देश भर में बढ़ते प्रदूषण का कारण केवल ‘पराली’ या ‘दीवाली’ ही नहीं

punjabkesari.in Monday, Jan 02, 2023 - 03:29 AM (IST)

इस सप्ताह दिल्ली को एक बार फिर बहुत खराब हवा की गुणवत्ता (ए.क्यू) का सामना करना पड़ रहा है। ए.क्यू. स्तर 400 से ऊपर चला गया है।  कई वर्षों से सर्दियों के महीनों के दौरान ऐसा ही होता है। प्रश्न उठता है कि प्रतिवर्ष पैदा होने वाली इस समस्या के समाधान के लिए केंद्र और दिल्ली सरकार द्वारा क्या नीतियां अपनाई गई हैं। 

दिल्ली में वायु प्रदूषण अत्यंत हानिकारक है जो 1990 के दशक से ही बढ़ता रहा है। इस प्रश्र के उत्तर में कि इतने वर्षों में दिल्ली में क्या बदला है, तो कई अध्ययनों में पाया गया है कि दिल्ली की आबादी में तेजी से वृद्धि, औद्योगिकीकरण और शहरीकरण, निजी वाहनों में वृद्धि के परिणामस्वरूप पार्टिकुलेट मैटर (पी.एम.), नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और ओजोन जैसे प्रदूषकों में वृद्धि हुई है। 

दिल्ली के अत्यंत हानिकारक पी.एम. 2.5 जोकि 300 से अधिकतर ऊपर रहता है, में वाहनों का हिस्सा 30 प्रतिशत, मिट्टी और सड़क की धूल 20 प्रतिशत, बायोमास 20 प्रतिशत, उद्योग 15 प्रतिशत, डीजल जैनरेटर 10 प्रतिशत, बिजली संयंत्र 5 प्रतिशत और विशेष रूप से, दिल्ली के बाहर से (जैसे पड़ोसी राज्यों में पराली जलाना) आने वाले प्रदूषण का हिस्सा 30 प्रतिशत तक है। यह बात सबको मालूम है और बार-बार दोहराई गई है। 

निजी वाहनों पर ऑड-ईवन नियम लागू करने जैसी नई नीतियों में भी चुनौतियां हैं क्योंकि निजी वाहनों की तुलना में कहीं अधिक प्रदूषण भारी वाहनों से हो रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार वायु प्रदूषण को कम करने के लिए दिल्ली के अपशिष्ट प्रबंधन में भी सुधार करना होगा और रिहायशी इलाकों के आसपास कूड़ा जलाने पर अभी भी काबू नहीं पाया जा सका है। 

प्रदूषण से कितना नुक्सान हो रहा है यह सबको पता है परंतु चुनावों के दिनों, दीवाली जैसे त्यौहारों या किसानों द्वारा धान की पराली जलाने के दिनों में ही इसे एक मुद्दा बनाया जता है। इसके आगे-पीछे कोई कुछ नहीं करता। और फिर अब तो प्रदूषण केवल दिल्ली की ही समस्या न रह कर सारे देश की समस्या बन गया है और मुम्बई जैसे शहर भी इसकी चपेट में आ गए हैं जहां समुद्री हवाएं चलती रहती हैं। 

प्रदूषण का कारण केवल पराली या दीवाली ही नहीं है बल्कि इसके लिए और भी अनेक कारण जिम्मेदार हैं। देश भर में बढ़ते प्रदूषण का एक कारण तो यह है कि जनसंख्या बढऩे के कारण वाहन बढ़ गए हैं। 

अत: वाहनों के धुएं से बचने के लिए इलैक्ट्रिक वाहनों तथा सी.एन.जी. पर आधारित वाहनों का उपयोग बढ़ाना तथा औद्योगिक कचरे का सही ढंग से निपटारा करना जरूरी है। दिल्ली तथा शेष देश में बड़े पैमाने पर जारी निर्माण कार्य भी प्रदूषण का कारण बन रहे हैं। अत: अब समय आ गया है कि इस समस्या को केवल मौसमी मुद्दे के रूप में देखने की बजाय एक बारहमासी समस्या के रूप में देखा जाए और उसी लिहाज से इसे सुलझाने की दिशा में कदम उठाया जाए। 

गत वर्ष अक्तूबर से यह समस्या चली आ रही है और अभी तक देश के अधिकांश भागों में प्रदूषण के स्तर में कोई कमी नहीं आई है। यह ध्यान रहे कि प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पड़ता है। फेफड़ों और आंखों के अलावा यह बच्चों के मानसिक विकास पर भी असर डाल सकता है। प्रश्र यह उठता है कि क्या सरकार इस समस्या को सुलझाने के लिए गंभीर भी होगी या नहीं? 


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