वृद्धाश्रम में रह रहे 97 वर्षीय एक बुजुर्ग की दुखद कहानी, उनकी जुबानी

punjabkesari.in Wednesday, Oct 11, 2017 - 01:04 AM (IST)

प्राचीन काल में माता-पिता के एक ही आदेश पर संतानें सब कुछ करने को तैयार रहती थीं परंतु आज जब बुढ़ापे में बुजुर्गों को बच्चों के सहारे की सर्वाधिक जरूरत होती है, अधिकांश संतानें अपने बुजुर्गों से उनकी जमीन- जायदाद अपने नाम लिखवा कर माता-पिता की ओर से आंखें फेर कर उन्हें अकेला छोड़ देती हैं। 

अक्सर मेरे पास ऐसे बुजुर्ग अपनी पीड़ा व्यक्त करने के लिए आते रहते हैं जिनकी दुख भरी कहानियां सुन कर मन बेचैन हो उठता है। कुछ ऐसी ही दुख भरी कहानी 97 वर्षीय श्री ए.सी.बी. खुराना (बदला हुआ नाम) की है जो आज अपने बेटों-बेटी के पास रहने की बजाय वृद्धाश्रम में जीवन व्यतीत करने के लिए विवश हैं। मूलत: लाहौर (पाकिस्तान) के रहने वाले श्री खुराना का जन्म 7 नवम्बर, 1919 को हुआ था तथा उन्होंने अपनी मैट्रिक की शिक्षा लाहौर के सनातन धर्म स्कूल से हासिल की। देश की आजादी से पूर्व 7-8 वर्ष उन्होंने लाहौर के सैंट्रल बैंक में नौकरी की जहां उन्हें 40 रुपए मासिक वेतन मिलता था परंतु इस राशि में भी वह काफी बचत करने में सफल रहते थे। 

देश विभाजन के बाद वह अपने माता-पिता के साथ भारत आ गए। उनके पिता भी स्वतंत्रता से पूर्व सेना में अकाऊंट्स का काम किया करते थे। स्वयं श्री खुराना सैंट्रल बैंक आफ इंडिया की कटड़ा आहलूवालिया अमृतसर शाखा से अकाऊंटैंट के पद से नवम्बर, 1979 में रिटायर हुए। श्री खुराना ने बताया कि उनकी पत्नी का देहांत 70 वर्ष की आयु में ही 14 अगस्त, 2002 को हो गया था। श्रीमती खुराना ने अपनी 14 लाख रुपए की सम्पत्ति की वसीयत अपनी बेटी और बेटे के नाम करके  6 लाख रुपए बेटी को और 8 लाख रुपए बेटे को दे दिए थे ताकि वह श्री खुराना को अपने पास रख कर उनकी देखभाल करता रहे। 

कुछ वर्ष बाद जब बेटे ने तरह-तरह के बहाने बनाकर उन्हें तंग करना शुरू कर दिया और घर से निकाल दिया तथा कहने लगा कि यदि आप मुझसे पैसों का तकाजा करेंगे तो खुदकुशी कर लूंगा तो श्री खुराना को अपनी बेटी के पास आकर रहने के लिए विवश होना पड़ा। इसके लिए उन्होंने अपनी बचत के 35 लाख रुपए बेटी को और 5 लाख रुपए दामाद को दे दिए और इसी दौरान छोटे बेटे को भी मकान खरीदने के लिए 5 लाख रुपए दिए जिसकी कीमत अब 20-25 लाख रुपए हो गई है।

श्री खुराना का कहना है कि उनकी रकम हड़प लेने के बाद बेटी और दामाद की नीयत भी बदल गई और उन्होंने तरह-तरह के बहाने बनाकर उन्हें तंग करना शुरू कर दिया। उन्हें जरूरत की चीजें मिलनी बंद हो गईं और वे मनचाहे भोजन से भी वंचित हो गए। पहले उन्हें खाने के लिए फल आदि मिला करते थे परंतु अब खाने के लिए तो क्या, वे इन्हें देखने के लिए भी तरस गए। उनकी बेटी ने यहां तक कहना शुरू कर दिया कि,‘‘आप घर की बातें बाहर करके हमें बदनाम करते हैं इसलिए मैं आपको अपने पास नहीं रख सकती।’’

श्री खुराना के अनुसार जब पानी सिर से गुजर गया तो वह बेटी का भी घर छोडऩे के लिए विवश हो गए तथा जालंधर के ‘लाला जगत नारायण सीनियर सिटीजन होम’ में 17 जून, 2017 को रहने के लिए आ गए और तब से वहीं रह रहे हैं। सब कुछ होते हुए भी अपनी ही संतान द्वारा अकेले छोड़ दिए गए श्री खुराना एकमात्र बुजुर्ग नहीं हैं, समाज में आज न जाने कितने ही बुजुर्ग इसी प्रकार अपनी संतान के हाथों उपेक्षित होकर एकाकी जीवन बिता रहे हैं।

इसीलिए हम अपने लेखों में यह बार-बार लिखते रहते हैं कि माता-पिता अपनी सम्पत्ति की वसीयत तो अपने बच्चों के नाम अवश्य कर दें परंतु इसे ट्रांसफर न करें। ऐसा करके वे अपने जीवन की संध्या में आने वाली अनेक परेशानियों से बच सकते हैं परंतु आमतौर पर वे यह भूल कर बैठते हैं जिसका खमियाजा उन्हें अपने शेष जीवन में भुगतना पड़ता है।—विजय कुमार  


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