी हैं जब इन वर्षों के दौरान हमारी क्षमताओं में वृद्धि हुई है। हम अनेक अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं परंतु कोरोना महामारी के बाद भारत  को बेरोजगारी की समस्या की ओर ध्यान देने की जरूरत है। 

शिक्षा भी एक ऐसा क्षेत्र है जहां राज्यों की सरकारों को अधिक निवेश करना चाहिए। केंद्र सरकार का बजट केवल स्कूली शिक्षा के लिए ही नहीं बल्कि विश्वविद्यालयों के लिए भी बढ़ाने तथा स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी अधिक निवेश करने की जरूरत है। 

सबसे महत्वपूर्ण तो यह है कि यदि शिक्षा प्रणाली इतनी सशक्त नहीं है वह नागरिकों को केवल पढऩे और लिखने वाला बनाने तक ही सीमित रखे और उनमें स्वतंत्र रूप से विचार करने की क्षमता विकसित न करे तो ये लोकतंत्र को अपूर्णीय हानि ही पहुंचाएंगी। हम यह न भूलें कि लोकतंत्र नाजुक है। मीडिया का निष्पक्ष और स्वतंत्र होना इसके लिए अनिवार्य है। देश के नागरिकों को यह समझना होगा कि कागज का टुकड़ा स्वतंत्रता और लोकतंत्र की गारंटी नहीं बन सकता क्योंकि इसे सुदृढ़ बनाए रखने का उत्तरदायित्व हम सभी के कंधों पर है।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News