रूस-यूक्रेन युद्ध समाप्त हो ‘शी जिनपिंग’ की रूस यात्रा से उम्मीदें
punjabkesari.in Sunday, Mar 19, 2023 - 05:08 AM (IST)

24 फरवरी, 2022 को यूक्रेन पर रूस के पहले हमले के बाद से दोनों देशों में युद्ध लगातार तेज हो रहा है तथा इसके अभी तक समाप्त होने के कोई संकेत दिखाई नहीं दे रहे। इस युद्ध में 12 मार्च तक दोनों पक्षों के 8231 आम नागरिकों के अलावा रूस के लगभग 2 लाख तथा यूक्रेन के 1 लाख से अधिक सैनिकों की मौत हो चुकी है। रूस को अपना ‘अच्छा साथी’ बताने वाले चीन के शासक ने यूक्रेन युद्ध के कारण पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए प्रतिबंधों की निंदा करने के अलावा ‘नाटो’ तथा अमरीका पर स्थिति बिगाडऩे का आरोप लगाया है।
हाल ही में एक अमरीकन ‘थिंक टैंक’ ने रहस्योद्घाटन किया है कि पश्चिम देशों ने बीजिंग को चेतावनी दी है कि वह मास्को को हथियारों की सप्लाई न करे परंतु चीन ने रूस को राडार सिस्टम, जैमिंग टैक्नीक तथा दिशा सूचक उपकरण प्रदान किए हैं। रूस व चीन ने ‘नो लिमिट’ अर्थात असीमित सहयोग संधि कर रखी है परंतु इस समय रूस जूनियर पार्टनर की भूमिका में आ चुका है और इसकी अर्थव्यवस्था चीन की अर्थव्यवस्था का दसवां हिस्सा ही रह गई है।
ऐसे माहौल के बीच 16 मार्च को रूस और यूक्रेन के विदेश मंत्रियों में फोन पर वार्ता के बाद चीन के विदेश मंत्री ने यूक्रेन को मास्को के साथ राजनीतिक समाधान पर वार्ता करने का आग्रह किया और अगले ही दिन 17 मार्च को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के 20 मार्च को रूस की 3 दिन की यात्रा पर जाने की घोषणा कर दी गई। हालांकि शी जिनपिंग की रूस यात्रा का उद्देश्य रूस और यूक्रेन के बीच शांति की संभावना पैदा करना बताया जा रहा है परंतु वास्तव में इसका उद्देश्य रूस को रणनीतिक और व्यापारिक सांझेदारी पर बातचीत करने के नाम पर अपने सामान की बिक्री को बढ़ावा देने के अलावा उसे पूरी तरह अपने प्रभाव में लाना है।
चूंकि चीन पहले ही मध्य पूर्व के देशों के अलावा अफ्रीका के देशों को अपने प्रभाव में लाने के बाद दक्षिण अमरीका में भी किसी सीमा तक अपनी पैठ बना चुका है, अत: रूस को भी अपने साथ ले आने पर यूरोप का एक बड़ा हिस्सा उसके प्रभाव के अधीन आ जाने से रूस के साथी देश स्वत: ही चीन के पक्ष में आ जाएंगे जिससे सुपर पावर बनने का चीन के शासक जिनपिंग का रास्ता और आसान हो जाएगा।
जहां तक शी जिनपिंग की रूस यात्रा के भारत पर पडऩे वाले प्रभाव का संबंध है तो रूस को हम अपना मित्र मानते हैं परंतु चीन के साथ उसकी दोस्ती बढऩे से भारत के संबंध अवश्य प्रभावित होंगे। चूंकि यूरोप के देश चाहते हैं पैट्रोल की कीमतों में वृद्धि के कारण उनकी अर्थव्यवस्था फेल न हो जाए इसलिए दोनों के बीच किसी तरह शांति स्थापित हो जाए इसी कारण वे इस वार्ता की ओर उम्मीद से देख रहे हैं परंतु यदि चीन समझौता कराएगा तो वह रूस को अधिकृत यूक्रेनी क्षेत्र वापस करने के लिए नहीं कहेगा और कोई भी यूरोपीय देश इस पर अधिक आपत्ति नहीं करेगा क्योंकि वे अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए यूक्रेन के हितों की बलि भी दे सकते हैं।
अत: यदि शी जिनपिंग यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध की समाप्ति के लिए कोई समझौता करवा पाते हैं तो यह न सिर्फ यूक्रेन और रूस बल्कि समस्त विश्व समुदाय के हित में होगा क्योंकि इन दोनों देशों के बीच युद्ध जारी रहने का परिणाम किसी भी समय दोनों पक्षों के समर्थक देशों के युद्ध में कूद पडऩे के कारण तीसरे विश्वयुद्ध में बदल सकता है। यह बात अभी भी किसी को भूली नहीं है कि दोनों विश्व युद्धों में जान-माल की कितनी हानि हुई थी आज यदि प्रथम और द्वितीय विश्व युद्धों में परस्पर शत्रु देश अमरीका, जापान, जर्मनी, फ्रांस आदि आपस में हाथ मिला सकते हैं तो यूक्रेन और रूस क्यों नहीं? -विजय कुमार
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