‘हरियाणा में पुत्र मोह के कारण’‘पुत्रविहीन महिलाएं कर रहीं आत्महत्या’

punjabkesari.in Saturday, Feb 22, 2025 - 05:30 AM (IST)

भारत में पुत्र मोह के कारण बड़ी संख्या में कन्या भू्रण हत्या हो रही है। इसीलिए यहां पुरुषों व महिलाओं का ङ्क्षलगानुपात स्वतंत्रता के बाद के निम्नतम स्तर पर पहुंच गया है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में प्रति 1000 पुरुषों पर 918 महिलाएं ही रह गई हैं। हरियाणा में तो यह स्थिति और भी खराब है और वहां वर्ष 2024 में यह संख्या 910 ही रह गई है। इसी को देखते हुए केंद्र सरकार ने बालिकाओं के संरक्षण और सशक्तिकरण के लिए 22 जनवरी, 2015 को ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना पानीपत (हरियाणा) से शुरू की थी। इसका उद्देश्य पसंद के आधार पर संतान का लिंग चुनने की प्रक्रिया पर रोक लगा कर बच्चियों के अस्तित्व एवं सुरक्षा तथा शिक्षा को सुनिश्चित करना तथा कन्या संतान को प्रोत्साहन देना है परंतु इसके बावजूद आज महिलाओं का वैवाहिक जीवन संकट में घिरता जा रहा है। हरियाणा में तो बेटा न होने के कारण ससुराल वालों द्वारा प्रताडि़त करने या अवसादग्रस्त हो जाने के कारण महिलाएं आत्महत्याएं कर रही हैं जिसके चंद उदाहरण निम्न में दर्ज हैं:

* 15 अक्तूबर, 2024 को सोनीपत में बेटा न होने के कारण ससुरालियों द्वारा ताने दिए जाने से तंग 3 बेटियों की मां ने आत्महत्या कर ली। 
* 23 जनवरी, 2025 को बेटा न होने से परेशान हिसार जिले के ‘साहू’ गांव की रहने वाली 4 बेटियों की मां ने अपनी 2 नाबालिग बेटियों के साथ नहर में छलांग लगाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। 
* 14 फरवरी, 2025 को हिसार जिले के ‘रायपुर’ गांव में 5 बेटियों की मां ने अपने घर में फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली। परिवार के लोगों के अनुसार उस पर कोई दबाव नहीं था परंतु बेटा न होने के कारण वह ङ्क्षचतित थी। 
बेटियों के प्रति लोगों की नकारात्मक सोच के 2 अन्य उदाहरण भी हाल ही में सामने आए हैं। 17 फरवरी को भिवानी जिले के ‘जमालपुर’ गांव की एक सड़क पर एक नवजात बच्ची का शव पड़ा मिला। एक सप्ताह पहले जींद जिले के ‘नरवाना’ कस्बे की नहर में भी एक नवजात बच्ची का शव पाया गया था। उक्त घटनाएं हरियाणा में पुत्र न होने से अनेक महिलाओं को हो रहे मानसिक तनाव और सामाजिक दबाव की तस्वीर पेश करती हैं। महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाली ‘जगमती सांगवान’ के अनुसार :

‘‘समाज के सर्वाधिक कमजोर वर्ग के लोग आॢथक कठिनाइयों और सामाजिक रूढिय़ों के शिकार हैं। कोई भी इस बात को समझने की कोशिश नहीं करता कि आज ऊंची अपेक्षाओं वाले समाज में 5-5 बेटियों को पालना कितना कठिन है तथा सरकार द्वारा महिलाओं के लिए अनेक योजनाएं चलाने के बावजूद बड़ी संख्या में महिलाएं इनका लाभ उठाने में विफल हैं।’’
‘जगमती सांगवान’ का यह भी कहना है कि ‘‘कन्या संतान वाले परिवारों में आत्मविश्वास पैदा करने में सरकार विफल रही है जिससे ऐसी महिलाओं में भय और दयनीयता का वातावरण पैदा हुआ है।’’ 

बच्चे का लिंग (नर या मादा) पुरुष के क्रोमोसोम से तय होता है अत: इसके लिए किसी महिला को दोष देना उचित नहीं परंतु सदियों से महिलाओं को उस अपराध की सजा दी जा रही है जो उन्होंने किया ही नहीं होता।
यह जीवन दोबारा मिलने वाला नहीं, अत: पुत्र मोह के वशीभूत हताशा में प्राणों का त्याग करना कदापि उचित नहीं ठहराया जा सकता। बेटे को लेकर यह मानसिकता ऐसे समय में है जब प्रतिवर्ष सी.बी.एस.ई. तथा राज्य की बोर्ड परीक्षा में लड़कियां अव्वल आ रही हैं और खेलों में भी हरियाणा की लड़कियां देश व राज्य का नाम रौशन कर रही हैं। इस तरह की पृष्ठïभूमि में समाज का कत्र्तव्य है कि कन्या संतान होने के कारण हताश महिलाओं के प्रति उदार दृष्टिïकोण अपनाकर उनमें व्याप्त हीन भावना को दूर किया जाए ताकि वे भी अन्य माताओं की भांति ही प्रसन्न जीवन बिता सकें।—विजय कुमार 


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