असम सरकार का अहम पग माता-पिता की देखभाल न करने वाले कर्मचारियों का कटेगा वेतन

punjabkesari.in Tuesday, Jul 31, 2018 - 01:26 AM (IST)

बुढ़ापे में जब माता-पिता को अपनी संतानों के सहारे की सर्वाधिक आवश्यकता होती है, अपनी गृहस्थी बन जाने के बाद अधिकांश संतानें बुजुर्ग माता-पिता की जमीन-जायदाद अपने नाम लिखवा कर उनकी ओर से आंखें फेर कर उन्हें उनके हाल पर अकेला छोड़ देती हैं। 

इसीलिए हम अपने लेखों में यह बार-बार लिखते रहते हैं कि माता-पिता अपनी सम्पत्ति की वसीयत तो अपने बच्चों के नाम अवश्य कर दें परंतु इसे ट्रांसफर न करें। ऐसा करके वे अपने जीवन की संध्या में आने वाली अनेक परेशानियों से बच सकते हैं परंतु अक्सर माता-पिता यह भूल कर बैठते हैं जिसका खमियाजा उन्हें अपने शेष जीवन में भुगतना पड़ता है। संतानों द्वारा अपने बुजुर्गों की उपेक्षा को रोकने और उनके ‘जीवन की संध्या’ को सुखमय बनाना सुनिश्चित करने के लिए सबसे पहले हिमाचल सरकार ने 2002 में ‘वृद्ध माता-पिता एवं आश्रित भरण-पोषण कानून’ बनाया था। 

इसके अंतर्गत पीड़ित माता-पिता को संबंधित जिला मैजिस्ट्रेट के पास शिकायत करने का अधिकार दिया गया और दोषी पाए जाने पर संतान को माता-पिता की सम्पत्ति से वंचित करने, सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरियां न देने तथा उनके वेतन से समुचित राशि काट कर माता-पिता को देने का प्रावधान है। मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश आदि कुछ अन्य राज्य सरकारों ने भी माता-पिता और वरिष्ठï नागरिकों के भरण-पोषण तथा कल्याण संबंधी कुछ कानून बनाए हैं। मध्य प्रदेश में 60 वर्ष या अधिक के माता-पिता की देखभाल न करने वाले कर्मचरियों/ अधिकारियों के वेतन से एक निश्चित राशि काट कर सीधे बैंक में माता-पिता के खाते में जमा करने का प्रावधान किया गया है। 

संसद द्वारा पारित ‘अभिभावक और वरिष्ठï नागरिक देखभाल व कल्याण विधेयक-2007’ में भी बुजुर्गों की देखभाल न करने पर 3 मास तक कैद का प्रावधान है तथा इसके विरुद्ध अपील की अनुमति भी नहीं है। इसी कड़ी में अब असम सरकार ने अपने बुजुर्गों की उपेक्षा करने तथा उनकी देखभाल का दायित्व पूरा नहीं करने वाले सरकारी कर्मचारियों के विरुद्ध बड़ा कदम उठाते हुए उनके वेतन में कटौती का फैसला किया है। असम सरकार एक नया कानून ला रही है जिसके प्रभाव से उसके कर्मचारी/अधिकारी उन पर निर्भर माता-पिता एवं शारीरिक रूप से अशक्त भाई-बहन की देखभाल करने के लिए मजबूर होंगे तथा कानून का पालन न करने पर उनके वेतन से एक निश्चित राशि काट ली जाएगी। 

राज्य के वित्त मंत्री हेमंत बिस्वा सरमा के अनुसार, ‘‘राज्य में 2 अक्तूबर से ‘प्रणाम’ (असम इम्प्लाइज पेरैंट्स रिस्पांसीबिलिटी एंड मॉनीटरिंग) कानून लागू करना शुरू कर दिया जाएगा। इस संबंधी नियमों के अंतर्गत किसी कर्मचारी/अधिकारी को उस पर निर्भर माता-पिता की देखभाल नहीं करता पाए जाने पर उसके कुल वेतन का 10 प्रतिशत हिस्सा काट कर उसके माता-पिता के बैंक खाते में डाल दिया जाएगा। इसी प्रकार दिव्यांग भाई-बहन होने की स्थिति में वेतन से 15 प्रतिशत तक हिस्सा काटा जाएगा।’’ असम मंत्रिमंडल ने इस आशय के कानून को गत सप्ताह स्वीकृति दे दी। श्री सरमा ने कहा, ‘‘हम एक ‘प्रणाम आयोग’ गठित करके इसमें अधिकारियों की नियुक्ति करेंगे।’’ 

श्री सरमा ने कहा कि पीड़ित माता-पिता इस संबंध में अपनी संतान का वेतन तैयार करने वाले ‘ड्राइंग एंड डिसबरसल आफिसर (डी.डी.ओ.)’ से संपर्क कर सकते हैं तथा डी.डी.ओ. के स्टैंड से संतुष्ट न होने पर पीड़ित माता-पिता अपनी संतान से संबंधित विभाग के निदेशक से संपर्क कर सकते हैं जो इस मामले में अपील प्राधिकरण होंगे। बुजुर्गों की देखभाल की दिशा में असम सरकार द्वारा उठाया गया यह पग सराहनीय है परंतु अभी भी अनेक ऐसे राज्य हैं जहां ऐसा कोई कानून अभी तक नहीं है। अत: उन राज्यों में भी ऐसा कानून जल्दी लागू करना आवश्यक है। इसके साथ ही जिन राज्यों में ऐसे कानून लागू हैं वहां उनका व्यापक प्रचार करने और उन पर कठोरतापूर्वक क्रियान्वयन सुनिश्चित करने की आवश्यकता है ताकि बुजुर्गों को अपने अधिकारों का पता चले और उन्हें जीवन की संध्या में अपनी ही संतानों की उपेक्षा का शिकार होकर अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के लिए तरसना न पड़े।—विजय कुमार 


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Pardeep

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