समारोहों का बचा भोजन एकत्रित करके जरूरतमंदों में बांटती कुछ एन.जी.ओ.

punjabkesari.in Tuesday, Mar 20, 2018 - 02:12 AM (IST)

देश ने भले ही विभिन्न क्षेत्रों में बड़ी सफलताएं प्राप्त कर ली हों पर अब भी हमारी जनसंख्या के एक बड़े हिस्से को भूखे पेट सोना पड़ता है क्योंकि खरीदने की सामथ्र्य न होने के कारण पर्याप्त खाद्यान्न पैदा होने के बावजूद यह जरूरतमंदों तक पहुंच नहीं पाता। 

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार भारतीय प्रतिदिन 244 करोड़ रुपए का भोजन बर्बाद कर देते हैं जो 89,060 करोड़ रुपए वाॢषक बैठता है जबकि दूसरी ओर भारत में प्रतिदिन 19 करोड़ 40 लाख लोग भूखे सोते हैं। कुल उत्पादित खाद्य सामग्री का 40 प्रतिशत प्रतिवर्ष नष्टï हो जाता है। शादियों तथा अन्य समारोहों में अनुमानित आवश्यकता से 20 से 25 प्रतिशत तक अधिक भोजन पकाया जाता है और बचा हुआ फालतू भोजन जरूरतमंदों तक पहुंचाने की बजाय कूड़ेदानों में फैंक दिया जाता है। 

अन्न की यह बर्बादी प्राकृतिक संसाधनों को भी क्षति पहुंचाती है और गड्ढों में फैंके गए इस भोजन से निकलने वाली हानिकारक मिथेन गैस ग्लोबल वाॄमग का कारण भी बनती है। अत: इस बर्बाद हो रहे भोजन को यदि जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाया जाए तो इससे बढ़ कर कोई पुण्य नहीं। इसी को ध्यान में रखते हुए देश में कुछ संस्थाएं आगे आई हैं। सबसे पहले 2013 में जयपुर में एन.जी.ओ. ‘अन्न क्षेत्र फाऊंडेशन’ ने विवाह-शादियों, पार्टियों, होटलों तथा धर्म स्थानों का बचा हुआ भोजन साफ-सुथरे और वैज्ञानिक ढंग से इकट्ठा करके जरूरतमंदों को बांटने का अभियान शुरू किया। 

इसके बाद महाराष्ट्र के औरंगाबाद में ‘हारुन मुकाती इस्लामिक सैंटर’ व मुम्बई के विश्व विख्यात डब्बा वालों के एक समूह ने भी लोगों के घरों से बचा हुआ स्वच्छ भोजन एकत्रित करके जरूरतमंदों को बांटना आरंभ किया तथा इसके बाद कुछ और समाज सेवी संस्थाएं अब इस क्षेत्र में आगे आई हैं। पंजाब के शहर लुधियाना में ‘एक नूर सेवा केंद्र’ नामक एन.जी.ओ. ने विवाह एवं अन्य समारोहों का बचा हुआ भोजन एकत्रित करके जरूरतमंदों तक पहुंचाने के लिए ‘नेकी दी गड्डी’ सेवा शुरू की है। लुधियाना नगर निगम की सीमाओं में हर समय उपलब्ध यह सेवा एक दानी सज्जन, जो अपना नाम जाहिर नहीं करना चाहते, द्वारा एन.जी.ओ. को एक पुराना वाहन भेंट करने के बाद शुरू की गई जिसे खाद्यान्न इकट्ठा करने वाले वाहन में बदल दिया गया है। भोजन इकट्ठा करने के बाद इसे एन.जी.ओ. द्वारा संचालित ‘नेकी दी रसोई’ में ले जाया जाएगा और वहां से 2-3 घंटे के भीतर ही जरूरतमंदों तक पहुंचा दिया जाएगा। 

जरूरतमंदों की भूख मिटाने के लिए यह प्रयोग बहुत ही अच्छा है तथा इसके लिए ‘एक नूर सेवा केंद्र’ साधुवाद का पात्र है। अन्य संस्थाओं को भी इस मामले में आगे आना चाहिए क्योंकि इसके लिए 3-4 संस्थाएं ही काफी नहीं हैं। अच्छा होगा, यदि समारोहों के आयोजक इस क्षेत्र में काम करने वाले संगठनों से पहले ही सम्पर्क कर लें ताकि बचा हुआ खाद्यान्न व्यर्थ न नष्टï हो तथा उसे संभाल कर जरूरतमंदों तक पहुंचाया जा सके। नैतिकता का तकाजा है कि हमें शादी-विवाहों तथा अन्य समारोहों में ही नहीं बल्कि अपने घरों में भी खाना खाते समय जूठन नहीं छोडऩी चाहिए और जितनी जरूरत हो उतना ही लेना चाहिए और भूख से कुछ कम ही खाना चाहिए जो स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा है। भोजन परोसने वालों के लिए भी उचित होगा कि वे एक बार में ही ज्यादा-ज्यादा न परोसें तथा जरूरत के अनुसार ही दें क्योंकि न सिर्फ जूठन लगे बर्तन साफ करने में परेशानी होती है बल्कि नालियों में जूठन फैंकने से गंदगी भी फैलती है। 

उल्लेखनीय है कि भारत में अन्न को भी देवता का दर्जा प्राप्त है तथा भारतीय धर्म दर्शन में भोजन का अनादर करना या जूठन छोडऩा अनुचित माना गया है। अत: जूठन न छोडऩे से जहां अनाज का सदुपयोग और इसके व्यर्थ में नष्टï होने से बचाव होगा, वहीं धन की बचत होने के साथ-साथ यह सेहत के लिए भी अच्छा होगा। यही नहीं, बचा हुआ भोजन जरूरतमंदों तक पहुंचा देने से न सिर्फ उनका पेट भरेगा बल्कि गंदगी से भी बचाव होगा।—विजय कुमार 


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